Book Title: Prakaranmala
Author(s): Harishankar Kalidas Vadhvanwala
Publisher: Bhogilal Tarachand Shah
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(१५) स्वदेहसदृशं दृष्ट्वा , परदेदमचेतनम् ॥ . परात्माधिष्टितं मूढः, परत्वेनाध्यवस्यति ॥१०॥
शब्दार्थः-परमात्माए कर्मना वश्यथी अंगीकार करेला अने अचेतन एवा परदेहने पोताना देह सरखा जोश मूढ एवो बहि रात्मा ते परदेदने परमात्मपणाए अंगीकार करे .॥ १० ॥ स्वपराध्यवसायेन, देदेष्वविदितात्मनाम् ॥ वर्त्तते विन्त्रमः पुसां, पुत्रनार्यादिगोचरः ॥११॥
शब्दार्थः-यात्मस्वरूप न जाणनारा पुरुषोने देहने विषे पोताना अने परना अध्यवसायथी पुत्र स्त्री विगेरेने गोचर ए. वो विन्रम थाय . अर्थात् अनात्मारूप अने अपकार करनारा एवाय पण स्त्री पुत्रादिकने अने धन धान्यादिकने पोतानो उप कार करनारा जाणे डे वली तेमना लाजने विष संतोष अने असामने विषे परिताप तथा श्रात्मवध पण करे . ॥ ११ ॥
अविद्यासंझितस्तस्मात्संस्कारो जायते दृढः॥ येन लोकोङमेव स्वं, पुनरप्यनिमन्यते ॥ १२॥
शब्दार्थ-ते विन्रम थकी थविद्या नामवालो अविचल सं. स्कार थाय ने के, जे संस्कारे करीने अविवेकी लोक जन्मांतर ने विषे पण पोतानां शरीरनेज आत्मा माने . ॥१२॥
देहे स्वबुद्धिरात्मानं, युनत्यतेन निश्चयात् ॥ स्वात्मन्येवात्मधास्तस्माद्वियोजयति देदिनम् ॥१३॥
शब्दार्थ:-शरीरने विषे आत्मबुद्धि करनारो बहिरात्मा परमा र्थथी ए देहे करीने श्रात्माने जोमी देडे. अर्थात् दीर्घ संसारी करेले अने पोताना श्रात्माने विवे श्रात्मबुद्धि करनारो अंतरात्मा ते शरीरादियो आत्माने वियोग करावे . अर्थात् मुक्ति पमा बे.

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