Book Title: Prakaranmala
Author(s): Harishankar Kalidas Vadhvanwala
Publisher: Bhogilal Tarachand Shah

View full book text
Previous | Next

Page 206
________________ (एए) वो जोवाथी रागादिक शत्रु क्षय पामे . पनी मने को शत्रु नथी अने मित्र पण नथी. ॥ २५ ॥ मामपश्यन्नयं लोको, न मे शत्रुर्न च प्रियः॥ मां प्रपश्यन्नयं लोको न मे शत्रुर्न च प्रियः॥३६॥ : शब्दार्थः--मने न जो शकतो एवो पा लोक म्हारो शत्रु अने मित्र नथी तेमज मने जो शकतो एवो पण या लोक शत्रु बने मित्र नथी. ॥२६॥ त्यक्त्वैव बहिरात्मानमंतरात्मव्यवस्थितः॥ जावयेत्परमात्मानं, सर्वसंकल्पवर्जितः॥२॥ .. शब्दार्थः-ए प्रमाणे अंतरात्माने विषे रहेलो पुरुष बहिरात्मा ने त्यजी सर्व प्रकारना संकल्प रहित थयो तो परमात्माने नावे. सोऽहमित्यात्तसंस्कारस्तस्मिन्नावनया पुनः॥ तत्रैव दृढसंस्काराल्ललते ह्यात्मनः स्थितिम् ॥श्ना __ शब्दार्थ-वली ते परमात्माने विषे जावनावमे ग्रहण करी । ने वासना जेणे एवो ते अनंतज्ञानस्वरूप परमात्मारूप हुँ, ते परमात्माने विषे दृढ संस्कारथी (अविचल वासनाथी) आत्मानी स्थितिने पामुं बु.॥॥ . मूढात्मा यत्र विश्वस्तस्ततो नान्यनयास्पदम् ॥ यतोऽनीतस्ततो नान्यदलयस्थानमात्मनः॥२॥ शब्दार्थः बहिरात्मा जे पुत्र स्त्री विगेरेने विषे (श्राम्हारा श्रने हुं तेमनो बु.) एवो विश्वास पाम्यो , तेथी तेने बीजो जय नथी. अर्थात् शरीरने लीधेज नय रहेलो . वली जे परमात्म स्वरूपने जाणवायी अजय पाम्यो , तेथी बीजुं श्रात्माने अत्रयस्थान नथी. ॥ २५ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242