Book Title: Prakaranmala
Author(s): Harishankar Kalidas Vadhvanwala
Publisher: Bhogilal Tarachand Shah

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Page 238
________________ (२३१) कुणसु पसायं गुरुयं, वछत्तीसंसयाण जह हो ॥ जम्हा महाणुनाबा, सरणागय वबला हुँति ॥ १५ ॥ कम्मवसेणय अहयं, नारहवासंमि जवि चिहामि ॥ तहवि तुमं महियए, रयणायर चंदणादण ॥ १३ ॥ तं पहु तं मन गुरू, तं देवो बंधवो तुमं चेत्र ॥ गुरु संसारगयाणं, जीवाणं हुऊ तं सरणं ॥ १४ ॥ संसारजलहिमये, निबुड्डमाणेहिं नव सत्तेहिं ॥ पदिवसं समरिजा, सीमंधर सामि पयकमलं ॥ १५ ॥ जर वह परमपयं, निव्वंना तय जम्ममरणाणं ॥ ता समरह जिणनाई, विदहवासंमि विहरंतं !॥ १६ ॥ जो निचं नव्वाणं, विदेदवासंमि सामि विहरतो ॥ स उम्मदेसणाए, मिबत्त पणास कुण ॥ १७ ॥ पञ्चूसे मधणे संका समयंति सव्वकालंमि ।। सीमंधर तिबयर, वंदेहं परम नत्तोए ॥ १७ ॥ पंच धणुस्सय माणो, चनरासी पुबलख वरिसाक ॥ सो सीमंधरनाहो, श्रणंतनाणी सया जय ॥ १५ ॥ मुणिसुन्वय नमि तिवपर, अंतरे रजाल हि विडं।. छमिय पवन विस्कं, सीमंधर सामियंवंदे ॥२०॥ श्य सीमंधरनाहो, थुश्रो मए नत्तिरायकलिएणं॥ सासय सुहक जणथो, जयनाहो होउ नवियाणं ॥१५ ॥ इति श्रीमंधरजिन स्तवन ॥

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