Book Title: Prakaranmala
Author(s): Harishankar Kalidas Vadhvanwala
Publisher: Bhogilal Tarachand Shah

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Page 213
________________ मुं कुशल करनार याय. तो पण अज्ञानी बहिरात्मा ते इंजि. योमा अर्थने विषे मिथ्यात्वना संस्कारथी रमे . ॥५५॥ चिरं प्रसुप्तास्तमसि, मूढात्मानः कुयोनिषु ॥ अनात्मीयात्मनूतेषु, ममाहमिति जाग्रति ॥५६॥ शब्दार्थः-अनादि मिथ्यात्व संस्कार होवाने लीधे चोराशी लाख कुयोनिमां दीर्घकालथी सूतेला बहिरात्मा परमार्थथी पोताना संबंधी नहि एवा पुत्र स्त्री विगेरेने विषे 'हुँ अने म्हा. रुं' एम कहेता बता जागे . ॥ ५६ ॥ पश्येन्निरंतरं देवमात्मनोऽनात्मचेतसा ॥ अपरात्मधियाऽन्येषामात्मतत्वे व्यवस्थितः ॥७॥ शब्दार्थः-आत्मतत्वने विषे रहेलो अंतरात्मा पोतानां शरीरने अनात्मबुद्धिथा (था श्रात्मा नथी एवा विचारथी) निरंतर जूए डे तेमज बीजाउने था परमात्मा नथी एएवी बुद्धिथी जूए . अज्ञापितं न जानति, यथा मां झापितं तथा ॥ मूढात्मानस्ततस्तेषां, वृथा मे ज्ञापनाश्रमः ।। ५७ ॥ .. शब्दार्थ--मूढात्मा जेम आत्मस्वरूप न समजाव्या उता नथी जाणतो तेमज समजाव्या बता पण नथी जाणतो. तेथी ते मूढात्माने म्हारे समजाववानो श्रमज फोगट बे. ॥ ५ ॥ यद्बोधयितुमिहामि, तन्नादं यदहं पुनः ॥ ग्राह्यं तदपि नान्यस्य, तत्किमन्यस्य बोधये ॥एए॥ ___ शब्दार्थः-जे विकरूपमा व्याप्त य रहेला श्रात्मस्वरूपने अथवा देहादिकने समजावधानी इशा करुं बु. ते हुँ पोते परमा. पंची यात्मस्वरूप नथी श्रने बलजे हुँ विदामरूप ढुं ते

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