Book Title: Prakaranmala
Author(s): Harishankar Kalidas Vadhvanwala
Publisher: Bhogilal Tarachand Shah
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(१७) शब्दार्थः-जम एवो बहिरात्मा इंडियो सहित ते शरीररूप यंत्रोने यात्माने विषे श्रारोपण करी“ हुं गौरवू, हुं सारां नेत्र वालो बु. एम मानीने न सुख बतां सुख माने दे श्रने अंत. रात्मा ते आरोपने त्यजी द मोक्षपदने पामे . ॥ १० ॥
मुक्त्वा परत्र परबुद्धिमहंधियं च, .. संसारपुःखजननी जननाद्विमुक्तः॥ . ज्योतिर्मयं सुखमुपैति परात्मनिष्ट--
स्तन्मार्गमेतदधिगम्य समाधितंत्रम् ॥१०॥ शब्दार्थः-संसारथी मुक्त अने परमात्म स्वरूपनो जाप एवो पुरुष परमास्वरूपना जाणपणाना एकाग्रताने प्रतिपादन करनारा मोकमार्गना उपायरूप आशास्त्रने पामीने शरीरादिक पदार्थमा परमात्म बुद्धिने अने संसारना फुःखने उत्पन्न करनारी अबुद्धिने त्यजो दक्ष ज्ञानमय एवां सुखने पामे . १०५
॥ इति समाधि शतकं संपूर्णम् ॥
॥अथ सऊनचित्तवल्लन॥ नत्वा वीरजिनं जगत्रयगुरुं मुक्ति श्रियो वल्लन, पुष्पेषुदयनीतबाण निवहं संसार जुःखापदम्॥ वक्ष्ये नव्यजन प्रबोधजननं ग्रंथं समासादहं, नाम्ना सऊनचित्तवल्लनमिमं शृण्वतुं संतो जनाः १
शब्दार्थः-त्रण जगत्ना गुरु, मुक्तिरूप लदमीना पति, कामना वाण समूहने दय करनारा अने संसारनां फुःखने नाश करनारा श्री वीर प्रजुने नमस्कार करीने नव्य माणसोने ज्ञान प्रगट करनारा पा सजानचित्तवन नामना ग्रंथने संक्षेपयी कई मु, तेने संत पुरुषो सांजलो ॥१॥........

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