Book Title: Prakaranmala
Author(s): Harishankar Kalidas Vadhvanwala
Publisher: Bhogilal Tarachand Shah

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Page 211
________________ (२०) शब्दार्थः बहिरात्मा बाह्यवस्तुने विषे त्याग अने अजिलाप करे . अंतरात्मा श्रात्मस्वरूपने विषे त्याग अने अन्निलाष करे , परंतु कृत कृत्य एवा परमात्माने तो अंतरात्माने विषे अनि. बाप अने बहिवस्तुने विषे त्याग एमानुं कां नथी. ॥ ४ ॥ युंजीत मनसात्मानं, वाकायान्यां वियोजयेत्॥ मनसा व्यवहारं तु, त्यजेबाकाययोजितम् ॥ ४ ॥ शब्दार्थ-मानसिक ज्ञानथी श्रात्मा ध्यान करवं, पण वाणी अने कायाथी आत्माने जूदो करवो वली मननी साथे वा. णी अने कायाथी जोमाएला व्यवहारने मने करीने त्यजी देवो. जगदेहात्मदृष्टीनां, विश्वास्यं रम्यमेव च ॥ स्वात्मन्येवात्मदृष्टीनां, व विश्वासः क्व वा रतिः ॥ ४ए॥ शब्दार्थः-शरीरने विषेत्रात्मदृष्टिवाला अर्थात् बहिरात्माने जगत् विश्वास करवा योग्य अने मनोहर लागे , परंतु श्रा माने विवे श्रात्मदृष्टिवाला अर्थात् अंतरात्माने क्या विश्वास श्रने क्या रति होय होय ? अर्थात् तेने पुत्रादिकने विषे वि. श्वास अथवा प्रीति होती नथी. आत्मज्ञानात्परं कार्य, न बुछो धारयेचिरम् ॥ कुर्यादर्थवशात्किंचिछाकायान्यामतत्परः ॥ ५ ॥ शब्दार्थः-यात्मज्ञान विना बोजु कार्य बहु वखत मनमां धारवू नहि श्रने तेवु जोजन व्याख्यानादिक कार्य कर पमे तो ते श्रासक्ति रहित थश्ने फक्त वाणी अने कायावमे पोताना अने परना उपकारना वशथीज करवू. ॥ ५० ॥ यत्पश्यामोन्न्यैिस्तन्मे, नास्ति यन्नियतेन्जियः॥ अंतः पश्यामि सानंदं, तदस्य ज्योतिरुत्तमम् ॥ ५ ॥

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