Book Title: Prakaranmala
Author(s): Harishankar Kalidas Vadhvanwala
Publisher: Bhogilal Tarachand Shah
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(२० ) सज्यिाणि संयम्य, स्तिमितेनांतरात्मना ॥ यत्क्षणं पश्यतो नाति, तत्तत्त्वं परमात्मनः ॥ ३० ॥
शब्दार्थः सर्वे इंडियोने नियममा राखीने कण मात्र अनु जव करवाथी निश्चल एवा मन वझे जे स्वरूप देखाय , तेज परमात्मानुं स्वरूप . ॥३०॥ यः परात्मा स एवाहं, योऽहं स परमस्ततः॥ अहमेव मयोपास्यो, नान्यःकश्चिदिति स्थितिः ॥३२॥ __ शब्दार्थः-जे परमात्मा तेज हुं. अने जे हुं ते परमात्मा, तेथो हुंज म्हारे पोताने नपासना करवा योग्य छं. बोजो कोइ नपासना करवा योग्य नथी, ए स्थिति के. ॥ ३१ ॥ प्राच्याव्य विषयेच्योऽहं, मां मयेव मयि स्थितम् ॥ बोधात्मानं प्रपन्नोऽस्मि, परमानंदनिर्वतम् ॥ ३२ ॥
शब्दार्थः-श्रात्मस्वरूपवमे करीने विषयथी निवृत्ति पामीने आत्मस्वरूपने विषे रहेला म्हारा ज्ञानस्वरूर श्रने उत्तम श्रा नंदश्री सुखी एवा श्रात्माने हुं प्राप्त थयेलो बुं ।। ३ ।। यो न वेत्ति परं देदा-देवमात्मानमव्ययम् ॥ बनते न स निर्वाणं, तप्त्वापि परमं तपः ॥ ३३ ॥
शब्दार्थः-जे पुरुष, प्राप्त थयेला देहथी पर अने श्रव्यय एवा श्रात्माने कहेली रोते नथी जाणतो, ते उत्कृष्ठ एवां तपने करतो तो मोक्षपद पामतो नथी. ॥ ३३॥
आत्मदेहांतरज्ञान--जनिताल्दादनिर्वृतः तपसा.पुष्कृते घोरं, मुंजानोऽपि न खिद्यते ॥३॥
शब्दार्थः-प्रारमा अने देहना नेदज्ञानथ। नत्पन्न थयेला. . हर्षे करीने सुखी अयो तो बार प्रकारनां तपथी घोर पापने

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