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इंख्यिपराजयशतक. दाश्णो विजेदेवा ॥ नारिण किंकरतं कुणंतिधिही विसय तिन्ना ॥ ५५॥ व्याख्या-जुवहिंसह के युवती सहवर्तमान संसगिकुणंतो के संसर्ग करतो थको सयलपुरकेहिं संसगिंग कुणश के समस्त पुःखोनो संसर्ग करे . ए माटे बिडालीसह के बीलामीनी साथे मुसगाणं के मूषक एटले उंदरनो संगो के संसर्ग अथवा संगत नहिहोश्सुहो के सुखदायक न थाय. ॥ ५५ ॥ हरि के वासुदेव, हर के महादेव, चउराणण के चतुरानन एवा ब्रह्मा, चंदसूर के चंड सूर्य श्रने खंदाश्णो के षमानन एवा कार्तिकेयखामि थादे देश्ने विजेदेवा के बीजा जे देवता ते पण नारिण किंकरतं कुणंति के स्त्रीउँनु किंकरपणुं करे . ए माटे ते विसयतिन्ना के० विषयने विषे तृष्णा जे जेने, एवा पूर्वोक्त प्राणीनी तृष्णाने घिकी के० धिकार ने ! धिक्कार ! ॥ ५५ ॥ सीअंच जगदंच सदंति मूढा श्बीसु सत्ता अविवेअवंता॥श्वाश्पुत्तव चयंति जाइंजीअंच नासंति अरावणुछ ॥५६॥ वुत्तूंण विजीवाणं सु उक्करायंति पावचरिआइंजयवं जासासासा पच्चा एसो हुश्णमोते॥५॥ व्याख्या-मूढा के० मूर्ख एवा पुरुषो सीअं के सीत च के अने उण्हं के जल एवो ताप सहंति के सहन करे, अने ते अविवेशवंता के अविवेकवंत एवा होता थका, श्वीसुसत्ता के स्त्रीनेविषे आसक्त ते श्वाश्पुत्तं के० श्लाति पुत्रनी परे चयंति जाई के स्वजातिनो त्याग करे. अने ते रावणुव्व के रावणनी परे जीरंचनासंति के जीवितव्यनो नाश करे . तो पण ते स्त्रीश्रादिकने नथी डांडता.॥५६॥वुत्तुं. णवि के बोलीने पण जीवाणं के जीवोना जे सुक्करायंति पावचरिया के श्रत्यंत पुष्कर एवां पाप चरित्र, जयवं के जगवन् जासा के जेहता ते ? सासा के ते ते पच्चाएसोहुश्ण मोते के एज तने प्रत्यादेश बे ॥ ७ ॥
जललवतरखंजीअंअथिरालबीविनंगुरोदेदो॥तुबाय काम नोगा निबंधणं उस्कलकाणं ॥५॥ नागो जदा पंकजलावसन्नो दुहुंथलं नानिसमेश्तीरं॥ एवं जिआ कामगुणेसुगिहा सुधम्ममग्गे नरया दवंति ॥५ए ॥ व्याख्या-जललव के जलबिंदु एटले जलना परपोटा समान तरल के० चपल एवं जीअं के जीवितव्य डे, अने लडी के लक्ष्मी ते पण अथिरावि के अस्थिर बे, अने नंगुरो देहो के दणनंगुर एवो आ देह बे. कामजोगा के कामनोग जे डे ते तुछाय के तुछ एवा अने पुस्कलरकाणं निबंधणं के लाखो गमे उःखना हेतु एवा . ॥ ५० ॥ जहा के जेम, नागो के हाथी ते पंकजलावसन्नो के कादवने
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