Book Title: Prakarana Ratnakar Part 4
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 12
________________ कर्मग्रंथ पांचमो. Ա sage युगलियामां जाय एम बे ते बदले सीधो चार पल्योपम श्रयुए वैमानिक देव याय एम जणाय बे, कारण के देशविरति युगलियां थाय ते बराबर नथी. ३६ गाथा ५७ मनुष्यजव सप्तक तथा कोइ ठेकाणे 9 जव गणेल बे ते बाबतमां पांच जव बे, पण थताज नथी; कदाच देवताना पांच जव कर्या पढीनो मनुष्यजव गए तो ६ याय, सात तो कोइ रीते मली शकता नथी. ३७ गाथा ६० पारिग्राफ पहेलामां देशविरति लइ युगलिया थवानुं व्याजबी लागतुं नयी, पण पूर्वोक्त रीति अनुसार ४ पल्योपम आयुए देव थाय. ३० गाथा ६३ पारिग्राफ बीजामां बेवटनी दोटेक पंक्तिमा बे के शुभ प्रकृतिनी रसापवर्तना शुज परिणामे होय अने अशुभ प्रकृतिनी रसापवर्तना अशुभ परिणामे होय ए विरुद्ध ने तेने बदले शुभ प्रकृतिनी रसापवर्तना अशुभ परिणामे होय अने प्रकृतिनी रसापवर्तना शुभ परिणामे होय एम जोइए. तथा ४ था पारियाफनी पांचमी पंक्तिमा रस बंधाय एम बे त्यां पढी एम समजवुं के मंद कषायोदये शुजनो रस ने तीव्र कषायोदये अशुजनो रस बंधाय. तथा पारिग्राफ पांचमानी त्रीजी पंक्तिमा ते मध्ये शब्द बे पछी तेमां पण पुण्यनो चोवाणीयो पण एटला अक्षरो वधारवा जरुर बे. पारिग्राफ ६ हानी बही पंक्तिमां संज्वलन पछी अने शब्द जोडी संज्वलन ने प्रत्याख्यानीय एम करी पढी श्रप्रत्याख्यानीय पवी अनंतानुबंधीय एम त्रण विभाग समजवा. केमके शुजनो एकठाणीयो रस बंधातो नथी. ३० गाथा ६५ पारिग्राफ पहेलामा १० मी पंक्तिमां सेलमीनो रस काढतां एकगणियो अर्ध शेर विगेरे शब्दो बदल शेलडीनो सहेजनो एकठाणीयो रस बे अने तेने कढतां अर्ध शेर एम शब्दो करवा योग्य बे; अने तेमां काढता शब्दने ठेकाणे कढता शब्द जोइए. ४० गाथा ६० पारिग्राफ ४ यानी पहेली पंक्तिमा दर्शनावरणीय एपठी अशातावेदनीय जोमी देवी ने वली श्रगल जतां प्रथम संघयण विनाने बदले प्रथम अने बेला विना मध्यना ४ संघयण जोइए. ४१ गाथा ७४ पारिग्राफ बीजामां त्रीजी पंक्तिमां झपकना दशमा गुणठाणाना अंतसमये पामीए एम बे त्यां रूपक बदल उपशम शब्द जोइए. उपशम विना पक संवतुं नथी ने पड्या विना सादिपएं केम घटे ? ४२ गाथा ७५ तेजस् अने जाषा संबंधी तथा जाषा श्रने श्वास संबंधी श्रने मन कर्म संबंधी हकीकतमां बेदु शरीरने अग्रहण योग्य बे, त्यां शरीर शब्द लागु तो नथी. बन्ने जोमनां शरीर होय तो ठीक, पण तेम नथी. Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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