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अनुक्रमणिका. तथा जंबुवृदनी पीठिकानां पाठ कूट तथा चोत्रीश षनकूट तथा ए सर्व कूटनीसमग्र संख्या तथा जे कूटोपर जिन जवन ते कूटो अने वैताढ्यनुं
खरूप वगेरे कह्यु बे..... .... .... .... .... .... १ए ६ चोत्रीश वैताढ्योने विषे वे बे गुफा , तेनुं स्वरूप कां जे. .... .... २०७ दक्षिण जरत मध्ये अयोध्या नगरीनुं प्रमाण तथा मागधादि तीर्थ कह्यांबे. २०ए
नरत तथा ऐरवत मध्ये बार बारारूप कालचक्रनुंखरूपादिक कडं . .... २१० ए चार वृत्तवैताढ्यनुं बे गाथाए करी स्वरूप कयुं . .... .... .... २१७ १० जंबुद्धीपना मध्यने विषे मेरु पर्वत जे ते तथा मेरुनां वन तथा जिननवन तथा
शिला श्रने ते शिलाने विषे रहेलां सिंहासननुं स्वरूपादि कर्वा . .... २१७ ११ गजदंतगिरि तथा तेनी स्थिति अने वर्ण तथा ऊंचपणुं तथा पहोलपणुं तथा
अधोलोकने विषे रहेनारी दिग्रकुमारिकानां स्थानक कह्यां बे तथा कुरुक्षेत्रना मध्य नागनुं पहोलपणुं तथा कुरुक्षेत्रना गिरि तथा कुरुक्षेत्रनी नदीना पह तथा कुलगिरि, जमल पर्वत, तथा पांच सह अने मेरु, एना सात अांतरा वगेरे कह्या . .... ....
.... २२५ १५ जंबुवृक्ष तथा शामलीवृद वखाएयां बे.....
.... .... शए १३ महाविदेहना बत्रीश विजयनुं पहोलपणुं तथा लांबपणुं तथा सोल वक्षस्कार
पर्वत श्रने बार अंतर नदीनां नाम तथा बत्रीश विजयनां नाम तथा बत्रीश विजयनी मुख्य बत्रीश नगरीउनां नाम तथा बत्रीश विजयनी नदी तथा
शीता अने शीतोदा नदी, खरूप कत्यु ..... .... .... .... २३५ १४ जगतीनी मांदेली दिशिए बन्ने बाजुनां चार वनमुखनु स्वरूप कडं . .... २३६ १५ विजयादिकनो विस्तार एकठो करी लाख योजन पूर्ण करी देखाड्यो बे. २३७ १६ अधोलोक मध्ये जे गाम ले ते वखाएयां . .... .... .... २३० १७ तीर्थकर तथा चक्रवर्त्ति प्रमुख क्यां उपजे ? तेनां स्थानक कह्यां . .... २३७ १० चंजमा थने सूर्यनां चार क्षेत्र तथा तेनां मामला तथा मामलां मामलानुं
अंतर तथा चंछ सूर्यनां मामलांगें परस्पर अंतर तथा ते चंद्र सूर्यना प्रत्येक मांडलाने विष मुहूर्तगति तथा एक चंद्धमानी पळवाडे तारादिकनी संख्या तथा लवण समुज्ने विषे चंड सूर्यनी संख्या तथा गति तथा मनुष्यक्षेत्रथी बाहेरला चंड सूर्यनो विचार कह्यो बे. .... ... .... .... २३० रए जंबुद्दीपनो परिधि तथा गणितपद तेमज परिधि, इकु, जीवा, धनुःपृष्ट
प्रमुख श्राव बोल जाणवानो विधि तथा जरतदेवना प्रतर करवानो विधि
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