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कर्ता : श्री पूज्य कांतिविजयजी महाराज-12 अंतरजामी हो के शिवगति गामी-म्हारा लाल मुज मन मंदिर हो के, थयो विसरामी-म्हारा लाल सु-दिशा जागी हो के भावठ भागी-म्हारा लाल प्रभु-गुण-रागी हो के हुओ वडभागी-म्हारा लाल... (१) मिथ्या संकट हो के दूर निवारी-म्हारा लाल समक्ति-भूमि हो के सु-परे समारी-म्हारा लाल करुणा शुचि -जळ हो के तिहां छंटकावी-म्हारा लाल शम-दम कुसुमनी हो के शोभा बनावी-म्हारा लाल... (२) महके शुभ-रुचि हो के परिमल पूरी - म्हारा लाल ज्ञान सुदीपक हो के ज्योति स-नूरी - म्हारा लाल धूपघटी तिहां हो के भावना केरी, म्हारा लाल सुमति गुपतीनी हो के रचना भलेरी-म्हारा लाल0...(३) संवर बिछाणा हो के तप-जप तकिया-म्हारा लाल ध्यान सुखासन हो के तिहां प्रभु वसिया-म्हारा लाल सुमति सहेली हो के समता संगे - म्हारा लाल साहिब मिलिया हो के अनुभव रंगे - म्हारा लाल0...(४) ध्याता ध्येये हो के प्रीत बंधाणी - म्हारा लाल बारमां जिनश्यु हो के मनु संगे आणी-म्हारा लाल क्षमाविजय बुध हो के मुनि जिन भाषे म्हारा लाल ओह अवलंबने हो के सवि सुख पासे - म्हारा लाल... (७)
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