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कर्ता : श्री पूज्य जीवणविजयजी महाराज 22
वधती वेली महावीरथी, माहरे हवे थई मंगलमाल के । दिन-दिन दोलत दीपती, अळगी टळी हो बहु आळ - जंजाळ के वीर- जिणंद जग वाल हो ० ॥ १ ॥
तारक त्रिशला - नंदनी, मुज मळियो हो मोटे सौभाग्य के । कोडीग विधि केळवी, तुज सेवीश हो लायक पाय लाग्य के
ताहरे जे तेह माहरे, हेजे करी हो वर-वांछित एक के । दीजे देव । दया करी, तुज संपत्ति हो मुज वल्लभ तेह के
सूतां साहेब सांभरे, बेठां पण हो दिन में बहु वार के । सेवकने न विसरजी, विनतडी हो प्रभु । ए वधार के
- वीर० ॥२॥
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- वीर० ॥३॥
- वीर० ॥४॥
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सिद्धारथ सुत - विनव्यो कर, जोडी हो मद-मच्छर छोडके कहे जीवण कवि जीवनो तुज तूठे हो सुख-संपत्ति कोड के
- वीर० ।। ५ ।।
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