Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Hasmukh Chudgar
Publisher: Hasmukh Chudgar
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विनतडी.
विनतडी.२
विनतडी.३
विनतडी मनमोहन मारी सांभळो - श्री पूज्य धर्मरत्नत्रण महाराज 12 विनतडी मनमोहन मारी सांभळो, हुं छु पामर प्राणी नीपट अबुझजो; लांबुं ट्रंकुं हुं कांई जाणुं नहि, त्रिभुवननायक ताहरा घरनुं गुज्ज जो. पेला छेल्ला गुणठाणानो आंतरो, तुज मुज मांहे आबेहूब देखायजो; अंतर मेरु सरसव बिंदु सिंधुनो, शी रीते हवे उभय संघ संधाय जो. दोष अढारे पाप अढारे तें तज्या, भाव दिशा पण दूरे कीध अढार जो; सघळा दुर्गुण प्रभुजी प्रभुजी में अंगीकर्या, शी रीते हवे थाउं एकाकार जो. त्रास विना पण आणामाने ताहरी, जड चेतन जो लोकालोक मंडाण जो; हुं अपराधी तुज आणामानुं नहि, कहो स्वामी किम हुं पामुंपदनिर्वाण जो अंतर मुखनी वातो विस्तारी करू. पण भीतरमां कोरो आपो आप जो; भाव विनानी भक्ति लुखीनाथजी, आशीष आपो कापो सघळांपाप जो. यादश आणा सूक्ष्मतरप्रभु ताहरी तादृश रूपेमुजथी कदीये न पळाय जो; वात विचारी मनमां चिंता मोटकी, कोई बतावो स्वामीसरळ उपाय जो. अतिशयधारी उपकारी प्रभु तुं मल्यो, मुज मन माहे पूरो छे विश्वास जो; धर्मरत्नत्रण निर्णळ रत्न आपजो, करजो आतम परमातम प्रकाश जो.
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विनतडी.७
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