Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Hasmukh Chudgar
Publisher: Hasmukh Chudgar

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Page 377
________________ कर्ताः श्री पूज्य विनयविजय महाराज पामी सुगुरु पसाय रे, शत्रुजय धणी, श्री रिसहेसर विनवू ए. (१.) त्रिभुवन नायक देव रे, सेवक विनति, आदीश्वर अवधारीये ए. (२.) शरणे आव्यो स्वामी रे, हुं संसारमा विरुए वेरीए नड्यो ए. (३.) तार तार मुज तात रे, वात कशु कहु; भवभव ए भावक तणी ए. (४.) जन्म मरण जंजालरे. बाल तरुणपणं, वलीवली जरा दहे घणं ए. (५.) केमे न आव्यो पार रे, सार हवे स्वामी, श्यें न करो ए माहरी ए. (६.) तार्या तुमे अनंत रे, संत सुगुण वली, अपराधी पण उद्वर्या ए. (७.) तो एक दीनदयाल रे, बाल दयामणो, हं शा माटे वीसर्यो ए. (८.) जे गिरूआ गुणवंत रे, तारो तेहने, ते मांहे अचरिज किश्युं ए. (९.) जे मुज सरिखो दीन रे, तेहने तारतां, जग विस्तरशे जश घणो ए. (१०.) आपदे पडियो आज रे, राज तुमारडे, चरणे हुं आव्यो वही रे. (११.) मुज सरिखो कोईदीनरे, तुज सरिखो प्रभु, जोतां जग लाभे नहीं ए. (१२.) तोये करूणासिंधु रे, बंधु भुवन तणां, न घटे तुम उवेखवू ए. (१३.) तारणहारो कोई रे, जो बीजो हुवे, तो तुम्हने शाने कहुं ए. (१४.) तुहिज तारीश नेट रे, पहिलाने पछे, तो एवडी गाढिम कीसी ए. (१५.) आवी लाग्यो पाय रे, ते केम छोडशे, मन मनाव्या विण हवे ए. (१६.) सेवक करे पोकार रे, बाहिर रह्या जशे, तो साहिब शोभा कीसी ए. (१७.) अतुल बली अरिहंत रे, जगने तारवा समरथ छो स्वामी तुमे ए. (१८.) शुं आवे छे जोर रे, मुजने तारता, के धन बेसे छे किश्युं ए. (१९.) कहेशो तुमे जिणंदरे, भक्ति नथी तेहवी, तो ते भक्तिमुजने दीयो ए. (२०.) वली हेशोभगवंतरे, नहि मुज योग्यता, हमणां मुक्ति जावातणी ए. (२१.) योग्यता ते पण नाथ रे, तुमहींज आपशो, तो ते मुजने दीयो ए. (२२.) वली कहेशो जगदीश रे, कर्म घणां ताहरे, तो तेहज टालो परां ए. (२३.) कर्म अमारां आज रे, जगपति वारवा; वली कोण बीजो आवशे ए. (२४.) वली जाणो अरिंहत रे, एहने विनति; करतां आवडती नथी ए. (२५.) तो तेहिज महाराज रे, मुजने शीखवो; जेम ते विधिशुं विनवू ए. (२६.) माय तात विण कोण रे; प्रेमे शीखवे; बालकने कहो बोलवू ए. (२७.) जो मुज जाणो देह रे, एह अपावनो; खरड्यो छे कलि कादवे ए. (२८.) 3१८

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