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कर्ता : श्री पूज्य न्यायसागरजी महाराज निरखी निरखी साहिबकी सूरति, लोचन केरे लटके हो राज ! प्यारा लागो० माने बावाजीरी आण - प्या०माने दादाजीरी आण-प्यारा०(१) तुम बानी मोहे-अमीय समानी, मन मोह्यु मुख मटके हो राज
-प्यारा०(२) मुजमन भमरी परिमल समरी, चरणकमल जई अटके हो राज!
-प्यारा०(३) सूरति दीठी मुजमन मीठी, पर सुर किम नवि खटके हो राज !
-प्यारा०(४) जैन उवेखी गुणना द्वेषी, त्यांथी मुज मन छटके हो राज!
-प्यारा०(५) त्रिशलानंदन तुम पय वंदन, शीतलता हुई घटके हो राज!
-प्यारा०(६) उत्तम-शीशे न्याय जगीसें, गुण गाया रंगरटके हो राज !
-प्यारा० (७)
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