Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 05
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 3
________________ - वक्तव्य --- वर्तमान बीसवीं शंताब्दी इतिहास युग माना जाता है जिन पदार्थो का हम नाम निशान नहीं जानते थे । पर आज पौर्वात्य एवं पाश्चात्य पुरातत्वज्ञों की सोध एवं खोज से इतने साधन प्राप्त हुए हैं जैसे शिलालेखों ताम्र पत्रों ध्वंश विशेष और प्राचीन - ताड़ पत्रों पर लिखे हुए ग्रन्थ जिन्हों के अनुसंधान से अनेक स्थल भूपतियों और देश घटनाओं का सहज ही में पता लग सकता है । हाल ही में श्रीमान् डाक्टर त्रिभुवनदास लेहरचन्द बड़ोदा वाला ने वि० सं० १९८६ के जैन पत्र का रोप्य महोत्सव के विशेषांक में "संप्रति महाराज ना शिलालेखों किंवा पदच्युत सम्राट अशोक' शीर्षक लेख प्रकाशित करवाया है जिसमें अनेक ऐतिहासिक प्रमाणों द्वारा यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि जो भारत में प्राचीन शिलालेखों, स्तम्भलेखों, आज्ञा लेखों आज पर्यन्त सम्राट अशोक जो बौद्ध धर्मोपासक के माने जा रहे थे वे सब लेख अशोक के नहीं पर जैन धर्मोपासक सम्राट संप्रति अर्थात् प्रियदर्शन के ही हैं। प्रस्तुत लेख महत्वपूर्ण होने पर भी इसका लाभ केवल गुर्जर-गिराज्ञ विशेष जैन-पत्र के ग्राहक ही उठा सकते हैं । यह हिन्दी भाषा भाषियों से कैसे सहन हो सके। इस हालत में हमने इतिहास प्रेमी मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजीमहाराज से प्रस्तुत लेख का हिन्दी अनुवाद करवाके पाठकों की सेवा में रक्खा जाता है आशा है कि इसको आद्योपान्त पढ़कर जैन-धर्म के गौरव को अपने हृदय में उच्चासन देंगे-"गुण”।

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