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ભૂતપૂર્વ પ્રધાનમંત્રી શ્રીમતી ઇંદિરા ગાંધી સહિત અનેક વિશિષ્ટ શ્રી ચંદ્રપ્રભુ ભગવાનના ગુફામંદિરમાં સ્થિત બાહુબલીજીના જન ઉપસ્થિત રહ્યાં હતા. જનસામાન્ય તો અનેક વર્ષોથી આ ચિત્રપટ પર પણ સ્વતઃ મસ્તકાભિષેક કરતી દૂધની ધારા વહી હતી. પ્રતિમાને શ્રદ્ધાસુમન અર્પિત કરતા રહ્યા છે. પ્રેમ અને ત્યાગનો પૂજ્ય આત્મજ્ઞા માતાજીની નિશ્રામાં જ્ઞાનીઆએની અકળ લીલાનું સંદેશ આપતી આ અલોકિક પ્રતિમા દીર્ઘકાળથી એવી જ ધ્યાનમગ્ન એક ઉદાહરણ. ઊભી છે.. અચલ, અડોલ અને અલિપ્ત! જનસામાન્યને પ્રેમ અને
(संह : श्री स ह અહિંસાના માર્ગ પર ચાલવાની પ્રેરણા આપતી...આહ્વાન
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(जिन्ही ५२थीअनुवाद : श्रीमती सुमित्राटोलिया) આ પાવન પ્રસંગે શ્રીમદ્ રાજચંદ્ર આશ્રમ હંપી, રત્નકૂટના
મો. ૦૯૮૪૫૦૦૬૫૪૨ નોંધઃ ૨૦૦૬ના મસ્તકાભિષેક પ્રસંગે “બાહુબલી દર્શન' શીર્ષક હિન્દી ડોક્યુમેન્ટરી ફિલ્મ દિલ્હી દૂરદર્શી પરથી ૧૦-૨-૨૦૦૬ના
ટૅલિકાસ્ટ થયેલી. તેની હિન્દી અને કન્નડ ભાષાની VCD પણ તૈયાર થઈ. સંભવતઃ આ વર્ષે તેના અંગ્રેજી અ ગુજરાતી રૂપાંતરણો પણ તૈયાર થશે.
अद्वितीयसूर्य
डॉ. शुद्वात्मप्रकाश जैन खगोलनगर की नक्षत्र पाठशाला में आज वाद-विवाद प्रतियोगिता तुम्हारे गोल और उज्ज्वल रुप का क्या करना? का आयोजन हो रहा है, जिसका संचालन स्वयं देवगुरु बृहस्पति जी कर सूर्य - बस! बस! चन्द्र तू तो बहुत कमजोर है। तुझे तो केतु ग्रस लेता रहे हैं। इस प्रतियोगिता में सूर्य और चन्द्र परस्पर प्रतिद्वन्द्वी वक्ता के रूप है। में संवाद कर रहे हैं, जो इसप्रकार है -
चन्द्र - तो क्या हुआ? तू भी तो कमजोर है। तुझे भी राहु ग्रस लेता है। सूर्य - हे चन्द्रमा ! जब मैं आता हूं तो तू कहां चला जाता है?
सूर्य और चन्द्र दोनों की बहस को बढ़ते देखकर गुरु बृहस्पति बीच चन्द्र - हे सूर्य! जब मैं आता हूं तो तुम कहां चले जाते हो? में ही कहने लगे - अरे! तुम दोनों का एक-दूसरे को पूरक हो, क्यों सूर्य - मैं जब आता हूं तो सारे जगत की दिनचर्या प्रारम्भ हो जाती है। आपस में बहस करते हो। जब दिन में सूर्य प्रकाश करता है तो रात को सभी अपने-अपने कामों में लग जाते हैं।
चन्द्रमा प्रकाश करता है। दोनों के ही अपने-अपने गुण हैं, अपनी-अपनी चन्द्र - मैं जब आता हूं तो सभी को दिनभर की थकान मिटाने और खूबी है, कमजोरी भी है। क प्रकाश देता है तो दूसरा शीतलता देता है। अपने-अपने घरों की ओर लौटाने की प्रेरणा देता हूं।
लेकिन याद रखो। इस जगत में एक ऐसा भी सूर्य है और ऐसा भी सूर्य - मैं लोगों को प्रकाश और उजाला देता हं. जिससे उन्हें कार्य चन्द्र है जो तुम दोनों से भी अधिक खूबियों को अपने में समेटे हुए है । न करने में मदद मिले।
जिसे राहु ग्रस सकता है और न जिसे केतु ग्रस सकता है। जो न केवल चन्द्र - मैं लोगों को शीतलता देता हूं, जिसे उन्हें शान्ति मिले, जल्दी
दिन में, अपितु रात में भी सदाकाल प्रकाशमान रहता है। ना ही उसमें थकान उतरे और अच्छी नींद आये।
कोई कलंक है, अपितु वह तो सर्वसुन्दर है। इतना ही नहीं, वह तो सदाकाल
तीनों ही लोकों को प्रकाशित करता है। और वह अद्वितीय सूर्य है - जिनेन्द्र सूर्य - अरे चन्द्र ! तू तो सदा ही टुकड़ों में अपना रूप लेकर आता है,
भगवान! जिनेन्द्र भगवान ही अद्वितीय चन्द्र भी है। उन जैसा प्रकाशमान किन्तु मैं तो सदा ही पूर्ण गोल अवस्था में लोगों को दर्शन देता
और उज्ज्वल सूर्य-चन्द्र इस पूरे तीन लोक में नहीं है। जैसा कि कहा है
किं शर्वरीषु शशिनाहिन विवस्वता वा, चन्द्र - अरे सूर्य ! तूतो सदा ही एक जैसे रुप का दर्शन देता है, किन्तु मैं तो हर रोज एक नयी कला, नये रुप लेकर आता हूं।
युष्मन्मुखेन्दु दलितेषु तमस्सु नाथ! सूर्य - अरे चन्द्र! तू तो कलंक से युक्त है। तेरा रूप मलिन है। मैं तो
निष्पन्नषालिवन - शालिनी जीवलोक, पूरी तरह उज्ज्व ल हूं और सतरंगी भी हूं।
कार्य कियज्जलधरैर्जलभारनप्रैः ।।१९।। चन्द्र - सूर्य! भले ही मैं कलंक से युक्त हूं, तब भी लोग मेरा रूप तो
निदेशक देखा सकते हैं, किन्तु तुम तो इतने तीक्ष्ण हो कि तुम्हारी और
क. जे. सोमैया जैन अध्ययन केन्द्र, मुम्बई तो नजर भी नहीं उठा सकते, देखना तो दूर की बात है, तब
दूरध्वनी : ०२२-२१०२३२०९
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પ્રબુદ્ધ જીવન
(३श्रुशारी - २०१८