Book Title: Patan Chaitya Paripati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijayji Jain Free Library

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Page 10
________________ प्रस्तावना. स्वभावथी ज भारतवर्षना प्राचीन विद्वानोर इतिहास लखवा तरफ थोडं लक्ष्य आपेलुं छे. अने जे कंह लखायु हतुं तेनो पण घणो खरो भाग राज्यविप्लवोना दुःसमयमां नाश पामी गयो छे, मात्र व्याख्यानिक साहित्यमा उपयोगी थतो केटलोक जैन ऐतिहासिक साहित्यनो अंश व्याख्यानरसिक जैन साधुओना प्रतापे बचा पाम्यो छे; पण तेमां इतिहास करतां उपदेशतत्त्वने मुख्य स्थान आपेलु होवाथो तेवा चरित्र प्रबन्धादि ग्रन्थो पैकीना घणो भाग औपदेशिक साहित्य ज गणो शकाय, मात्र केटलाक राता. ओ अने प्रबन्धो उपरांत शिलालेखो प्रशस्तिओ चैत्यपरिवाडीओ तथा तीर्थमालाओज आधुनिक दृष्टिए प्राचीन तिहासिक साहित्यमां गणवा योग्य छे. ऐतिहासिक साहित्यमा चैत्यपरिवाडोओन स्थान. जो के चैत्यपरिवाडी वा तीर्थमालाओ तरफ घगा थोडा विद्वानोनुं लक्ष्य गयुं छे अने तिहासिक दृष्टिए तेनी खरी कीमत आंकनारा साक्षरो तो तेथी ये थोडी संख्यामां नीकलशे; एटलुं छतां पण इतिहासनी दृष्टिए चैत्यपरिवाडी ए घणुं कीमती साहित्य छे, एना उंडाणमां रहेला तात्कालिक धार्मिक इतिहासनो प्रकाश, धनी रुचि तथा प्रवृत्तिनुं दर्शन अने गृहस्थोनी समृद्ध दशानुं चित्र इत्यादि अनेक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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