Book Title: Patan Chaitya Paripati Author(s): Kalyanvijay Publisher: Hansvijayji Jain Free Library View full book textPage 8
________________ सं. १७२९मां तपागच्छीय हर्षविजयजी रचित) परिपाटिनी प्राचीन शुद्धप्रति न मळवाथी ते अंशमां तेम बनी शक्यु नथी एम अम्हारे आ स्थळे खिन्न अंत:करणे जणाक्वु जोइए. वि. सं. १९५९मा प्रवर्तकजी श्री कांतिविजयजी महाराजनी प्रेरणाथी पं. हीरालाले रचेली पाटणनां वर्तमान जिनालयोने सूचवती सं. जिनालयस्तुतिने परिशिष्टमां मूकी वर्तमान जिनमन्दिरोनुं सूचन करवा अम्हे बनतो प्रयास कर्यों छे. साक्षररत्न मुनिराज श्रीकल्याणविजयजी महाराजे अतिपरिश्रम लइ विचक्षणताथी गवेषणापूर्वक लखेल प्रस्तावना अने परिपाटिसारथी आ ग्रंथ विशेष विभूषित-अधिक उपयोगी थइ शक्यो छे, ए वाचको स्वयं समजी शके तेम छे. अत एव अम्हारे ए संबंधमां विशेष वक्तव्य प्रकट करवान अवशिष्ट रहेतुं नथी, किंतु अम्हारी कृतज्ञता दर्शाववा तेओश्रीनो अंतःकरणपूर्वक आभार मानवानुं अम्हे समुचित समजीए छीए. ____ आ ग्रंथना संशोधनकार्यमां पूज्य मुनिराज श्रीहंसविजयजी महाराजश्री तथा पंन्यासजी संपद् विजयजी महा. राजश्रीनी प्रेरणाथी मुनिराज श्रीपुण्यविजयजी महाराजे तथा मुनिराज श्रीशंभुविजयजी महाराजे तथा पं. लालचन्द्र भगवानदास गांधीए करेली सहायताथी अम्हे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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