Book Title: Parul Prasun Author(s): Pratap J Tolia Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation View full book textPage 9
________________ थे प्रतिबिम्बित जल की अथाह गहराई में तट पर खड़ी थी मैं अकेली, अनन्त की और ताकती पर मेरा प्रतिबिम्ब कहीं न था। अपने अवचेतन मानस से उसकी अल्पकालीन जीवन स्थिति के संकेत बराबर मिलते रहे होंगे। तभी तो समय को सम्बोधित कर उसने कहा था समय! तू रुक जा थोड़ी देर ही सही। कुछ बिखरे पल फिर से समेट सकूँ उतार सकूँ दिल की गहराई में हमेशा के लिए, ताकि फिर मुझे छोड़ के न चले जाएँ... - समय.....ठहर जा-! अध्ययन तथा स्वाध्यायशील प्रकृति की धनी पारुल अपने अल्प जीवन में ही बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न बन गई थी। जैन दर्शन के गहन अध्ययन का प्रभाव भी उनकी रचनाओं में देखने को मिलता है ज्ञान दर्शन संयुक्त मेरी एक आत्मा ही शाश्वत शेष तो सारे संयोगलक्षण वाले बहिर्भाव अभिव्यक्ति की सहज स्वाभाविक शैली पारुल की रचनाओं में सर्वत्र देखने को मिलती है - अंधकार, एकाकीपन एवं स्वयं मानो तीनों ही एकरूप हो गए हैं इस स्थिति में दिल की हर आह, हर पुकार अपने भीतर ही कहीं खो जाती है और फिर भी चेहरे पर बनी रहती है हँसी खुशी। पारुल की रचनाएँ यद्यपि संस्कृत निष्ठ हिन्दी में हैं किन्तु दुरूह नहीं । उनमें ऐसी स्वाभाविक सरलता है जो पाठक के अन्तर्मन की गहराईयों में बैठती चली जाती हैं । संगीतात्मकता उनका विशेष गुण है जो पारुल को अपने साहित्यमनीषी और संगीतज्ञ पिताश्री प्रतापकुमार टोलिया पारुल-प्रसून ७)Page Navigation
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