Book Title: Parul Prasun
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 22
________________ सप्त स्वरों से टूटा प्रमुख स्वर बिखर गया संगीत ... 1 कैसी है यह गतिविधना की कैसी प्रीत की रीत ? ( पारुल स्मृतिदिन - २८.८.१९९०) (स्वर-छाया २० शाम ढले ... शाम ढले ... जब शाम ढले और दीप जले तब बिटिया ! तुम नित आती हो इस सूने दिल के कोनों को प्रकाश से भर जाती हो । अनुपम प्रकाश दे जाती हो । राग - पहाड़ी - गोरख कल्याण) आँसुओं को देख हमारे, तुम हँसना सीखलाती हो, रोना-धोना छुड़ा के जग का, आनंदपथ दिखलाती हो । शाम ढले और दीप जले तब ... ३. पारुल - विदा "हँसती रही मैं सदा जीवनभर, हँसना सीखाने आई मैं । " रोने को भी हँसी में बदलने, अब भी हँसाती जाती हो । ४. जब शाम ढले ... शाम ढले और दीप जले तब ... “माँ ! बापू !! क्यों शोक मोह यह ?" क्या क्या तुम कह जाती हो, “मैं तो सदा हूँ साथ आपके” गाती और गवाती हो । शाम ढले और दीप जले तब ... “गई नहीं मैं दूर आप से, हर स्पन्दन में साँस है मेरी । शाम ढले और दीप जले तब ... पारुल - प्रसून

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