Book Title: Parul Prasun
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 21
________________ पारुल प्रसून “परालोक के आलोक में पारुल' इस लघु काव्यसंग्रह में पारुल की स्वयं की इन काव्यकृतियों के पश्चात् प्रस्तुत है यहाँ इस पारुल-प्रसून – “पारुल स्मृति'' की कृतियाँ । दिवंगत पारुल की ऊर्ध्वात्मा को श्रद्धांजलि के रूप में उसके पिता के हृदय की ये अभिव्यक्तियाँ हैं जिन में कहीं कहीं पारुल की आत्मा ने भी अपने परालोक से प्रतिसाद दिया है। पिता-पुत्री के छोटे से आत्म-संवाद-सी इस प्रथम स्मृति में ही इस बात का आभास होता है।शीर्षक है- “कालगति से परे'। १. कालगति से परे... प्र. : “पारुल-पुष्प, जो कराल-काल के द्वारा कुचला गया....!" पारुल : "ना, बापू ! मैं काल से कहाँ कुचली गई हूँ? मैंने ही तो काल को स्वाधीन किया है, कैद किया है, मेरे स्व-क्षेत्र, स्व-द्रव्य और स्व-काल में बद्ध किया है। स्व-भाव में विहर कर, स्व-काल में ही मैं संचरण कर रही हूँ। काल तो मेरे हाथ में कैद और दास है अब मुझे वह कुचल नहीं सकता, मार नहीं सकता ! काल-गति से मैं परे हो गई हूँ !!" २. पारुल-पुष्प इतना कोमल पुष्प! और इतना कठोर आघात !! कितना छोटा ओस-कण और कितना रुद्र-प्रपात !! . काल-कर्म का कैसा है यह निर्मम क्रूर उपघात, उत्पात !! (मार्ग पर - ७.१०.१९८८). पारुल-प्रसून १९

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