Book Title: Parul Prasun
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 27
________________ मुरझाई, सिधाई परमज्योति में समाई !! "पुत्री' बनकर आई, प्रसन्नता बिखेरती हुई, परम पवित्रता बनकर, मौन व्याख्यान से गुरु बोध प्रदानकर, "पथप्रदर्शिका' बनकर चली गई !! औरों ने, जगने, हैं आँसू बहाए, उन सारों को संजोकर, अपने में घुलाकर, गहन अंतस् वेदन-निर्झर से निसृत हमने बहाए हैं कवित्त के बिन्दु ! हमारे आँसू, अश्रुबिन्दु, कवित्तबिन्दु, शायद तुम्हें व्यथित कर देंगे, अतः अब एक ही आस, सदा प्रार्थना, शुभकामना भरी सतत एक मंगल प्रश्वास, अंतस्-गहनता-निष्पन्न आशीर्वाद कि, हो तुम्हारा महाविदेह में सीमंधर परमकृपालु चरणों में वास और शीघ्र ही पाओ तुम तुम्हारे सुशांत, ईप्सित, सुगतिपूर्ण, सुमेरु शैल शिखर के भी पार के ऊर्ध्वगमन को, ऊर्ध्वगगन को ।। (बेंगलोर, चैत्र शु. ९, प्रातः - १४.४.१९८९) ९. शेष-स्मृति जीवन्त पदरव, स्मित वदन, मंजु भाषण, बौछार हास्य की सब कुछ काल-गर्त में बह गए, ढह गए। प्रशान्त स्वर और अक्षर अब हैं, शेष जिस के रह गए-लेखनों में, रिकार्ड गानों में ।। (आत्मध्यान, परमगुरुओं के प्रार्थन्, पारुल सन्निधि के लोक में - बेंगलोर, प्रातः २२.७.१९८९) पारुल-प्रसून ર9

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