Book Title: Parul Prasun
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 23
________________ दूर होकर भी पास अधिक मैं" - प्रतिक्षण गाती जाती हो । दिल की धड़कन बन जाती हो। शाम ढले और दीप जले तब ... "देह नहीं मैं ज्योति आतम की, आपने ही तो सीखलाया था।" सीख हमारी फिर से हम को, तुम सीखलाती जाती हो । तुम सीखलाने आती हो। शाम ढले और दीप जले तब.... (बेंगलोर, २२.१०.१९८८) ५. शान्ति करो! शान्तिनाथ प्रभु ! शान्ति करो, क्लान्ति और अशान्ति हरो। जड़-दुर्बलता युगों युगों की मोहभाव की भ्रान्ति हरो.. शान्ति जिनेश्वर ! शान्ति करो !! भटका बाहर शान्ति खोजने, अब अंतस् में विश्रांति करो। मन-वच-काय में शान्ति भरो, आश्रव-आय की शान्ति करो.. शान्ति जिनेश्वर ! शान्ति करो !! बहिरांतर में प्रशान्ति भरो, निज-पर-सर्व की शान्ति करो..... । दिवंगता के पथ पर पल पल, आनन्द पुलकित पुष्प भरो। पथ के कंटक सारे हटाकर, ऊर्ध्वगमन, उत्क्रान्ति करो। पारुल-प्रसून २१

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