Book Title: Parshvapurana
Author(s): Bhudhardas Kavi, Nathuram Premi
Publisher: Sanmati Trust Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ १२/पार्श्वपुराण कविवर भूधरदासजी विरचित "पावपुराण श्रीपार्श्वनाथजीकी स्तुति दोहा । मोह महातम दलन दिन, तपलछमीभरंतार || ते पारस परमेस मुझ, होहु सुमतिदातार ||१|| वामानंदन-कलपतरु, जयो जगतहितकार || मुनिजन जाकी आस करि, जाचैं सिवफल सार ||२|| छप्पय । भुवनतिलक भगवंत, संतजन-कमल-दिवायर | जगतजंतु-बंधव अनंत, अनुपम गुणसायर ।। राग-नाग-मयमंत, दंत-उच्छेपन बलि अति । रमाकंत अरहंत, अतुल जसवंत जगतपति ।। महिमा महंत मुनिजन जपत, आदि अंत सबको सरन । सो परमदेव मुझ मन बसो, पार्सनाह मंगलकरन ||३|| विमलबोधदातार, विश्व-विद्या-परमेसर । लछमीकमलकुमार, मार-मातंग-मृगेसर ।। मुखमयंक अवलोकि, रंक रजनीपति लाजै । नाममंत्रपरताप, पाप पन्नग डरि भाजै ।। जय अस्वसेन-कुल-चंद्र जिन, सक्र-चक्र-पूजित-चरन । तारो अपार भवजलधितै, तुम तरंड तारन-तरन ||४|| बाघ सिंह बस होहिं, विषम विषधर नहिं डंकैं । भूत प्रेत बेताल, ब्याल बैरी मन संकैं ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 175