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३. पद साहित्य - महाकवि भूधरदास की तीसरी रचना पद-संग्रह है । इनके पदों को - १ स्तुतिपरक, २. जीव के अज्ञानावस्था के कारण परिणाम और विस्तारसूचक, ३. आराध्य की शरण के दृढ़ विश्वाससूचक, ४. अध्यात्मोपदेशी, ५. संसार और शरीर से विरक्ति उत्पादक, ६. नाम स्मरण के महत्त्व द्योतक और ७. मनुष्यत्वके पूर्ण अभिव्यञ्जक इन सात वर्गों में विभक्त किया जा सकता है । इन सभी प्रकार के पदों में शाब्दिक कोमलता, भावों की मादकता और कल्पनाओं का इन्द्रजाल समन्वित रूप में विद्यमान है । इनके पदों में रागविराग का गंगा-यमुनी संगम होने पर भी श्रृंगारिकता नहीं है । कई पद सूरदास के पदों के समान दृष्टिकूट भी हैं । "जगत-जन जआ हार चले" पद में भाषा की लाक्षणिकता और काव्योक्तियों की विदग्धता पूर्णतया समाविष्ट है । “सुनि ठगनी माया । तें सब जग ठग खाया" पद कबीर के “माया महा ठगनी हम जानी" पदसे समकक्षता रखता है। इसी प्रकार "भगवन्त भजन क्यों भूला रे । यह संसार रेनका सुपना, तन धन वारि बबूला रे" यह पद "भजु मन जीवन नाम सबेरा" कबीर के पद के समकक्ष है । “चरखा चलता नाहीं, चरखा हुआ पुराना" आदि आध्यात्मिक पद कबीर के “चरखा चलै सूरत विरहिनका" पदके तुल्य है । इस प्रकार भूधरदास के पद जीवन में आस्था, विश्वास की भावना जागृत करते हैं।
डॉ.नेमिचंद्र ज्योतिषाचार्य (भगवान महावीर और उनकी आचार्य परम्परा भाग ४ से साभार)
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