Book Title: Parshvanatha Charita Mahakavya Author(s): Padmasundar, Kshama Munshi Publisher: L D Indology AhmedabadPage 16
________________ ३ जैनग्रन्थावली' के अनुसार पद्मसुन्दर ने रायमल्लाभ्युदय की रचना संवत् १६१५ (1559 A.D.) में की और पर्श्वनाथचरित की रचना संवत् १६२५ ( 1569 A. D.) में की परन्तु विन्टरनिज' का कहना है कि पद्मसुन्दर ने पार्श्वनाथचरित्र की रचना सन् १५६५ में की थी । अकबरशाही शृंगारदर्पण की प्रति का लेखनकाल सन् १९५६९ है । अतः इस कृति की रचना इस तिथि के पूर्व की होनी चाहिए । यद्यपि प्रो० दशरथशर्मा + अपने पत्र विभिन्न तर्कों के साथ इसका रचनाकाल सन् १५६० का निश्चित करते हैं । उनका यह भी कहना है कि रायमल्लाभ्युदयकी रचना पद्मसुन्दर ने ई० १५५९ में की है अतएव उस समय तक तो वे जीवित थे ऐसा मानना चाहिए । सम्राट अकबर संस्कृत साहित्य के प्रेमी के रूप में सुप्रसिद्ध रहे हैं । उनके ग्रन्थागार में संस्कृत साहित्य की कई पुस्तकें परशियन भाषा में अनुदित थीं 7 । मुगल बादशाहों के समय जैन आचार्यों को आदरयुक्त प्रश्रय प्राप्त रहा है। आनन्दराय ( आनन्दमेरु ) जो पद्मसुन्दर के गुरु पद्मेरु के भी गुरु थे, उन्हें बादशाह बाबर और हुमायूँ के समय में आदर प्राप्त था । उसी गुरु परम्परा में आगे चल कर श्रीपद्मसुन्दर को अकबर द्वारा आदर नोट : यहाँ यह दर्शनीय है कि दोनों पुतस्कों के विवरण में भेद है । सूरीश्वर और सम्राट में लिखा है कि हीर विजयसूरि अकबर से मिले और अकबर ने अपने पुत्र शेखजी, से मँगवा कर, पद्मसुन्दर द्वारा प्रदत्त पुस्तकों को उन्हें भेंट में दीं परन्तु प्रो० दशरथ शर्मा ने अपने लेख में लिखा है कि पद्मसुन्दर की पुस्तकों का संग्रह सलीम के पास था और सलीम ने हीरविजयसूरि को दिया था । यहाँ यह भी द्रष्टव्य है कि हीरविजयसूरि बादशाह अकबर के दरबार में संवत् १६३९ में आए थे अतः पद्मसुन्दर का स्वर्गवास इससे पूर्ण होना सिद्ध होता है । 1. जैन ग्रन्थावली, श्री जैन श्वेताम्बर कॉन्फरन्स, बम्बई, सं० १९६५, पृ० ७७ 1 2. हिस्ट्ररी ओफ इन्डियन लिटरेचर, मोरित्र विन्टरनित्ज, भाग २, दिल्ली, १९७२; पृ० ५१६ । 3. अकबरशाही शृङ्गारदर्पण, पृ० २३ । 4. प्रो० दशरथशर्मा का लेख, के० माघवकृष्णशर्मा द्वारा उद्धृत, अकबरशाही शृंगारदर्पण पृ० २३ । 5. "He had been alive in 1559 A. D., the date of his रायमल्लाभ्युदय", प्रो० दशरथशर्मा के लेख का उद्धरण, सम्पादक के० माघ कृष्ण शर्मा की पुस्तक 'अकबरशाही शृङ्गारदर्पण, पृ० २३ । 6. "We might perhaps add that he enjoyed during this period also the company of literati like Padmasundar and was more fond of literature than philosophy." अकबरशाही ङ्गारदर्पण, २४ । 7. के० एम० पनिकर द्वारा लिखित प्रस्तावना, अकबरखाहा शृंगारदर्पण, पृ०७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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