Book Title: Pap Punya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 11
________________ पाप-पुण्य ११ समझ में कम आती है, पर सूक्ष्म बुद्धिवाले को उमस सहन किस तरह से हो? वह तो आश्चर्य है ! पुण्यानुबंधी पुण्य एक पुण्य नहीं भटकाए ऐसा होता है, वैसा पुण्य इस काल में बहुत ही कम होता है और वह अभी थोड़े समय बाद खतम हो जाएगा। वह पुण्यानुबंधी पुण्य कहलाता है। जिस पुण्य के कर्म करें, अच्छे कर्म और उसमें सांसारिक हेतु नहीं हो, सांसारिक कोई भी इच्छा नहीं हो, उस समय जो पुण्य बाँधे, वे पुण्यानुबंधी पुण्य । पुण्य भोगते हैं और साथ में आत्मकल्याण हेतु अभ्यास, क्रिया करते हैं। पुण्य भोगते हैं और नया पुण्य बाँधते हैं, जिससे अभ्युदय से मोक्षफल मिलता है। पुण्यानुबंधी पुण्य किसे कहा जाता है कि जो आज पुण्य होता है, मज़े से सुख भोग रहे हों, कोई अड़चन नहीं पड़ती हो और फिर वापिस धर्म का और धर्म का ही पूरे दिन करते रहते हैं, वह पुण्यानुबंधी पुण्य है। वैसे विचार आएँ न, सिर्फ धर्म के ही, सत्संग में ही रहने के ही विचार आएँ । और जिस पुण्य से सुख-सुविधाएँ बहुत नहीं हों, पर ऊँचे विचार आएँ कि किस प्रकार से किसीको दुःख नहीं हो ऐसा व्यवहार करूँ, ऐसा वर्तन करूँ, भले ही खुद को थोड़ी अड़चन पड़ती हो, उसमें हर्ज नहीं है, पर किसीको उपाधि में नहीं डालूँ, वह पुण्यानुबंधी पुण्य कहलाता है। इसलिए नये अनुबंध भी पुण्य के होते हैं। प्रश्नकर्ता : पुण्यानुबंधी पुण्य का उदाहरण दीजिए । दादाश्री : आज किसी मनुष्य के पास मोटर बंगला सभी साधन हैं, पत्नी अच्छी है, बच्चे अच्छे हैं, नौकर अच्छे हैं, वह जो कुछ अच्छा मिला है, वह क्या कहलाता है? लोग कहते हैं, 'पुण्यशाली है।' अब यह पुण्यशाली क्या कर रहा है, वह हम देखें तो पूरा दिन साधु-संतों की सेवा करता है, दूसरों की सेवा करता है और मोक्ष के लिए तैयारी करता है। ऐसा-वैसा करते-करते उसे मोक्ष के साधन भी मिल आते हैं। अभी पुण्य है और नया पुण्य बाँधता है और कम पुण्य मिलें, पर विचार फिर वैसे १२ पाप-पुण्य ही आते हैं, 'मोक्ष में जाना है' वह पुण्यानुबंधी पुण्य । ये आप मुझे मिले वह आपका कोई पुण्यानुबंधी पुण्य होगा न, उसके आधार पर मिले हैं। ज़रा-सा यों ही छींटा पड़ गया होगा, नहीं तो मिल ही नहीं सकते। सारे हठ से किए हुए काम, हठाग्रही तप, हठाग्रही क्रिया, उससे पापानुबंधी पुण्य बँधता है। जब कि समझकर किया गया तप, क्रियाएँ, खुद के आत्मकल्याण हेतु सहित किए हुए कर्मों से पुण्यानुबंधी पुण्य बँधता है और किसी काल में ज्ञानी पुरुष मिल जाते हैं और मोक्ष में जाता है। दोनों दृष्टियाँ अलग-अलग प्रश्नकर्ता: अभी के समय में सामान्य व्यक्ति को ऐसा लगता है। कि खराब रास्ते अथवा खराब कर्मों द्वारा ही भौतिक सुख और सुविधाएँ मिलती हैं, इसलिए उनका कुदरती न्याय के ऊपर से विश्वास उठता जाता है और खराब कर्म करने के लिए प्रेरित होता है। दादाश्री : हाँ, वह सारा सामान्य व्यक्ति को वैसा लगता है। खराब रास्ते और खराब कर्मों द्वारा ही भौतिक सुख-सुविधाएँ मिलती हैं, वह इसलिए कि यह कलियुग है और दूषमकाल है। लोगों को, भौतिक सुख और सुविधाएँ पुण्य के बिना नहीं मिलती हैं। कोई भी सुविधा पुण्य के बिना नहीं मिलती। एक भी रुपया पुण्य के बिना हाथ में आता नहीं है। पापानुबंधी पुण्य और एक पुण्यानुबंधी पुण्य, इन दोनों को पहचानने के लिए अपनी समझ शक्ति चाहिए। इसलिए खुद भुगतता है क्या? पुण्य, फिर भी क्या बाँध रहा है? पाप बाँध रहा है। इसलिए हमें ऐसा लगता है कि ऐसे पाप के खराब कर्म करता है और सुख किस तरह भोगता है? नहीं, भोगता है वह तो पुण्य है, गलत नहीं है। कभी भी पाप का फल सुख नहीं होता है। यह तो नये सिरे से उसकी आनेवाली ज़िन्दगी खतम कर रहा है। इसलिए आपको ऐसा लगता है कि यह व्यक्ति ऐसा क्यों कर रहा है? और फिर कुदरत उसे हैल्प भी देती है। क्योंकि कुदरत उसे नीचे

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