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पाप-पुण्य बिलकुल सच्ची नहीं है। पर इस काल के हिसाब से ये अच्छे विचार होते हैं कि इसे किस प्रकार से सुख हो, किस प्रकार से उसे ज्ञान प्राप्त हो जाए, धर्म के विचार आएँ, वह अच्छी लक्ष्मी कहलाती है। पुण्यानबंधी पुण्य की लक्ष्मी कहलाती है। वह पुण्यानुबंधी पुण्य मतलब पुण्य है और वापिस नया पुण्य बाँध रहा है। विचार सब अच्छे हैं और दूसरे का पुण्य होता है और विचार खराब हैं, मतलब क्या भोग लूँ, कहाँ से ले आऊँ, पूरा दिन, रात को भी सोते-सोते मशीन चलाता ही रहता है, पूरी रात।
पाप-पुण्य ले जानीवाली है, अधोगति में, इसलिए उसे हैल्प करती है। और नया चोर हो न और आज जेब में हाथ डाला हो, तो उसे पकड़वा देती है कि भाई ना, इसमें पड़ जाएगा तो नीचे चला जाएगा। नये चोर को पकड़वा देती है, किसलिए? उर्ध्वगति में ले जाना है और वह पक्का चोर है, उसे जाने देती है। निचली गति में जाओ, बहुत मार खाओ, नया चोर बन रहा हो तो पकड़ा जाता है या नहीं पकड़ा जाता?
प्रश्नकर्ता : पकड़ा जाता है।
दादाश्री : हाँ, और पक्के चोर पकड़े नहीं जाते फिर। सरकार ऐसा करती है, वैसा करती है, पर वह किसीमें भी पकड़ा नहीं जाता। वह किसीके जाल में ही नहीं आता है। सभी को बेच खाए ऐसे हैं ! कितने कहते हैं न, इन्कम टैक्सवालों को जेब में डालकर घूमता हूँ। अपनी जोखिमदारी पर बोलता है न! ये सारी क्रियाएँ वह अपनी जिम्मेदारी पर करता है न? क्या हमारी जिम्मेदारी पर है?
पापानुबंधी पुण्य की लक्ष्मी पापानुबंधी पुण्य की लक्ष्मी मतलब क्या? वह लक्ष्मी आए तब फिर वह कहाँ से ले लूँ, किसका ले आऊँ, अणहक़ का भोग लूँ, अणहक़ का छीन लूँ, वैसे सारे पाशवता के विचार आते हैं। किसीको मदद करने का विचार तो नाम मात्र को भी नहीं आता। और उसमें भी दान करें न तो भी नाम कमाने के लिए, किस तरह मैं नाम कमा लूँ? बाक़ी, किसीके दिल को ठंडक नहीं पहुँचाता। यहाँ दिल को ठंडक पहुँचती है, ज्ञानी पुरुष की हाज़िरी में। पूरी रात दिल को ठंडक लगती रहती है और दिल में ठंडक हो, वह तो पाँच-पाँच लाख रुपये देने के बराबर है, एक एक व्यक्ति को। फिर भी दिल ठरेगा नहीं हमेशा, रुपये देने से उल्टी उपाधि होती है।
इसलिए यह पापानुबंधी पुण्य है, उनसे यहाँ आया ही नहीं जाएगा। इसलिए अपने यहाँ ऐसे लक्ष्मीपति आ नहीं पाते। यहाँ तो पुण्यानुबंधी पुण्य, सच्ची लक्ष्मी हो, ऐसे ही इकट्ठे होते हैं। सच्ची मतलब दूसरा कुछ नहीं, इस काल के हिसाब से बिलकुल सच्ची तो होती नहीं। हमारे घर पर भी
और फिर उन लोगों के वहाँ दर्शन-पधरावनी करने के लिए मुझे बुलाते हैं, वहाँ पर मुंबई में। क्योंकि लोग जानते हैं इसलिए दर्शन के लिए घर पर ले जाते हैं। वहाँ पर जाते हैं, तब वैसे तो करोड़ों रुपयों का मालिक होता है, पर जैसे मुर्दे को ही बैठाकर रखा हो न, वैसा दिखे हम लोगों
को। वह जय-जय करता है न! मैं समझ जाता है कि ये बेचारे मुर्दे हैं। फिर वहाँ पर देखता हूँ कि कौन-कौन अच्छे हैं? वहाँ उनके नौकर मिलते हैं न, अरे! शरीर मजबूत, लाल, लाल.... फिर वे रसोईये मिलते हैं न, वे तो तुंबे जैसे, हाफूज के आम ही देख लो न! तब मैं समझ जाता हूँ कि ये सेठलोग अधोगति में जानेवाले हैं, उसके आज ये चिन्ह दिख रहे
बत्तीस भोजनवाली थाली हो, पर वह तो खा नहीं सकता। हम सब साथ में खाना खाएँ, परन्तु सेठ को हम कहें, क्यों आप नहीं खा रहे हैं? तब कहेगा, मुझे डायाबिटीज़ है और ब्लडप्रेशर है।
अब सेठ को डॉक्टर ने कहा होता है कि 'देखो, ब्लडप्रेशर है आपको, डायबिटीज़ है, कुछ खाना करना नहीं है। बाजरे की रोटी और ज़रा दही खाना हं.., दूसरा कुछ खाना-करना नहीं। अरे भाई, हमारे यहाँ हम बैल को खेत में ले जाते हैं, वह बैल खाता क्यों नहीं है? खेत में है फिर भी? तब कहे, नहीं, छींका बाँधा हुआ है। यहाँ मुँह पर बाँधते हैं न कुछ? क्या कहते हैं उसे?
प्रश्नकर्ता : जाली।