Book Title: Pap Punya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 15
________________ पाप-पुण्य पाप-पुण्य पाप हो, कमी पड़ती हो और वैसा उल्टा करें तो फिर हमारे पास रहा क्या? वह अक्कल का या मेहनत का उपार्जन? बात तो समझनी पड़ेगी न? ऐसे कब तक पोल चलेगी? और उपाधि पसंद तो है नहीं। यह मनुष्य देह उपाधि से मुक्त होने के लिए है। सिर्फ पैसे कमाने के लिए नहीं है। पैसा किससे कमाते होंगे? मेहनत से कमाते होंगे या बुद्धि से? प्रश्नकर्ता : दोनों से। दादाश्री : यदि पैसे मेहनत से कमाए जाते तो इन मजदूरों के पास बहुत सारे पैसे होते। क्योंकि ये मजदुर ही अधिक मेहनत करते हैं न! और यदि पैसे बुद्धि से ही कमाए जाते तो ये सारे पंडित हैं ही न! पर उनके तो चप्पल भी आधा घिस गए होते है। पैसे कमाना बुद्धि का खेल नहीं है या मेहनत का फल नहीं है। वह तो आपने पूर्व में पुण्य किया हुआ है, उसके फल स्वरूप आपको मिलता है। और नुकसान, वह पाप किया हुआ है, उसके फल स्वरूप है। पुण्य और पाप के अधीन लक्ष्मी है। इसलिए लक्ष्मी यदि चाहिए हो तो हमें पुण्य-पाप का ध्यान रखना चाहिए। भूलेश्वर में जिसकी आधी चप्पलें घिस गई हों, वैसे बहुत अक्कलमंद लोग हैं। कोई व्यक्ति महीने के पाँच सौ कमाता है, कोई सात सौ कमाता है, कोई ग्यारह सौ कमाता है। शोर मचाकर रख देता है कि ग्यारह सौ कमाता हूँ। अरे, पर तेरी चप्पल तो आधी की आधी ही है। देखो अक्कल के कारखाने! और कमअक्कलवाले बहुत कमाते हैं। अक्कलवाला पासे डाले तो सीधे पड़ते हैं या मूर्ख मनुष्य के पासे सीधे पड़ते हैं? प्रश्नकर्ता : जिसके पुण्य हों, उसके सीधे पड़ते हैं। दादाश्री : बस, उसमें तो अक्कल चलती ही नहीं न! अक्कलवाले का तो बल्कि विपरीत होता है। अक्कल तो उसे दुःख में हैल्प करती है। दुःख में किस तरह सब वापिस ठीक कर ले, वैसी उसे हैल्प करती है। अक्कल मुनीम की और पुण्य सेठ का लक्ष्मीजी किससे आती हैं और किससे जाती हैं, वह हम जानते हैं। लक्ष्मीजी मेहनत से नहीं आती या अक्कल से या ट्रिक काम में लेने से नहीं आतीं। लक्ष्मी किससे कमाई जाती है? यदि सीधी तरह से कमा सकते तो अपने मंत्रियों को चार आने भी नहीं मिलते। यह लक्ष्मी तो पुण्य से कमाई जाती है। पागल हो तो भी पुण्य से कमाया करता है। लक्ष्मी तो पुण्य से आती है। बुद्धि का उपयोग करने से भी नहीं आती। इन मिलमालिकों और सेठों में एक छींटा भी बुद्धि का नहीं होता, पर लक्ष्मी ढेरों आती है और उनका मनीम बद्धि चलाता रहता है, इन्कम टैक्स की ऑफिस में जाता है तब साहब की गालियाँ भी मुनीम ही खाता है, जब कि सेठ तो आराम से सोया हुआ होता है। एक सेठ थे। सेठ और उनका मुनीम दोनों बैठे हुए थे, अहमदाबाद में ही तो न! लकड़ी का तख्ता उसके ऊपर गद्दी, वैसा पलंग, सामने टिपोई! और उसके ऊपर भोजन का थाल था। सेठ भोजन लेने बैठे थे। सेठ की डिजाईन बताऊँ। जमीन से तीन फीट ऊँचे बैठे थे, जमीन से ऊपर डेढ़ फीट सिर। चेहरे का त्रिकोण आकार और बड़ी-बड़ी आँखें और बड़ा नाक, होंठ तो मोटे-मोटे पकौड़े जैसे और पास में फोन। खाते-खाते फोन आता और वे बात करते। सेठ को खाना तो आता नहीं था। दो-तीन टुकड़े पूरी के नीचे गिर गए थे और चावल तो कितना ही बिखरा हुआ था नीचे। फोन की घंटी बजे और सेठ कहते कि, 'दो हज़ार गठरियाँ ले लो।' और दूसरे दिन दो लाख रुपये कमा लेता। मुनीमजी बैठे-बैठे सिरफोड़ी करते थे और सेठ बिना मेहनत के कमाते थे। इस तरह सेठ तो अक्कल से ही कमाता हुआ दिखता है। पर वह अक्कल खरे समय पर पुण्य के कारण प्रकाश देती है। यह पुण्य से है। वह तो सेठ को और मुनीमजी को साथ में रखो तो समझ में आए। खरी अक्कल तो सेठ के मुनीम में ही होती है, सेठ में नहीं। यह पूण्य कहाँ से आया? भगवान को समझकर भजना की, उससे? नहीं, बिना समझे भजना की. इसलिए। किसीके ऊपर उपकार किया, किसीका भला किया, इन सबसे पुण्य बँध गया।

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