Book Title: Pap Punya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 25
________________ पाप-पुण्य ३९ का निमित्त होता है उससे अपयश मिला करता है। वह तो निमित्त ही है मात्र। उसमें किसीका दोष नहीं है। प्रश्नकर्ता : सभी निमित्त ही माने जाएँगे न? दादाश्री : निमित्त के सिवाय इस जगत् में कोई दूसरी चीज़ है ही नहीं। जो है, वह यह निमित्त ही है। उसका आधार है पुण्य और पाप पर प्रश्नकर्ता : कितने ही झूठ बोलें तो भी सत्य में खप जाता है और कितने ही सच बोलें तो भी झूठ में खपता है। यह पजल (पहेली) क्या है?! दादाश्री : वह उनके पाप और पुण्य के आधार पर होता है। उनके पाप का उदय हो तो वे सच बोलते हैं तो भी झूठ में चला जाता है। जब पुण्य का उदय हो तब झूठ बोले तो भी लोग उसे सच स्वीकारते हैं, चाहे जैसा झूठा करे तो भी चल जाता है। प्रश्नकर्ता : तो उसे कोई नुकसान नहीं होता? दादाश्री : नुकसान तो है, पर अगले भव का। इस भव में तो उसे पिछले जन्म का फल मिला। और यह झूठ बोला न, उसका फल उसे अगले भव में मिलेगा। अभी यह उसने बीज बोया। बाक़ी, यह कोई अंधेर नगरी नहीं है कि चाहे जैसा चल जाएगा! उस कपल (दंपति) में कौन पुण्यशाली? एक भाई मेरे पास आए थे। उन्होंने मुझे कहा, 'दादा, मैंने शादी तो की है पर मुझे मेरी पत्नी पसंद नहीं है।' तब मैंने कहा, 'क्यों भाई, नहीं पसंद होने का कारण क्या है?' तब उन्होंने कहा, 'वह ज़रा लंगड़ी है, पैर से लंगड़ाती है।' फिर मैंने पूछा, 'तो तेरी पत्नी को तू पसंद है या नहीं?' तब वह कहता है, 'दादा, मैं तो पसंद आऊँ वैसा ही हूँ न! सुंदर हूँ, पढ़ालिखा हूँ, कोई शारीरिक खामी नहीं है मुझमें।' तब मैंने कहा, 'तो उसमें पाप-पुण्य भूल तेरी ही है। तूने ऐसी तो कैसी भूल की थी कि तुझे लंगड़ी मिली और उसने कितने अच्छे पुण्य किए थे कि तू इतना अच्छा उसे मिला! अरे, यह तो खुद के किए हुए कर्म ही खुद के सामने आते हैं। उसमें सामनेवाले का दोष क्या देखता है? जा तेरी भूल को भुगत ले और फिर नई भूल मत करना।' दर्द में पुण्य-पाप का रोल... प्रश्नकर्ता : मनुष्य को रोग होते हैं, उसका क्या कारण है? दादाश्री : वह उसने खुद ने गुनाह किए हैं सारे, पाप किए हैं, उससे ये रोग होते हैं। प्रश्नकर्ता : पर इन छोटे-छोटे बच्चों ने कौन-सा गुनाह किया था? दादाश्री : सभी ने पाप किए थे, उसके ये रोग हैं सारे। पूर्वभव में जो पाप किए हुए हैं, उनका फल आया इस समय। छोटे बच्चे दुःख भुगतते हैं, वह सब पाप का फल और शांति और आनंद भुगतते हैं वह पुण्य का फल। पाप और पुण्य के फल, दोनों मिलते हैं। पुण्य है, वह क्रेडिट है और पाप डेबिट है। प्रश्नकर्ता : हमें अभी इस भव में कोई दर्द हो, रोग हो जाए तो वह अपने पिछले भव के कर्म का फल है, तो फिर हम अभी कोई भी इलाज करें, तो वह हमें किस तरह सुधारता है, यदि वह व्यवस्थित ही है तो फिर? दादाश्री : वह दवाई लेते हो, वह भी व्यवस्थित हो तभी ली जाती है, नहीं तो ली ही नहीं जाती। हमें मिले ही नहीं। प्रश्नकर्ता : और कितने प्रकार की दवाईयाँ लें. तो भी उसे दवाई असर नहीं करती, ठीक नहीं होता उनसे। ऐसा भी होता है न, दादा। दादाश्री : उल्टे पैसे खतम हो जाते हैं और मरने का समय आ जाता है। जब कि पुण्य प्रकाशित हो तब थोड़ा ऐसे ही बातों-बातों में टमाटर

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