Book Title: Pap Punya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 27
________________ ४४ पाप-पुण्य बेड़ी है और पापकर्म का फल लोहे की बेड़ी है। पर दोनों ही बेड़ियाँ ही हैं न? फर्क, स्वर्ग और मोक्ष में... प्रश्नकर्ता : स्वर्ग और मोक्ष में क्या फर्क है? दादाश्री : स्वर्ग तो यहाँ जो पुण्य करके जाते हैं न, पुण्य मतलब अच्छे काम करते हैं, शुभ काम करते हैं, यानी कि लोगों को दान देते हैं, किसीको दुःख नहीं होने देते, किसीकी मदद करते हैं, ओब्लाइजिंग नेचर रखते हैं, ऐसे कर्म नहीं करते हैं लोग? प्रश्नकर्ता : करते हैं। पाप-पुण्य में भी कढ़ापा-अजंपा और ईर्ष्या होते हैं। देवी-देवता भी फिर तो निरे सुखों से ऊब जाते हैं। वह किस तरह? चार दिन विवाह में रोज लड्डू खिलाए हों तो पाँचवे दिन खिचड़ी याद आए वैसा है! वे लोग भी इच्छा करते हैं कि कब मनुष्यदेह मिले और भरतक्षेत्र में अच्छे संस्कारी परिवार में जन्म हो और ज्ञानी पुरुष से भेंट हो जाए। ज्ञानी पुरुष मिलें तब ही हल आए वैसा है। नहीं तो चतुर्गति की भटकन तो है ही। पाप के फल कैसे? आत्मा के ऊपर ऐसी परतें हैं, आवरण हैं कि एक व्यक्ति को अंधेरी कोठरी में डालकर रखें और उसे मात्र दो वक्त का खाने को दें और जिस दुःख का अनुभव होता है, वैसे अपार दुःखों का अनुभव इन पेड़-पौधे आदि एकेन्द्रिय से लेकर पँचेन्द्रिय तक के जीवों को होता है। इन पाँच इन्द्रियवाले मनुष्यों को इतना दु:ख है, तो जिन्हें कम इन्द्रिय हैं उन्हें कितना दुःख होगा? पाँचवी से अधिक छठवी इन्द्रियवाला कोई नहीं है। ये पेड़पौधे और जानवर वे तिर्यच गति हैं। तो उन्हें सख्त कैद की सजा है। यह मनुष्य गति, वह सादी कैदवाला और नर्कगति में तो भयंकर दुःख हैं, उसका जैसा है वैसा वर्णन करूँ तो सुनते ही मनुष्य मर जाए। चावल उबालें और उछलें उससे लाख गुना अधिक दुःख होता है। एक जन्म में पाँच-पाँच बार मरण की वेदना होती है और फिर भी मृत्यु नहीं होती। वहाँ पर देह पारे जैसी होती हैं। क्योंकि उन्हें दुःख का वेदन करना होता है, इसलिए मृत्यु नहीं होती। उनके हर एक अंग छिद जाते हैं और फिर जुड़ जाते हैं। वेदना भोगनी ही पड़ती है। नर्कगति यानी उम्रकैद की सजा। दादाश्री : अर्थात् अच्छे काम करे तो स्वर्ग में जाता है और बुरे काम करे तो नर्क में जाता है। और अच्छे-बुरे काम मिश्चर करे पर उसमें बुरे काम कम करे, वह मनुष्य में आता है। इस तरह से चार भाग में काम करने के फल मिलते रहते हैं। और काम करनेवाला कोई भी मोक्ष में नहीं जा सकता। मोक्ष के लिए तो कर्त्ताभाव नहीं रहना चाहिए। आत्मज्ञान मिले तब कर्त्ताभाव टूटता है और कर्त्ताभाव टूटे तो मोक्ष हो जाए। पुण्य के फल कैसे? पुण्य मतलब जमा रकम और पाप मतलब उधार रकम। जमा रकम जहाँ खर्च करनी हो वहाँ खर्च की जा सकती है। देवी-देवताओं को नजरकैद होती है पर उन्हें भी मोक्ष तो नहीं मिलता। आपके घर शादी हो और आप सबकुछ भूल जाते हो, संपूर्ण मोह में तन्मय होते हो। आईस्क्रीम खाओ तो जीभ खाने में होती है, बैन्ड बजे तो कान को प्रिय लगता है। आँखें दूल्हेराजा को देख रही होती है, नाक अगरबत्ती और सेन्ट में जाती है। वे पाँचों ही इन्द्रियाँ काम में लग जाती है। मन अँझट में होता है। यह सब हो, वहाँ आत्मा याद नहीं आता। उसी प्रकार देवी-देवताओं को हमेशा वैसा ही होता है। इससे अनेक गुना विशेष सुख होता है इसलिए वे भान में ही नहीं होते। उन्हें आत्मा का खयाल ही नहीं आता। पर देवगति पाप-पुण्य के गलन के समय.. पाप का पूरण करते हैं न, उसका जब गलन होगा तब पता चलेगा! तब तेरे छक्के छूट जाएँगे। अंगारों के ऊपर बैठे हों, वैसा लगेगा!! पुण्य का पूरण करेगा तब पता चलेगा कि कैसा और ही तरह का मज़ा आता है। इसलिए जिस-जिस का पूरण करो वह देख-विचारकर करना कि गलन

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