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पाप-पुण्य
का रस पीए तो भी रोग मिट जाता है। इसीलिए पुण्य पर आधारित है। आपका पुण्य फल देने के लिए तैयार हो जाए तो सब ऐसे ही फ्री ऑफ कॉस्ट मिल जाता है और पाप फल देने के लिए तैयार हो जाए तो अच्छी वस्तु हो, वह भी उल्टी पड़ जाती है।
बीमारी में पुण्य से भुगतना कम हो जाता है। बीमारी में पाप से भुगतना बढ़ जाता है। पुण्य नहीं हो तो पूरा ही भुगतना पड़ता है।
अब पुण्य हो तो वैद्यराज अच्छे मिल जाते हैं। टाइम आ मिलता है। सब मिल जाता है और शांति रहती है। दर्द डॉक्टर ने मिटाया? पुण्य ने मिटा दिया और पाप से खड़ा हुआ था। तब दूसरा कौन मिटाएगा? डॉक्टर निमित्त है!
प्रश्नकर्ता : रोग होना वह पाप का उदय कहलाएगा?
दादाश्री : तब और क्या है वह? यह रोग तो पाप है और निरोगता वह पुण्य है।
आयुष्य लम्बा अच्छा या छोटा? प्रश्नकर्ता : बहुत लम्बी आयु, बहुत लम्बा आयुष्य वह पुण्य का फल है या पाप का फल है?
दादाश्री : हाँ, लोगों को गालियाँ सुनाने और लोगों की निंदा करने के लिए यदि जीवन हो तो पाप का फल है! खुद के आत्मा का भले के लिए या दूसरों के भले के लिए कोई अधिक जीता है, तो वह पुण्य का फल है।
पुण्यशाली का आयुष्य लम्बा होता है, ज़रा कम पुण्य हो तो आयुष्य टूट जाता है, बीच रास्ते में! अब कोई मनुष्य बहुत पापी हो, और आयुष्य लम्बा हो तो? उसे भगवान ने क्या कहा है कि पापी का आयुष्य कैसा होना चाहिए? हम भगवान से पूछे कि, 'पापी का आयुष्य कितना हो, तो अच्छा माना जाएगा?' तब कहें कि, 'जितना कम जीए उतना अच्छा।' क्योंकि ऐसे पाप के संयोगों में है, इसलिए कम जीए तो वे संयोग बदलेंगे
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पाप-पुण्य उसके! पर वह कम जीता नहीं है न! यह तो लेवल बताने के लिए हमें कहते हैं, परन्तु अधिक जीता है, वह सौ वर्ष भी परे करता है और इतने सारे पाप के दोने इकट्ठे करता है कि कितने गहरे जाएगा वह तो वही जाने! और पुण्यशाली व्यक्ति अधिक जीए वह बहुत अच्छा है।
परभव की गठरियाँ किस की? परदेश की कमाई परदेश में ही रहेगी। यह मोटर-बंगले, मिलें, बीवी-बच्चे सभी यहीं पर रखकर जाना पड़ेगा। इस अंतिम स्टेशन पर तो किसीके बाप का भी चले वैसा नहीं है न! मात्र पुण्य और पाप साथ में ले जाने देंगे। दूसरी सादी भाषा में तुझे समझाऊँ तो यहाँ जो-जो गुनाह किए उनकी कलमें साथ में आएँगी। उस गुनाह की कमाई यहीं पर रह जाएगी
और वापिस केस चलेगा। कलमों के हिसाब से नई देह प्राप्त करके फिर से नये सिरे से कमाई करके उधार चुकाना पड़ेगा। इसलिए मुए, पहले से ही सीधा हो जा न ! 'स्वदेश' में तो बहुत सुख है। पर स्वदेश देखा ही नहीं न!
प्रश्नकर्ता : मनुष्य जन्म में सत्कार्य करने के बाद, उसके देहविलय के पश्चात्, उस आत्मा की परिस्थिति कैसी होती है?
दादाश्री : सत्कार्य करे तो पुण्य बँधता है। वह क्रेडिट होता है, तो मनुष्य में अच्छे घर में जन्म मिलता है। राजा होता है या प्रधानमंत्री बनता है या उससे भी अधिक सत्कार्य किए हों तो देवगति में जाता है। सत्कार्य करे वह क्रेडिट कहलाता है, वह फिर क्रेडिट भोगने जाता है। और खराब कार्य किए हों, वह डेबिट भोगने जाता है फिर, दो पैर में से चार पैर हो जाते हैं! यह आप एस. ई. बने हो वह क्रेडिट के कारण! और डेबिट हो तो मिल में नौकरी करनी पड़े। पूरे दिन मेहनत करे तो भी पूरा ही नहीं होता। इसलिए यह क्रेडिट-डेबिट के आधार पर ये चार गतियाँ और क्रेडिट-डेबिट उत्पन्न नहीं हुआ तो मोक्षगति में जाता है।
स्वार्थ करने से पापकर्म बँधते हैं और नि:स्वार्थ करने से पुण्यकर्म बँधता है। पर दोनों ही कर्म हैं न? पुण्यकर्म का फल है वह सोने की