Book Title: Pap Punya Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 1
________________ दादा भगवान कथित पाप-पुण्य मनुष्यगति देवगति मोक्ष हेतु, पुण्यानुबंधी पुण्य समकित प्राप्ति के लिए पुण्यानुबंधी पुण्य चाहिए। क्रोधमान-माया-लोभ कम हो जाने चाहिए। तब वह समकित की ओर जाएगा। हमारी केवल मोक्ष में ही जाने की इच्छा होनी चाहिए और उस इच्छा के लिए जो-जो किया जाता है, वह क्रिया पुण्य बाँधती है। क्योंकि हेतु मोक्ष का है न, इसलिए। फिर खुद के पास जो कुछ हो उसे लुटा दे! परायों के लिए लुटादे, वह पुण्यानुबंधी पुण्य कहलाता है। किसी भी क्रिया में बदले की इच्छा नहीं रखे, सामनेवाले को सुख देते समय किसी भी प्रकार से बदले की इच्छा नहीं रखे, वह पुण्यानुबंधी पुण्य कहलाता है। -दादाश्री ISBN 978-81-89933-67-8 44 97881891933678 नर्कगति तिर्यंचगतिPage Navigation
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