Book Title: Pap Punya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 31
________________ पाप-पुण्य धर्म अधिक होगा और दूसरा सब कम होगा। अर्थात् हर कोई अपने हिसाब से पुण्य का टेन्डर भरता है। दान मतलब बो कर काटो प्रश्नकर्ता : आत्मा और दान का कोई संबंध नहीं है तो फिर यह दान करना ज़रूरी है या नहीं? दादाश्री : दान मतलब क्या? कि देकर लो। यह जगत् प्रतिघोष स्वरूप है। इसलिए जो आप करोगे न वैसा प्रतिघोष आएगा। उसके ब्याज के साथ। इसलिए आप दो और लो। यह पिछले जन्म में दिया था, अच्छे काम में पैसा खर्च किया था, वैसा कुछ किया था, उसका हमें फल मिला, अब वापिस ऐसा नहीं करेगा तो फिर मटियामेट हो जाएगा। हम खेत में से गेहूँ तो ले आए चार सौ मन, पर भाई उसमें से पचास मन बोने नहीं गए तो फिर? प्रश्नकर्ता : तो उगेगा नहीं। दादाश्री : वैसा है यह सब। इसलिए देना चाहिए। इसका प्रतिघोष ही आएगा, वापिस आएगा, अनेक गुना होकर। पिछले जन्म में दिया था इसीलिए तो अमरीका में आया गया, नहीं तो अमरीका आना आसान है क्या? कितने पुण्य किए हो तब यह प्लेन में बैठने को मिलता है, कितने ही लोगों ने प्लेन देखा तक नहीं है! प्रश्नकर्ता : जैसे इन्डिया में कस्तूरभाई लालभाई की पीढ़ी है, तो उनकी दो, तीन, चार पीढ़ियों तक पैसे चलते रहते हैं, उनके बच्चों के बच्चों तक। जब कि यहाँ अमरीका में कैसा है कि पीढ़ी होती है, पर बहत हुआ तो छह-आठ वर्ष में सब खतम हो जाता है, या फिर पैसे हों तो चले जाते हैं और नहीं हों तो पैसे आ भी जाते हैं। तो उसका कारण क्या होगा? दादाश्री : ऐसा है न, वहाँ का जो पुण्य है न, इन्डिया का पुण्य, वह पुण्य इतना गाढ़ होता है कि धोते रहें, फिर भी जाता नहीं और पाप ५२ पाप-पुण्य भी इतने गाढ़ होते हैं कि धोते रहें, फिर भी जाते नहीं। इसलिए, वैष्णव हो या जैन हो, पर उसने पुण्य इतने मज़बूत बाँधे हुए होते हैं कि धोते रहें फिर भी जाते नहीं। जैसे की पेटलाद के दातार सेठ, रमणलाल सेठ की सात-सात पीढ़ियों तक सम्पन्नता रही। फावड़ों से खोद-खोदकर धन दिया करते थे लोगों को, फिर भी कभी कमी नहीं पड़ी। उन्होंने पुण्य जबरदस्त बाँधा था, अचूक। और पाप भी ऐसे अचूक बाँधते हैं, सातसात पीढ़ियों तक गरीबी नहीं जाती। अत्यंत दु:ख भुगतते हैं, अर्थात् एक्सेस भी होता है और मीडियम भी रहता है। यहाँ अमरीका में तो उफनता भी है और फिर बैठ भी जाता है और फिर उफनता भी है। बैठ जाने के बाद, फिर से वापिस उफनता है। यहाँ देर नहीं लगती और वहाँ इन्डिया में तो बैठ जाने के बाद उफान आने में बहुत टाइम लगता है। इसलिए वहाँ तो सात-सात पीढ़ियों तक चलता था। अब सभी पुण्य घट गए हैं। क्योंकि क्या होता है? कस्तभाई के यहाँ जन्म कौन लेगा? तब कहें, ऐसे पुण्यशाली जो उनके जैसे ही हों, वे ही वहाँ जन्म लेंगे। फिर उसके यहाँ कौन जन्मे? वैसा ही पुण्यशाली फिर वहाँ जन्मता है। वह कस्तूरभाई का पुण्य काम नहीं करता। वह फिर दूसरा वैसा आया हो न तो फिर उसके पुण्य। यानी कहलाती है कस्तूरभाई की पीढ़ी, और आज तो ऐसे पुण्यशाली हैं ही कहाँ? अब अभी इन पिछले पच्चीस वर्षों में तो कोई खास ऐसा नहीं है। दो नंबरी धन का दान... प्रश्नकर्ता : दो नंबर के रुपयों का दान दें, तो वह नहीं चलेगा? दादाश्री : दो नंबर का दान नहीं चलेगा। पर फिर भी कोई मनुष्य भूखों मर रहा हो और दो नंबर का दान दें तो उसे खाने के लिए चलेगा न! दो नंबर में कुछ खास नियम के अनुसार परेशानी आती है, पर और तरह से हर्ज नहीं होता। वह धन होटलवाले को दें तो वह लेगा या नहीं लेगा? प्रश्नकर्ता : ले लेगा।

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