Book Title: Pap Punya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 30
________________ पाप-पुण्य ही हाजिर जवाब सब आ ही जाता था। किसीके निमित्त से किसीको मिलता है? प्रश्नकर्ता : जिसके लिए खर्च किया, उसके हिस्से में पुण्य जाता है न? नहीं कि करनेवालों को। आप जिसके लिए जो कार्य करते हो, उसका फल उसे मिलेगा? हम जिसके लिए जो कार्य करें, उसका पुण्य करें, वह उसे मिलेगा, हमें नहीं मिलेगा? करे उसे नहीं मिलेगा? इसमें सही क्या है? दादाश्री : हम करें और दूसरे को मिले? ऐसा सुना है कभी? प्रश्नकर्ता : उसके निमित्त से हम करते हैं न? दादाश्री : उसके निमित्त से हम करें न, उसके निमित्त से हम खाते हों तो क्या हर्ज है? नहीं, नहीं। वैसा सब इसमें फर्क नहीं है। यह तो बनावट करके लोगों को उल्टे रास्ते पर चढाते हैं. उसके निमित्त से! उसे नहीं खाना हो और हम खाएँ तो क्या हर्ज है? पूरा नियमवाला जगत् है सारा! आप करो तो आपको ही भुगतना पड़ेगा। दूसरे किसीको लेना-देना नहीं है। पाप-पुण्य सद्विचार उत्पन्न हों। दादाश्री : वह अलग चीज़ है। पर आपकी वाह-वाह हुई, तो मानों पूर्ण हो गया, खर्च हो गया। टेन्डर पास करवाने चाहिए पुण्य... प्रश्नकर्ता : ये सभी लोग लक्ष्मी के पीछे बहुत दौड़ते हैं। तो उसका चार्ज अधिक होगा न, तो उन्हें अगले जन्म में लक्ष्मी अधिक मिलनी चाहिए न? दादाश्री : हमें लक्ष्मी धर्म के रास्ते पर खर्च करनी चाहिए. ऐसा चार्ज किया हो तो अधिक मिलेगी। प्रश्नकर्ता : पर ऐसे मन से भाव करते रहें कि मझे लक्ष्मी मिले. तो अगले भव में, ऐसे भाव किए वह चार्ज किया, तो उसे कुदरत लक्ष्मी की पूर्ति नहीं करेगी? दादाश्री : नहीं, नहीं। उससे लक्ष्मी प्राप्त नहीं होती। यह लक्ष्मी मिलने के जो भाव करते हैं न, उससे लक्ष्मी मिलनेवाली हो तो भी नहीं मिलती। उल्टे अंतराय पड़ते हैं। लक्ष्मी याद करने से नहीं मिलती, वह तो पुण्य करने से मिलती है। 'चार्ज' मतलब पुण्य का चार्ज करे तो लक्ष्मी मिलती है। वह भी लक्ष्मी अकेली नहीं मिलती। पुण्य के चार्ज में जिसकी इच्छा होती है कि मुझे लक्ष्मी की बहुत जरूरत है, तो उसे लक्ष्मी मिलती है। कोई कहेगा, मुझे तो सिर्फ धर्म ही चाहिए। तो सिर्फ धर्म मिल जाएगा और पैसा नहीं भी हो। यानी उस पुण्य का हमने फिर टेन्डर भरा हुआ हो कि ऐसा मुझे चाहिए। वह मिलने में पुण्य खर्च हो जाता है। कोई कहेगा 'मुझे बंगले चाहिए, मोटरें चाहिए, ऐसा चाहिए, वैसा चाहिए।' तो पुण्य उसमें खर्च हो जाएगा। तो धर्म के लिए कुछ भी नहीं रहेगा। और कोई कहेगा, मुझे धर्म ही चाहिए। मोटरें नहीं चाहिए। मुझे तो इतने दो कमरे होंगे तो भी चलेगा, पर धर्म ही अधिक चाहिए। तो उसे वाह-वाह में खर्च हुआ पुण्य प्रश्नकर्ता : यह बताते हैं, वैसा नियम हो तो हीराबा के पीछे आपने खर्च किया, तब आपको पुण्य मिलेगा। दादाश्री : मुझे क्या मिलेगा? हमें लेना-देना नहीं है। मुझे तो कुछ लेना-देना ही नहीं है न! इसमें पुण्य नहीं बँधता। यह तो पुण्य भोग लिया जाता है। वाह-वाह हो जाती है। या फिर कोई खराब कर जाए तो, 'मुए को देखो न, बिगाड़ दिया सभी' कहेंगे। इसलिए यहाँ का सब यहाँ पर ही मिल जाता है। हाईस्कूल बनवाया था तो यहीं पर वाह-वाह हो गई। वहाँ कुछ मिलेगा नहीं। प्रश्नकर्ता : स्कूल तो बच्चों के लिए बनवाया, वे लोग पढ़े-लिखें,

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