Book Title: Pannar Tithi
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ अनुसंधान-२९ 'आगमसारोद्धार' नामनी आ रचना होवानुं सूचवायुं छे. कर्ता- नाम 'धर्मदत्त' होय तेवी छाप पडे छे. प्रतिलेखक 'मुनी रूपचंद' छे, अने तेणे आ रचनाने 'तिथकला' तरीके ओळखावेल छे. आ आखीये रचना अनेक दृष्टिथी अध्ययन करवा योग्य लागे छे. आ तबक्के तो तेनो प्रारम्भिक के अछडतो परिचय ज करावी शकायो छे. परन्तु आ रचना एकवार प्रकाशित थई जाय ते बहु महत्त्वनुं छे. आशा छे के आमां विविध क्षेत्रना अभ्यासीओने रस पडशे अने आ रचनाना बाह्यआन्तर एम उभय रूप परत्वे तेओ नवो नवो अभ्यास आपशे. आमां आवता पारिभाषिक शब्दोनो कोष थवो जरूरी छे. पण केटलाक शब्दोना अर्थ समजाता नथी तेथी हाल साहस कर्यु नथी. श्रीमुनीचन्द्रनाथविरचित पन्नरतिथि ॥ श्रीगुरुभ्यो नमः ॥ अथ श्रीषटदर्शनेश्वर माहाब्रह्मस्वरूप श्रीसद्गुरुधर्मदत्तदेव श्री मुनीचन्द्रनाथप्रकाप्सीते षट्दर्शनशास्त्रसारोधारे श्रीजिनागमसिद्धान्ते माहातत्वसुद्ध ज्ञाननय हेतु ब्रह्मकेवलतिथीकलावांणी लिख्यन्ते: दोहराः श्री जिनशाशनसामीया अल्लख अगोचर आदि । परमेश्वर परिब्रह्म पद युग युगनाथ युगाद ॥१॥ अजर अमर अती आगम गम अल्लह अवाह अपार । अक्षय अव्यय अद्वैत पद, सिध निरंजन सार ॥२॥ युग युग आदि धरण जिण उपजें धर अवतार । जंगम उज्जल योगसीध आगमधर अधिकार ॥३॥ युग आदि जिन योगेस्वरा युग जागवयो धर्म । आगम वांणी उच्चरां परिब्रह्म पार मरम ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35