Book Title: Pannar Tithi
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसंधान-२९
आगम बोध माहानिध. उज्जल सूरा सोह चढंदा आतमबीज अखे अविनासी कीधे ब्रह्म कहंदा ॥१॥ बीजें बुध्य लहो नित बोधी केवल सीध कहंदा एक निरंजन जोति अनंती जोते जोत जगंदा । आगमबीजें बीज आरोपण बीजउदे युग पार पुरण ब्रह्म शदाशिव साश्वत आद्य अलख अपार ॥२॥ साचो सुध लहिं समकीत्ति बीज बोध विचार आगमवाण वदें भगवंता आचारंग मझार । बीजें अंगें बोध जगाड्यो साधां हंदे सांइ जात जती-व्रत सूरा वीरा साचे साम सखाइ ॥३॥ आलमनाथ अमीणो साहेब जागव जोग जिणंदा तीरथनाथ धणी त्रिहुं लोके दाखें वांण दिणंदा । धर्म धडें करी धीरा हंदो ध्यावें धार धरंदा मुनीचन्द्रनाथ वदें युग जालम सोही साध कहंदा ॥४॥
इति बोधबीज सम्यक्त्वरत्नसाधन तीर्थोपदेश आराध बीजतिथिकलासाधननन्तरः अथ श्रीब्रह्मसीधान्तसिधतत्त्वजोति जगतेश्वर श्रीमुनिचन्द्रनाथ प्रकासिते निजपरसम्यक्त्वमिथ्या[त्व]द्विद्वा(धा?) चैत्य(त)न्य ब्रह्मसिधजोतिअवगाह त्रिजतिथी कलाहेतु नयज्ञानवांणी :
चालिः त्रिजें त्रण्ये तत्त्व विचारो त्रीजें अंग तवंदा त्रण्य भवन तिणे शिर सांइ ध्यांनी जेथ धरंदा । नाथ निरंजन हे निकलंकी साहिब शांति सुधारे पुरण राज करें पुरसोत्तम तेथ तवंता तारे ॥१॥ ज्योति शंभु जगदीश धणी जे ज्योति झलामल दीशें ते महिनाथ अनंता तेजें त्रिविधा रूपनिवेशे ।
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