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श्रीमुनीचन्द्रनाथविरचित पनरतिथि ॥
सं. विजयशीलचन्द्रसूरि (भूमिका) पडवा (एकम)थी लईने पूनम सुधीनी १५ तिथिने तेमज चन्द्रमानी १६ कळाने केन्द्र बनावीने रचायेली एक विलक्षण प्रकारनी रचना अत्रे प्रस्तुत छे. कुल १७ विभाग के 'चाल'मां पथरायेली आ रचनानुं नाम, तेनी एकमात्र उपलब्धं प्रतिना हांसियामां लखाया प्रमाणे, 'पत्रर तिथि' छे; रचनाना प्रान्ते पुष्पिकामां लखाया मुजब 'श्रीतिथकला' छे; अने कर्ताए छेल्ली चालमां लख्युं छे ते प्रमाणे 'आगमसारउधार' अथवा 'द्वादशांगसारउधार' एम नाम लागे छे. अहीं तो प्रतिना प्रत्येक पाने लखायुं छे ते नाम ‘पन्नर तिथि' ज राखवामां आव्यु छे.
__आ रचनाना का नाम 'मुनीचन्द्रनाथ' उर्फे 'धर्मदत्तदेव' छे, जे जैनोना कोई मतना साधु होय तेम लागे छे. समग्र रचनामा क्यांय मन्दिर के मूर्ति परत्वे अछडतो पण उल्लेख नथी, ते जोतां तेओ श्वेताम्बर परन्तु मूर्तिपूजक नहि एवा कोई गच्छना (कदाच लोंकागच्छ) साधुजन होय तेवी कल्पना थाय छे. आ कविनी के तेमनी रचनानी नोंध 'गुजराती साहित्य . कोश' तेमज 'जैन गुर्जर कविओ मां पण मळती नथी, ते वात नोंधपात्र छे. कर्ताना समय विषे, आ ज कारणे, कोई चोक्कस विगत आपवानुं शक्य नथी. जो के रचना १८मा शतक करतां वधु जूनी न होतां तेथी अर्वाचीन होवानो सम्भव अधिक जणाय छे. आम छतां, आ मुद्दे विमर्श के ऊहापोहने अवकाश छे ज.
समग्र रचना १५१ कडीमां पथरायेली छे. आदिना तथा अन्तना ४४ दोहराने बाद करतां बाकीनी १७ 'चाल' एक ज छन्दमां छे, जे सवैया प्रकारनो, ३० मात्रानां चरणवाळो कोई छन्द जणाय छे. भाषा मुख्यत्वे गुजराती छे, छतां तेमां. हिन्दी, मारवाडी, अरबी वगेरे भाषाओनी छांट सारा प्रमाणमा जोवा मळे छे.
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कर्ताए दरेक 'चाल'ना प्रारम्भे प्रतिपाद्य विषयनुं वर्णन करती अवतरणिका आपी छे, तेमां पोताना नाम साथै जोडेलां विविध विशेषणो (षटदर्शनेश्वर, माहाब्रह्मस्वरूप श्रीसद्गुरु इत्यादि) जोतां तेओ खूब तत्त्ववेत्ता तेमज तत्त्वरसिक होय तथा गूढ तात्त्विक भावोना प्रखर ज्ञाता होय तेवी छाप ऊपसे छे, अने समग्र रचनानो ऊंडाणथी अभ्यास करनारने ते छाप यथार्थ होवानी प्रतीति पण थया विना रहेती नथी. ब्रह्मविद्याना तेमज जैन, वैदिक तथा इस्लामी तत्त्वविद्याना अधिकारी विद्वान् तेओ हशे ज.
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कृतिनो उपरछल्लो अभ्यास करतां एम जणाय छे के आ रचना, कोई मुसलमान तत्त्वपिपासु अमीर के सूबा के सुलतानने, जैन, हिन्दू तथा इस्लाममां वर्णित अथवा मान्य बाबतोमां क्यां एक्य छे अने क्यां मतभेद छे, ते समजाववा माटे बनावाई छे. आ कृतिमां 'आलमनाथ', 'हे जवनाधिप' आवा सम्बोधनात्मक प्रयोगो जोवा मळे छे, जेथी उपर कहेली धारणा पुष्ट थाय छे. वैदिक संप्रदायो अनुसार एटले के वेद अने पुराणो प्रमाणे ईश्वरनुं अस्तित्व तेमज जगत्कर्तृत्व प्रसिद्ध छे, अने ते वात जैन आगमो माटे अमान्य - अस्वीकार्य छे; तो इस्लाम साथे आ बन्ने धाराओनुं कई हदे अने केवी रीते सन्धान थाय छे, ते विषयनुं प्रतिपादन आ रचनानुं मुख्य अंग होय तेवुं, अल्पमतिथी, समजाय छे. परन्तु आनो ऊंडो अभ्यास थाय तो ज तेना हार्द लगी पहोंचाय, ते पण स्वीकारवुं ज पडे.
प्रथमनी पडवानी ढाळमां प्रथम कडीमां 'आगम देवंद्रशन्नं' एवो पाठ छे, ते 'देवेन्द्रस्तव प्रकीर्णक' नामे आगमना नामनुं सूचन करतो हशे, तेवो भास थाय छे. पछीनी बीजथी तेरस सुधीनी 'चालो' मां आचारांगथी लईने दृष्टिवाद - अंग- एम द्वादशांगीनां आगमोनां नाम क्रमशः गुंथेला जोवा मळे छे, जेथी आ रचना जैन आगमोने अनुसारी छे तेवी छाप पडे छे. जैन परिभाषाना अनेक शब्दो ठेर ठेर छूटथी वपराया छे : समकीति, युगादिनाथ, बोधि, तीरथनाथ, जिणंदा वगेरे.
तीर्थंकरो पैकी प्रथम बेएक 'चाल' मां युगादिनाथनो तथा छेल्ली बेएक 'चाल' मां पारसनाथनो - एम बेनो ज नामोल्लेख छे; अन्यनो नथी. हिन्दू धाराने लगती शब्दावली पण मोटी छे : पूरण ब्रह्म, शंभु,
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अलख नारायण, ब्रह्मा विष्णु महेश, अथरवण वेद, साम-जजुर-रघुवेद, पुरुषोत्तम, लक्ष्मीनारायण, ज्याग वगेरे. तो इस्लामी के अरबी शब्दप्रयोगो पण ओछा नथी : खलक, जिहांन, खामंद-खावंद, खुदा, कुराण, कत्तेब, काफर, हरामी, हमद, केहर, मेहरी, हज्ज, खयर, बंदगी, दोजग, भिस्त, करामात वगेरे. कर्तानी दृष्टि तथा प्रयास समन्वयपरक छे ते वात बहु ज स्पष्टपणे जणाय छे. __ प्रत्येक 'चाल', अछडतुं अवलोकन करीए तो--
प्रारम्भिक ४ दोहरामा “जैन'- अनुसारी मंगलाचरण होवा छतां, तेमां 'अल्लह'- अल्ला शब्दनी गुंथणी ध्यान खेंचे तेवी छे. प्रथम 'पड़वा'नी 'चाल' मां संसारनी निःसारतानुं अद्भुत वर्णन छे, अने तेमां 'पडवा'र्नु नहि तेवो उपदेश पण आपवामां आव्यो छे. 'पडवा' नो अर्थ 'पडवू' एम करीने तेनाथी बचवानी शीख आपवामां कवि सुरेख चमत्कृति सर्जी शक्या छे. आ 'चाल'मां 'हंदो, कहंदा, भरंदा' ए बधा 'दा' वाळा प्रयोग खास ध्यानपात्र
बीजी 'बीज'नी 'चाल'मां पण 'लहंदा' वगैरे प्रयोगो थया छे ज, उपरांत तेमां 'आलमनाथ अमीणो सामी' ए प्रयोग विशेष ध्यानार्ह छे. रचनाकार सम्भवतः 'चारण' कुलना होय अने चारणी बोलीना आ प्रयोगो तेमन्ने माटे सहजसाध्य होय तेवी कल्पना, आ अने आवा विविध प्रयोगो जोतां तथा बळकट छन्दमां थयेली बळूकी रजूआत जोतां, करवानुं मन थाय छे.
त्रीजी 'त्रीज'नी 'चाल'मां आदिनारायणरूप ब्रह्मा-विष्णु-महेशने खलक (जगत्)ना रचनाकार (कर्ता) तरीके वर्णवीने तरत ज असुरपति खावंद खुदानां पण एवांज त्रण रूपो होवानुं तथा आसुरी आलमनो ते कर्ता होवानुं वर्णन करे छे; अने ते पछी तरत ज जैनना ईश्वर ते सृष्टिना कर्ता नथी, अर्थात्, जैनमते ईश्वर सृष्टिनो कर्ता नथी, तेवं स्पष्ट प्रतिपादन कर्यु छे. अने आ रीते निज-पर-शासननो भेद तेमणे यवनाधिप समक्ष स्पष्टतया वर्णवी बताव्यो छे.
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चोथी 'चोथ'नी 'चाल'मां पहेली ज कडीमां चारनी कमाल दर्शावतां, चोथो युग, चोवट, चोथु अंग, चतुर्विध जगत्, चार गति, चार वर्ण एम तमाम पदार्थोने सांकळी ले छे. वेद-पुराण-कुरान ने सिद्धान्त (जैन आगम) ने साथे साथे राखीने तेमां आवती भिन्नता- सौम्य अने रुचिकर भाषामां बयान आ 'चाल'मां थयुं छे. अहीं 'आदिशगति-आद्यशक्ति'नो सौ प्रथमवार उल्लेख थयो छे. ४ वेदोनां पण नाम छे. आमां चार वेद तथा १४ पूर्व वच्चे समन्वय साधवानो प्रयास थयो होय एवो भास थाय छे. समग्र प्रतिपादन खरेखर खूब रसंप्रद छे.
पांचमी 'पांचम'नी 'चाल'मां 'आदि शक्ति'नो उल्लेख तो छे ज, पण वधुमां 'केवल' (ज्ञान)ने 'जोगण' तरीके ओळखावीने तेने शासन ने मोक्षनी 'धणीयाणी' गणावी छे. वळी, यवननी न(य?)वन धणी, शैवनी शैवी, तेम जैनना साहिबनी जैनी शक्ति-एम पण लखे छे. वळी, इस्लाम तथा ईसाई लोको 'आदम अने हवां'ने बाबा-बीबीना आदि युगल तरीके माने छे ते वातने याद करीने वैदिकोना मते ते लक्ष्मी-नारायण, ब्रह्मा तथा ब्रह्माणी, शिव अने पार्वती, तेमज जैनमते ते जिनराज अने शासनदेवी-निर्वाणी एटले के केवलज्ञानरूप योगण छे - एवं पण प्रतिपादन कर्ताए अहीं कर्यु छे.
___अहीं कर्ताए ‘निगम' शब्द वापर्यो छे. ते आगळ उपर १३मी तथा १५मी 'चाल मां पण आवे छे. आगम-निगम के अगम-निगम' एवा प्रयोगोमां आवता 'निगम' शब्दना अर्थमां ज आ प्रयोग होवो जोईए. जो के जैनोना विविध गच्छोमां एक निगमगच्छ के निगममत पण हतो - १५-१६मा शतकमां. ते गच्छने मान्य निगम-शास्त्रो पण उपलब्ध (अप्रकट) छे ज. कर्ताना मनमां ते मान्यता होय अने ते सन्दर्भमां 'निगम'नो प्रयोग कर्यो होय, तो पण बनवाजोग छे. वस्तुतः तो आ समग्र रचनानी हाथपोथीनुं प्रथमवार अवलोकन करवानुं थयुं त्यारे प्रथम छाप 'निगममत'नी आ रचना छे - एवी ज ऊपसेली. पण ए तो मात्र अटकळ ज. निर्णय पर पहोंचवा माटे तो निगमोनुं अध्ययन करवू पडे..
___ पांचमी चालमां 'पंचम अंग' (भगवतीसूत्र नामे आगम)ने त्रणेक वार संभायुं छे. कडी ५मा 'आदिशगति'नो उल्लेख छे, तो 'अशूरां' (असुर)
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तथा 'आशूर' (आसुरी) शक्तिनो पण उल्लेख छे. छठी कडीमां वळी 'शेतान, हरांमी, काफर, हमद, केहर' - ए अरेबिक शब्दोनो सन्दर्भ खास ध्यानार्ह छे. तो ७मी कडीमां 'मरद-महेरी, नार-नरोत्तम, श्राविका-श्रावक' ए जोडलांपरक शब्दसमूह, तेमज आगळ जतां ते ज कडीमां 'मेहरी विना हज्ज (हज) न थाय के वेद-याग पण न थाय, माटे आदि शगत (शक्ति तत्त्व)- आराधन (करवू घटे)' - ए मतलब (स्थूल अर्थमा)नी पंक्तिओ- खास अध्ययनीय लागे छे. 'आदिशक्ति नो आ आग्रह ज, कर्ता चारण होय तेवी छाप ऊपसावी जाय छे.
. छठी 'चाल'मां छुड़े आगम-ज्ञातासूत्र, छठ तिथि, छ द्रव्य - आ बधां जैन तत्त्वोनू निरूपण थयुं छे. छ युगनी पण वात छे. छ युग - छ आरा. 'घट घट साहिब देख तुं ग्यांनी' ए पंक्ति कबीरनी 'घट घट में वह सांई रमता' ए पंक्तिनी याद आपी जाय छे. आमां 'कहेर' न करवानी ने 'खयर, महेर ने बंदगी' तेमज 'कुरुणा'-(करुणा) वगेरे करवानी शीख, वेद-पुराण-कुराणना नामे आपी छे.
सातमी 'चाल'मां सातमा अंगसूत्र (उपासकदशा)नो निर्देश सातम साथे मेळ सधाय तेम करेल छे. उपासक एटले श्रमणोपासक. श्रमणने अहीं 'गुरु', 'पीर' तरीके अने उपासकने 'सेवक', 'मुरीद' तरीके ओळखावेल छे. 'जती-वृत्त' (यतिव्रत) वाळा गुरु ते पीर, एवं स्पष्टीकरण त्रीजी कडीमां पण छे. 'सिद्धान्त' एटले 'वेद, पुराण, कतेब', अने तेनी आज्ञा ते 'फरमाण, हुकम, आगन्या' एम पण समजूती कडी ४मां छे. 'आपणो साहेब (पीरगुरु) जे पंथ बतावे ते पंथे सदा चालवू अने 'कहेर' तथा 'हंसा' (हिंसा अने त्रास) छोडवा - एवी शीख पण आपी छे. आम वर्ते ते ज साहेबना साचा सेवक; बाकी 'केहर' करवाथी तो 'दोजग' (नर्क) ज पामे, 'भिस्त' (बेहिस्त-स्वर्ग) न मळे. वळी ७ व्यसनना निवारणनी पण शीख आमां आपी छे.
____ आठमी 'चाल' बहु रहस्यपूर्ण होय तेम लागे छे. तेमां जैन परिभाषाना खासा शब्दो तो छे ज; पण तेमां एक बाजु जैनमान्य लोकपुरुषy शब्दचित्र आलेखलं जणाय छे, तो तेनी साथेज, योगमार्गना षट्चक्रो, कुंडलिनी-नाग,
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'योगण' रूप आपवानो बान पण छे, तो पण वणी लेवायु माथे नव रंग,
अनुसंधान-२९ कमलदल, अनहदघंटा-अनहदचक्र - आ बधी वातो पण गुंथी लेवामां आवी छे. ते जोतां कृतिकार कोई नीवडेल हठयोगी होय तेवी छाप पडे छे.
नवमी 'चाल'मां नवमुं अंग (आगम), नोम तिथिनी साथे नव रंग, नव रस, नव वाड, नव दुर्गा - आ बधुं पण वणी लेवायुं छे. तीर्थंकरना समवसरण- चित्रात्मक वर्णन पण छे, तो 'अनहद नोबत गाजें' लखीने तेने यौगिक रूप आपवानो गर्भित संकेत पण थयो छे. छप्पन्न दिक्कुमारीने 'योगण' (योगिनी) रूपे वर्णवी छे. समवसरणमां इंद्र द्वारा मंडायेल अखाडो (खेल) अने छत्रीश रागमय गीत तथा नाटक चाली रह्यां छे तेमज त्रिभंगी वाजां वागतां होवानो पण उल्लेख छे. आखंय वर्णन जैन मान्यतानी साथे साथे यौगिक प्रक्रिया- पण बयान आपी रह्यं होवा- भासे छे. अहीं पण 'अमीणो' ए चारणी प्रयोग जोवा मळे छे.
दशमी 'चाल'मां दशमा अंग (आगम)नी तथा दशम तिथिनी वात तो छ ज, पण तेमां मुख्यत्वे 'दया'नी अने 'हिंसा'न करवानी वात थई छे. 'दया' ए साधुनी शासनमाता होवानुं विधान प्रथम कडीमां ज थयुं छे. कडी ६मां आश्रव-हंसा (हिंसा) ते परशासन, अने संवर ते निज (जिन)शासनएवं सुस्पष्ट प्रतिपादन थयुं छे. हिंसा ते परशासननी माता छे, केवल (ज्ञान) रूप करुणाली माता ते सिद्धनी धणियाणी छे, एवं पण निरूपण छे. आमां विद्यालब्धि, मंत्रविद्याने 'करामात' तरीके वर्णवी छे. विक्र लबध एटले वैक्रियलब्धि अर्थात् देवमाया.
११मी 'चाल'मां ११मुं अंग, अग्यारस तिथि, ११ रुद्र, ११ अंग, ११ प्रतिमा इत्यादिनुं स्वरूप जोवा मळे छे. 'अलख नारायण', "संकर', 'ब्रह्मा केशव रुद्र', 'युगवेद' आ बधी शब्दावली तथा तेनी समन्वयात्मक अने खण्डनात्मक चर्चा पण मजानी छे.
१२मी 'चाल'मां बारमा अंग 'दृष्टिवाद'नी जिकर थई छे. १२ कला, बारस तिथि, १४ पूर्व-बधुं संयोजित थयुं छे. १४ पूर्व- प्रमाण केर्बु विपुल-विशाल होय ते समजाववानी पण मथामण थई छ. ॐ कार ए आदि पद, तेना त्रण पद 'अ-उ-म्', ते सत्त्व-रजस्-तमस् ए त्रिगुण तथा ब्रह्माविष्णु-महेश ए त्रिमूर्तिरूप होवानी वात जरा विलक्षण जैन दृष्टिए वर्णवी छे.
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दृष्टिवाद ए बावन अक्षरथी आगळ नी बाबत (बावनबारो ?) छे एम पण सूचवायुं छे.
१३मी 'चाल'मा पुनः 'निगम' जोवान सूचन मळे छे. आ चालमा ब्रह्म अने ब्रह्माण्ड अनन्त-अगम होवानुं वर्णन छे. केवलज्ञान ते शक्ति, साहिब ते नाथ (पति), तथा ज्ञानमां भासता अनन्त पर्याय ते अनन्त प्रजा रूपे कविए वर्णवेल छे.
१४मी 'चाल'मां चौदश तिथि, १४ भुवन, १४ कळा, इत्यादिना आलम्बने सिद्ध-मोक्षपद-केवलज्ञान इत्यादि वातोनुं निरूपण छे. आमां 'निवाज' (नमाज) तथा 'संध्यावन्दन' अने साथे 'पडिकमणुं' - आ त्रणनी तुलना नोंधपात्र छे. महदंशे आखीय रचनामां अमुक निरूपण सतत पुनरावर्तित थतुं होवानुं लागे.
१५मी 'चाल'मां पूनमतिथिनी अने १५ कळानी वात थई छे. सिद्धना १५ भेदने पण सांकळवामां आव्या छे. आ चालमां पण 'निगम' शब्द त्रणेक वार आवे छे, जेमां ९मी कडीमां तो 'निगम'ने वेद-पुराणसिद्धान्तनी साथेज गोठव्यो छे. १२मी कडीमां 'मोक्ष'रूप सिद्ध-नगरीने शिवपुर-पाटण तरीके ओळखावीने तेनी तुलना "भिस्त-मदीना' (स्वर्गमा मदीना नगरी ?) साथे करी छे.
१६मी 'चाल'मां जीवमांथी १६ कळाए सिद्ध-शिव थएल आत्माना तथा तेना निवासरूप मोक्षना स्वरूप- विशद वर्णन छे. आखी कृतिमा प्रथमवार अहीं १३मी कडीमां 'पारसनाथ' एवं नाम जोवा मळे छे.
१७मी 'चाल' कलशरूप ढाळ जणाय छे. तेमा प्रत्येक कडीमां 'मुनीचन्द्रनाथ-धरमदत्त देव'नुं नामाचरण थयुं छे. 'पारसनाथ'नो उल्लेख पण एकथी वधु वार थयो छे. छछी कडीमां कर्ता कहे छे के 'पन्नर तिथ'नामे आ रचनामा आगमवाणी निरूपी छे, अने वेद-कुरान-आगमनुं मन्थन करीने माखण तारवीने तेनुं आ रूपे घृत कर्यु छे, अने ए रीते जिनेश्वरनां गीत गायां छे.'
प्रान्ते ४ दोहरा छे, जेमां १५२ गाथामय 'आगमसारउधार' अर्थात्
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'आगमसारोद्धार' नामनी आ रचना होवानुं सूचवायुं छे. कर्ता- नाम 'धर्मदत्त' होय तेवी छाप पडे छे. प्रतिलेखक 'मुनी रूपचंद' छे, अने तेणे आ रचनाने 'तिथकला' तरीके ओळखावेल छे.
आ आखीये रचना अनेक दृष्टिथी अध्ययन करवा योग्य लागे छे. आ तबक्के तो तेनो प्रारम्भिक के अछडतो परिचय ज करावी शकायो छे. परन्तु आ रचना एकवार प्रकाशित थई जाय ते बहु महत्त्वनुं छे. आशा छे के आमां विविध क्षेत्रना अभ्यासीओने रस पडशे अने आ रचनाना बाह्यआन्तर एम उभय रूप परत्वे तेओ नवो नवो अभ्यास आपशे.
आमां आवता पारिभाषिक शब्दोनो कोष थवो जरूरी छे. पण केटलाक शब्दोना अर्थ समजाता नथी तेथी हाल साहस कर्यु नथी.
श्रीमुनीचन्द्रनाथविरचित पन्नरतिथि ॥ श्रीगुरुभ्यो नमः ॥
अथ श्रीषटदर्शनेश्वर माहाब्रह्मस्वरूप श्रीसद्गुरुधर्मदत्तदेव श्री मुनीचन्द्रनाथप्रकाप्सीते षट्दर्शनशास्त्रसारोधारे श्रीजिनागमसिद्धान्ते माहातत्वसुद्ध ज्ञाननय हेतु ब्रह्मकेवलतिथीकलावांणी लिख्यन्ते:
दोहराः श्री जिनशाशनसामीया अल्लख अगोचर आदि । परमेश्वर परिब्रह्म पद युग युगनाथ युगाद ॥१॥ अजर अमर अती आगम गम अल्लह अवाह अपार । अक्षय अव्यय अद्वैत पद, सिध निरंजन सार ॥२॥ युग युग आदि धरण जिण उपजें धर अवतार । जंगम उज्जल योगसीध आगमधर अधिकार ॥३॥ युग आदि जिन योगेस्वरा युग जागवयो धर्म । आगम वांणी उच्चरां परिब्रह्म पार मरम ॥४॥
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अथ श्री मुनींचन्द्रनाथ षटदर्शनेश्वर श्री ब्रह्मैव ब्रह्मज्ञ ज्ञान उपदेश प्रथम प्रतिपदातिथी लोकस्वरूपप्रकाश श्रीभगवंत सरणांगत परमपदहेतु तत्त्ववाणीः
चालिः
परिब्रह्म पच्छांण्यो लोक समाणो आतम जाणो अखे नाथ निरंजन हे निकलंकी पार परम परक्खे । उज्जल पक्ष कहां सिध हंदो ए संसार कशनं दोय पक्ष पन्नर तिथ दाखां आगम देवंद्रशन्नं ॥१॥ पडवा पहेलो तिथ कहंदा जिव भरंदा जोणलख चोरासीय षांण लिक्खंदा चउगत च्छकसमाणं । देख चउद भवन्ने दाखां जीवे जीव जगंदा एह संसार असार अनादि सुभर जीव भरंदा ॥२॥ जोणि जोण भमंते जीवें ल्लखां मानवलधौ आरजदेश-कुलें अवतरयो ग्राजो पून्य प्रसीधो । चेतो मानव चित्त विचारी फेरा फोकट कीधा साथे साहेब नाहिं संभार्यो लाखे पातक लीधा ॥३॥ एह संसार माहा अंधकुप जीव पडतो जाणी अलख निरंजन देव आराहो पुरण ब्रह्म पीछाणी । पडवा टालो आतम भालो जालव जोग जगंदा मुनीचन्द्रनाथ वदे जुग जीता, सोही साहब हंदा ।।४।।
इति लोकजीवाय षद्रव्यव्यापक प्रतिपदातिथी कलाकथनानन्तरं, अथ श्रीमुनीचन्द्रनाथप्रकाशके बोधबीजसम्यक्त्वसाधन तीर्थोपदेश आराध बीजतिथी कलाहेतु वाणी :
चाल:
साहेब साचो बीज संभारो बीजें बीज लहंदा ग्यांन सदा गुरुजी निज दाखें भाषे वांण भणंदा ।
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आगम बोध माहानिध. उज्जल सूरा सोह चढंदा आतमबीज अखे अविनासी कीधे ब्रह्म कहंदा ॥१॥ बीजें बुध्य लहो नित बोधी केवल सीध कहंदा एक निरंजन जोति अनंती जोते जोत जगंदा । आगमबीजें बीज आरोपण बीजउदे युग पार पुरण ब्रह्म शदाशिव साश्वत आद्य अलख अपार ॥२॥ साचो सुध लहिं समकीत्ति बीज बोध विचार आगमवाण वदें भगवंता आचारंग मझार । बीजें अंगें बोध जगाड्यो साधां हंदे सांइ जात जती-व्रत सूरा वीरा साचे साम सखाइ ॥३॥ आलमनाथ अमीणो साहेब जागव जोग जिणंदा तीरथनाथ धणी त्रिहुं लोके दाखें वांण दिणंदा । धर्म धडें करी धीरा हंदो ध्यावें धार धरंदा मुनीचन्द्रनाथ वदें युग जालम सोही साध कहंदा ॥४॥
इति बोधबीज सम्यक्त्वरत्नसाधन तीर्थोपदेश आराध बीजतिथिकलासाधननन्तरः अथ श्रीब्रह्मसीधान्तसिधतत्त्वजोति जगतेश्वर श्रीमुनिचन्द्रनाथ प्रकासिते निजपरसम्यक्त्वमिथ्या[त्व]द्विद्वा(धा?) चैत्य(त)न्य ब्रह्मसिधजोतिअवगाह त्रिजतिथी कलाहेतु नयज्ञानवांणी :
चालिः त्रिजें त्रण्ये तत्त्व विचारो त्रीजें अंग तवंदा त्रण्य भवन तिणे शिर सांइ ध्यांनी जेथ धरंदा । नाथ निरंजन हे निकलंकी साहिब शांति सुधारे पुरण राज करें पुरसोत्तम तेथ तवंता तारे ॥१॥ ज्योति शंभु जगदीश धणी जे ज्योति झलामल दीशें ते महिनाथ अनंता तेजें त्रिविधा रूपनिवेशे ।
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करता ब्रह्म कहां परमेश्वर खलक रचे खुद सोइ निज परमेश्वर ब्रह्म निरालो शिवनगरीमांहे दोहि ॥३॥ आलमनाथ कहां परिब्रह्म दोविध साहेब दाखां अलख नारायण दोय धणी च्छे सुरअसुरांपति दाखां । आदिनारायण हे त्रिविध विध ब्रह्मा विष्णु महेश ए कर्ता त्रिहुं लोकधणी में खलक रचें बहुवेश ॥४|| एम असुरांपति हे परमेश्वर हे खुद खावंद सोही ए पण त्रिविधा रूप तवंदा आसुरी आलम होइ । जैन तणो जगदीश्वर जालम हे निजब्रह्मनिवासी अणकरता परमेश्वर सोही सर्व धणी एह आस ॥५॥ जैन महेश्वर हे जवनाधिप जोति अलख स्वरूप युं परमेश्वर परज अनंती त्रिविधा त्रिहुं युग भुप । इणविध निज-पर सासणभेद आदि अलख अपार मुनीचन्द्रनाथ वदे अवधूता ज्योति स्वरूप विचार ॥६॥
इति ब्रह्मसिद्धान्तसिधतत्त्वज्योतिअवगाह षटविधब्रह्मजगतेश्वर मीमांशेश्वर ब्रह्मां १ शांख्यदर्शनेश्वर विष्णु २ न्यायकदर्शनेश्वर शै(शि)व ३ पातां(तं)जली त्रैराशिक तथा चार्वाक्य तथा जवनेश्वर अल्लाह ४ बौध साक्यदर्शनेश्वर बौधिसिध तथा शक्तिदेव ५ जैनदर्शनेश्वर अरिहंत तथा सिघभगवंत ज्ञानशक्तिदेव ६ एवं निज १ पर ५ द्विधा जैन शैव । शैव द्विधा देवी १ - आसुरी २ । दैवी त्रीगुण आसुरी पि त्रिगुण चिकथा । एवं षटमतेश्वर निज परसम्यक्त्व ज्ञानचेतना मिथ्या माया कृत्यज्ञानचेतना एवं चैतन्य ब्रह्म सिधतत्त्वज्योति जितिथीकलाकथ नानन्तरः अथ श्रीकर्ता ब्रह्म जगत्रेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथप्रकाशिते चतुर्विधलौकीकविस्तार तथा चतुर्विधवेदशास्त्रविधि चतुर्थीतिथि कलाहेतु नयज्ञानहेतु वाणी :
चालि : चोथे युगधणी चोवट मांडी चोथे अंग अपार चिहुविध खलक जिहांन करंदा चिहु गत वरण विचार ।
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अनुसंधान-२९
बीज थकी जिम झाड बोहि विध वशत्तरीयो युगवेद थड डाला आदि दशेविध जांणो बीजमां एहनो भेद ॥१॥ आदिधणी करता-जुगसाहिब कीधो हे खलक विधान निज जगदीश्वर सत्ता लेइ आव्यो एथ निदांन । खुद खाम(व)द खलक खुदा अनहद आसुरी श्रेष्ट अपार विष्णु देव नारायण त्रिविधा दैवी श्रेष्ट विचार ।।२।। जैन सत्ता जगदीश्वर जागे सो जिनराज कहंदा जैन तणी ज्येष्ट रचाणी ग्यांनी लोक गहंदा । देख धणी युगसाहिब साचो त्रिविधा रूप धरांणो वेद पूरांण कुरांण सिद्धान्ते भा भेद समाणो ।।३।। च्यारे वेद वली युग च्यारे चोगत वरण हे च्यार चोवट लोकधणी युग मांड्यो आदि शमति अपार । अथरवण वेदमां आश्व(शु)री भेद जेथ कुरांण कहंदा सांम जजुर रघुवेद त्रण्ये महि दैवि वांण भणंदा ॥४|| च्यारे वेद महि सत्त आगम देख सिद्धान्त विचार जैन तणो जगदीश्वर बोलें आगमसिध अपार । च्यारे वेद सदालिंग साचा चवदे पूरवमांहिं पिंड ब्रॉडमां परज रमांणो क्रीया शगति जगाहि ।।५।। च्यारे वेद चतुरदश पूरव माहे कुरांण कत्तेब (ब) लोकधणी लेइ उरसीथी आयो मांड्यो खेल हशेब । परिब्रह्म चिदानन्द हे पुरुसोत्तमः आदिसगत आराधे दोय मिली युग त्रिण्ये दाखां लोकनी माया वाधे ॥६॥ आशूरी माया अशूर हवंदा दैवी देव करंदा त्रिविधा रूप धरो धणीयाणी जोणी जोण भरंदा । अलख नारायण देव जिणंदा चोविस रूप धरावे मुनीचन्द्रनाथ धरे अवतार युगमांहि साहिब आवें ॥७॥
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इति श्रीकर्ता ब्रह्म जगत्रेश्वर चतुविध लौकीकविस्तार चतुविध वेदशास्त्रे लौकविधि चतुर्दशपुर्व वेदोमे चतुर्वेद पुर्वामै तथा द्वादशांग द्रष्टीवादचतु ध्येन चतुः जिन - लोक- व्याख्यान - चतुर्भेदलोकविस्तार चतुर्थीतिथीकलाकथनानन्तरः अथ श्रीज्ञानशक्तेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथप्रकासिता लोकालोके निजपरसम्यक्त्व -- मिथ्या सासण निजनिज - ज्ञानमायाशक्तिआराधन निजनिजनाथआराधन निजनिज सिधसासणप्राप्ती पांचम सिधगतिशाशणस्थित आराध पंचमीतीथी कलाहेतु नयवाणी :
चालि:
पंचम अंग तिथी युग प्राजो चवद भवन पर सोहें आदि सगति कहो भगवती माथे धणी ते धार्यो हे । चोवीस दंडकमांहि सजांणी षट् द्रव्य नाडी भेद असुर सुर नागंद लख चोरासी पूर्यो पिंड उमेद || १ || मानवलोकमांहें धर्म साधो पंचम थांन चदंदा चोथ तिथि युग च्यारे हुया पंचम मोक्ष वहंदा । केवल माया जैन तणी जे जोगण केवल जागें शाशण मोषतणी धणीयांणी एह निरवांणी आगें ||२|| नवन धणी जे जवन आराधें शैवी सैव संभारें जैन तणो युग साहिब जैनी जैन शगत अपारे । आदम बाबो बीबी हवां छें लक्ष्मीनारायण छाजें श्रीजिनराजनि शाशणदेवी देख निगम पद गाजें ॥३॥
ब्रह्माने ब्रह्मांणी रूपें शिव पारवती सोहें करतारूप तणो छें आगम ए परसासण जोहे | श्रीजिनशाशन हे निरवांणी पारनी खलक वीधारे देखि भविजन मानव सोहि पंचम याच्छा तारे ||४||
पांचमतिथ आराधा (ध) न कीजें पांचमें अंग अपार आदि शगति निज परसासण जागवीजोगभंडार ।
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अलख धणी जे अशूरां हंदो आशूर तेह संभारे शैव धणी शिवलोक कहंदा जैन धणी जिन धारे ॥५॥ आपणो साहेब सोह आराधे सोह धणीना जांणो शेतान हरांमी लोकमें होवें सोही काफर जांणो । आप उसहीकी हमदमें चालें केहर न कीजे कोइ शो युग साहिब आपणो तारे पंचमें पहुंचे सोही ॥६॥ मरद महेरी नार नरोत्तम श्राविक श्रावका संगि जोडि मली युगसाहिब समरे अगम आराध अभंगी । मेहरी बिना कुच्छ हज्ज न होवें वेद न होवें ज्याग देख सीद्धान्त आराधन होवें आद शगत्त अथाग ॥७॥ निजपरशाशण साहेब समरो धर्मधणीनो धारो आगमशाशण पांचमें अंगें आतमा आपणी तारो । गुरुदेवनी आगना ए फरमांण आपणो नाथ आराधो मुनीचन्द्रनाथ धणी बिहु लोके पंचमें अंगें लाधो ॥८॥
इति श्री ज्ञानशक्तेश्वर श्रीधर्मदत्तदेव सर्वज्ञ ज्ञानेश्वर प्रकाशिते लोकालोके निज पर निजनिज ज्ञान मायाशक्तआराध निजनिजनाथभजना निजनिजसिध सासणप्राप्ती पंचमांग भगवतिसिधगतः शाशणस्थितिआराध पंचमतीथी कलाकथननन्तरः अथ श्रीषट्जीव पर्जे[श्व]र श्रीमुनीचन्द्रनाथप्रकासिके षद्रव्यादि षटविधीभेद जीवाजीवविचार षष्टमी तिथीकलाहेतु नयज्ञानवांणी :
चाल: छठे अंगें ज्ञाता सोही छठी तिथ विचारे जोयो जगमांहि जिहांन रचांणी छयेविध काय संभारे । परपंच पुदगल खेल पचीशे छठो जीव जडंदा पांचे द्रव्य ने छठो चैतन: य्युं षट द्रव्य कहंदा ॥१॥
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पांचे द्रव्य अनि परपंची बुझो पंडविचार छठो चैतन साहेब समरो जेहनी परज अपार । त्रिविधा परज त्रिहुविध ठाकुर आपणी आपणी साथि निज पर भेद में भावनी परजा दोयविध त्रिविधां भांति ॥२॥ एम खलक जिहांनमे जोवा साहेब हंदो नूर त्रिविधा भेदमें आलम रीत प्रगट्यो साहिब पूर । षट लोकमही वली नूर खुदा- केशव कीध निवाश श्रीजिनराज वस्या युगमाहिं एके पिंड आवाश ॥३॥ घट घट साहिब देख तुं ग्यांनी जीव षटे युगमाहि कहेर न कीजें कोयनो जांणी शाहिब छे सह पाहि । वेद पुराणकुरांण सिद्धान्ति जोयो अर्थ विचारी त्रिहु लोक धणी युगसाहिब सोही पिंड ब्रांड मझारि ॥४॥ तेहतणी कुरुणा दिल राखो भाषो साहेब भव आपणो नाथ भजो भगवंत अलष निरंजन देव । खयर महेर नें बंदगी साधो दांन दया दम सोही दांन सील तप भाव त्रणेविध वेद कुरांण सिद्धान्तमे उही ।।५।। सार कह्यो सहु वेद कुराणें पांच तत्त्व विचार पांचे थावर छठो चैतन हे षटकाय मझार । छठी तिथ देख विधाता लेख्या लेख अपार कीधां कर्म सहुँनें आवें सुखदुख पिंड मझार ॥६॥ कोय विधाता बीजो नाहीं आपणो आतम जाणो पिंडमे चैतन लोक विधाता पिंड ब्रह्मंड घडाणो । लोक अधीश विधाता लोकें पिंडमें तेह पशारो कीधां कर्म सदालिग बांधे आगल तेह विचारो ||७|| जोडी प्रीत अलखधणीसुं छोडो कर्म संभारी ए अवतार जे मानव लाधो मोटो लोक मझारी ।
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जे जेहनो छें साहिब सोहि बंदगी भजना ध्यांन मुनीचन्द्रनाथ बडे अवधुत्ता दाखें ब्रह्मगनांन ॥८॥
इती श्रीषट्जीवपर्जेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथ षट्द्रव्यादि षटविधि जीवाजीववीचार षष्टमी तीथी कलाकथननन्तरं : अथ श्रीमुनीचन्द्रनाथजी प्रकाशीके सप्तमांगे श्रमणोपासकसेवकपदस्थिति धर्मस्वजनसंगसामीसेवक स्थितिस्थापना सप्तमी तिथी कलाहेतु नयज्ञांनवांणी :
अनुसंधान - २९
चाल:
सातमें अंगें साथ सज्यो हे सातम तथ वखाणा जालम जेह वडा जोगेस्वर जे गुरु पीर वंचाणा तेणे सेवक साथमे लावो श्रावक पंथ सुधारे देख मुरीद जे साहिब हंदा भावें भक्ति विचारे || १ || षटदर्शन उपासक होवें आपणो तीरथ साधें धर्म धणी जुगधोरी ध्यावें नाथ निरंजन लाधे । साहिब हंदा मानव मेली वाछल हेत विचारो साजण ए दुनीयानां सरवे तेमांहि नाथ तुमारो || २ ||
जे कोए साहिब हंदा सूरा पंथ वहंदा पूरा ते सहु साजण ताहरां बुझो साहब तेह हजुरा । जीत जतीवृत हे गुरु पीर सेवक सेवा सारो धर्मधणी जिनराजनो मांडें नाथ भजें युग पारे (रो ) ||३||
वेद पुराण कबि वांचें जोये सिद्धान्त विचारी जे फरमांण हुकम चलायो आगन्यां सोह संभारी । आपणो साहेब जे देखलावें तेणें पंथ चलंदा केहर कमाइ हंसा छांडें सोहि साहेब हंदा || ४ || साहिबना छें सोही साचा कुडा केथ कमावें केहर थकी जे दोजग पांमे भिस्त कहांथी पावें ।
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दोजग नर्क पयाले बंधो कीधां कर्म हरांमी सिध निरवाण जे भिस्त न पाई हुयो दोजग दामी ॥५॥ एह संसार अथाह अनोधो आलम खेल अपार ते भवसागर मांहि पडतो भुलो भव मझार । म भूलो मानव सातम उगो सात कला शशी वाधी सेवक होय में सतगुरु सेवो साची सेवा लाधी ॥६|| सात वशन नीवारो भाई साहिब साथ सगाइ साचे साहिब साचु मांने जेसी की कमाइ । साहिब हंदा जेह कहंदा साचा शान्त सधीरा सेवक होई सेवा सारे जालम जे गुरु पीरा ॥७॥ जालम हि जगनाथ जिणेशर तीर्थधणी युग छाजें अलख नीरंजन तेथ आराहो भवनां बंधण भाजें । साहिब साथें प्रीत सजोडी साची सेव करंदा मुनीचन्द्रनाथ बड़े अवधुता यु निरवांण लहंदा ॥८॥
इति श्रीमुनीचन्द्रनाथगुरुप्रकाशिके सप्तमांगे श्रमणोपासकसेवकस्थितिस्थापना सप्तमीतिथीकलाकथननन्तरः अथ श्रीमुनीचन्द्र-नाथप्रकाशिके श्रीयोगारंभे योगनिधिज्ञाने लोकनालब्रह्मंड चैतन्यशक्तीस्वरूप अष्टमी तिथी कलाहेतु नयज्ञांनवांणी :
चाल: आठमो अंग अणुत्तर बोलें आठमि तिथ वखाणो आठम लोक अपार कहंदा पंड ब्रह्मंड पछाणो । चउद भवन सगत जे उभी वेद कुरांण वखाणे आद शगत जे बीबी हवां छे आगम शाशण जाणे ॥१॥ आदि अगम युगे धणीयांणी पीठ ब्रांड रचाणी पुदगल खेल रच्यो एह काया एह षट् द्रव्य समाणी ।
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अनुसंधान-२९ दो विध त्रस्य ने थावर देही पिंड सवे युग पुर्यो चैत्यन्य आपसत्तामांहे साधे जोण भरी जग जुर्यो ॥२॥ वसनाडिमहि तुं देखत वांछां पंड ब्रह्मंड विचार षट् चक्र रचीनें षोहण बांधो मांड्यो गर्भ मझार ।। सात पयाले जे साव धरंदा साते दोजग जांणो मुलसठाणे नाग मंडाणा चहुंविध पंकज थांणो ॥३॥ गणाधीपती असुराहद्दनायक वामी दाहेणवासो गुझ तणो षटपंकज खोलो भवनपती जिहां भासो । ब्रह्मा सासणनो छे सामी असुरां राज चलावें वांमी दाहणनाडिमां बुझो बीजो चक्र बनावें ॥४॥ नाभीमंडल केसव बेठो दशेविध पंकज दीसे मेरुथकी जे मूल मंडाणो देख असंख्या द्वीपें । मानव लोक कह्यो इण भौमी तीरज जोण अपार त्रीजे चक्र थकी छे ताली नीशरीयो युगपार ||५|| शौधर्म आदि द्वादश लोके पंकज बारे बोले आठदला अध पंकज जोतिक मनराजा जिहां डोले । अनाहद चक्र महि शिवशाशण वामी दाहिण नाडि सोले पंकज पीठ रचाणो ग्रीवामंडल वाडि ||६|| आगे भुह अनुत्तर आवें पांचे इंद्री प्राजो त्रिविधा तत्त्व रह्यां तिण थाने पंकज दोयसरा जो । ब्रह्मतणो जे थान अणुत्तर जिहां गुरु पीर जगाडे हजार दलें जिहां खेल रचाणो आगमपंथ आखाडे ।।७।। ध्वन्य अनाहद्द घंट गरजे चोसठ मणना मोती चोसठ पंकजमां ध्वन गाजें जांण जलामल जोति । आगि चक्रशिला छे तालुं ते परसिध कहंदा अलष धणी जुगसाहिब सोही बेठो राज करंदा १८||
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आठम तिथ आराधन कीजे शाशणदेव संभारो पिंडब्रॉड परज अनंती मांहें नाथ तुमारो । आदिनि योगणनें शिर बेठो आदि निरंजण जोगी आठमतीथ आराहण कीजें निज साहिब उपजोगी ।।९।। धर्मधणी जिनराज जगा. तीरथभेद अखाडे पिंडब्रमंडमें तीरथ थापी साहिब सांत जगाडें । आठम तिथनें चंद उजालो टालो अंधेरी रात मुनीचन्द्रनाथ बडे गुरु पीर बेठे साहिब साथ ॥१०॥
इति श्रीलोकनालज्ञानेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथप्रकाशिते योगनिधिज्ञाने लोकनालपिंडब्रह्मडे चैतन्यशक्तव्यापक अष्टमीतिथीकलाकथननन्तरः अथ श्रीनवरसज्ञानेस्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजी पर्मजोगेश्वरप्रकाशिते श्रीनवरसरूप नवरंगपारब्रह्मनिजजगदीशर केवलस्वरूपपिंडब्रमंडे दर्शनतत्त्व नवमी कलातिथी नवमांगे हेतु नयज्ञांनवांणी :
चालः नवमें अंगें अंत करंदा नवमी तिथ वखांण नवमें जे गुणठाणे आयो होसे केवलनांण । केवलज्ञांनतणो भंडार नाथ अमीणो सोही देखि जिनेशर जालम जोगी गाजे ज्ञानमे जेही ॥१॥ नवरंग केवलना[ह) हमारो नवरस रूप बिराजे माथे छत्र धर्यां छे तण्ये अनहद नोबत गाजें । शीशे मुगट मणी सोहंदा कुडल कांन कलंदा पंचरंग पीतांबर मेखल पेंहरां बाजूंबंध जडंदा ॥२॥ हार अनोपम कंठे राजे मोहनमाला छाजें आगे चक्र धर्यो धणी मेरे तीन भूवनमें राजे । उंची इंद्रध्वजा फरराइ त्रीगढ कोट हवंदा चैत तणी च्छाया युगसाहिब बेठो राज करंदा ||३||
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अनुसंधान-२९ साहिब बेठो देख सिंहासण चामर चिहुंदिश ढालें नवरंग हमारो केवल सांमी आगें सेवक भालें । इंद्र सजोडो नवरस नाटक साहिबना गुण गावें देख धणीनी केवललीला जोगारंभ जगावें ॥४॥ साहेब जोग जगाडे साचो भोगतणो भंडार नाथ हमारो हे नवरंगो दीठो तेह दीदार । युगधणी युगयुगो आदि केवल धर्म जगा. भक्त-उधार करे भगवंता आगमपंथ अषाडे ॥५॥ ए नवरंगो साहिब निरखी सेवक साहेब हुंदा भजन भजंदा भाव करंदा युं फरमाण वहंदा । देख अलेखधणी युगराजा कीरत देव करंदा तुं बहोनामी अंतरजाभी केवल आदि जिणंदा ॥६॥ नवरस केवल नवलकलामें नवरंग सील धरावें नवधा विध वाड करी ध्रम रोप्यो आगमपंथ जगावें । नवदुरगाइ मंगल गावें योगण छप्पन्नकुमारी शाशणमाता जोगधणीयांणी धर्मधणी शिर धारे ॥७॥ जिनशाशननी सामण साची केवलरूप धरंदा युगधणी लखमीवरलीला बेठो राज करंदा ।। त्रिभोवनटीलो देख धणीने राग छत्रीशे रंगे मांड्यो नाटक खेल त्रिभंगी वाजा सघलां वाजे ||८|| नवरस केवल नेह जगाडे इंद्र अखाडो मांडे जागवयो जिणशाशण जंगी कीरत्त हे त्रिहुं खंडी । केवलसामी आतम पांमी देहीमा राज करंदा मुनीचन्द्रनाथ बडे जुग जालम सोही साहब हंदा ॥९॥
इतीश्रीनवरसज्ञानेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथप्रकाशिते निजजगदीस्वर
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नवरसकेवलस्वरूपदर्शननन्तर अथ श्रीमाहाविद्याज्ञानेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजी प्रकाशिते दशमांगे दशमाहाविद्या श्रीजिनशाशणमाहालब्धीसिद्धीकरण ज्ञान तथा प्रकृतिमायास्वरूपप्रकाश दशमीतिथीकलाहेतु नयज्ञांनवांणी :
चालि:
दशमें अंगें देवी दाखां देख दया कुरुणाली साधां केरी सासणमाता आगमअंगिं भाली ।
दशे विद्या दशमी तिथ देखो दोयविध वेद वचाणी हंसा सासण लोक मंडाणो कुरुणा हे निरवाणी ॥१॥
करामात नें विद्यालबधी परशाशण परमांणो
हंसा मात वडी हीदवांणी फोरवणा फरमाणो । करामात कत्तेब कुरांणी वांचे विद्या वेद वखाणे आगमशाशण लबध वतावें साध जके सोही जांणे ॥२॥
मंत्र मंडाण विद्या परशाशण आतमशक्ति अपारे साध माहाबल फोरवी साधें रूप रचे वसतारे | ए परसासण केरी माता हंसा रूप वखांणं विक्रे लबध करे बलवंती देखो लोक रचाणं ||३||
लोक तणी जे माया सघली हंशादेवी भेद सुभाशुभ लोक पसारो साधें बोले आगम वेद । केवलमाता हे कुरुणाली सिधतणी धणीयांणी सीधतणा जे शासन वाधे केवल छे निरवाणी ॥४॥
केवल लबध पमाडे सोही अतीसय विद्या उपें करामात धणीनी देख जगाडे केवल मंडप जोपें साधा हंदी सामण माता तारण देव दयाली संवररूपें साध सुधारे आगमपंथ उजाली ॥५॥ आश्रव हंसा हे परसासण लोकतणो वसतार संवर ते निजसासण सिधा केवल लोक अपार ।
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अनुसंधान-२९
करम निवारो आश्रव टालो संवर भालो भाइ लोक थकी परलोक सिद्धान्तें जोति जोत समाइ ॥६॥ दशे विद्यामांहि लोक मंडाणो बहुलो छे विसतार आगें केवल अगम जगा. सोल विद्यामांहि सार । जेणा जीवतणी तुमे राखो भाषो आगम भेवा निज पर विद्या शाशण साधो दाखी , जिनदेवा ॥७|| विद्या खोल वखार ज मांड्यो तीर्थधणीनो थापो पाषंडवाद सवे पर छेदो आगम केवल जापो । चवदे पुरव शाशणविद्या दशमें अंगविचार परशाशण पेहले खंध विचारो बीजे छे निज सार ||८|| एह दोयतणी विध जांणी साधे जेह जोगेश्वर मोहोटा जोगतणा घरमांहे सरवे सिधतणा छे जोटा । परकृती माया केवलमाया जोगतणा घरमाहिं जोगतणी जे माया जागे देख जोगेस्वर प्रांहि ||९|| जीत जतीवृत सुरा जीपें पंच माहावृतधारी आगमविद्या देख आराहे आपणी शक्त संभारी । श्रीजिनशाशण आगममंडल केवल ते विध जाणे मुनीचन्द्रनाथ जोगेश्वर जालम आगम पंथ वखांणे ॥१०॥
इति श्रीदशमांग माहाविद्याज्ञानेश्वर श्रीमुनींचन्द्रनाथजी दशमांगे दशमाहाविद्या हंसा तथा दया आश्रव संवररूप श्रीजिनशाशननिजपरविद्यालबधी सिद्धीकरण ज्ञानमाता दयाभगवतीस्वरूप एवं द्विविद्धा चैतन्यपर्जयः शक्तज्ञानदेवी दशमीतथीकलाकथनंनन्तरः अथ श्रीएकादशमांग सर्वज्ञ ज्ञानेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजीप्रकाशिते एकादशमांगे कर्मविपाकनिराकरण सर्वज्ञ कलाप्रकाश एकादशी तिथीकलाहेतु नयज्ञांनवांणी :
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चाल:
आगें तिथ अग्यारे अंगें करमविपाकनें छोड़ो आव्यो देख इग्यारमे ठांणे आगे केवल जोडो । अंग इग्यार लखावो भाई साधांने तेह दीजें विद्यासासणनें विसतारो आगमपंथ ठवीजें ॥१॥
रुद्र इग्यार क रचाणो (?) ते परसासण भाषें ते परपंच विपाक छंडावो अंग अग्यारनी साधें । पडिमाभेद एकादश मंडो आतमचंद उजालो तीरथनाथ धणीनी वांणी तीरथ आप संभालो ॥२॥
सूत्रतणी जे विद्या जांणो सोही साध सधीरा वेदपुराण कुरांण पच्छांणो जालम च्छे गुरुपीरा ||३|| जे जिनराज भजे भगवंता श्रीजगनाथ जिणंदा त्रिविधा जे परमेश्वर मांहें केवल आप कहंदा । वेद पुराण कुराण सिद्धान्ते जोयो अर्थ विचारी पारतणो पुरसोत्तम बेठो अणकरता अधिकारी ||४|| करता दोय कहो परमेश्वर: अलष नारायण आपें संकर लोकधणी जे साचो भौण त्रहेविध थापें । ब्रह्मा केशव रुद्र कमावें वसतरयो युग वेद अंग अग्यारे आगम मांड्या सासण सिधसंवेद ||५||
मारग ए छे सीधां हंदो सूरा तेह पच्छांणे ए जिनशाशन उजल अंगें आगम वेद वखांणे । पर करता परमेश्वर दाखें बोली वेद कुरांण लोकतणी जे लीला देखें करमतणें मंडाण ||६||
आपतणो परमेश्वर केवल सिधतणो जगदीस दोयविध आगे करत वसंभर शाशण दोय जगीस ।
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अंग इग्यारे आप भणीने साधो संजम सार पार तणी जे लीला पामो आगल ऋधि अपार ॥७॥ सूरा वीरा साध हवंदा पंथ चढंदा पूहरा जीत जती जोगेसर जालम साहेब तेण हजुरा । धोरी धर्मतणा धरजुत्ता तीरथ संग उधारि अंग इग्यारेही यागम भाषे केवलनाथ संभारि ॥८॥ छोडि कर्मतणां फल कडवां सुखदुख लोक संसार एह वीपाकतणां फल जांणी धर्म धरें निरधार । धन्य जके नर नारी ध्यावें श्रीजिनराज जिणंदा मुनिचंदनाथ इग्यारे अंगि केवलरूप कहंदा ॥९॥
इती श्रीएकादशांगेस्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथप्रकाशिते कर्मविपाकनिराकरण सर्वज्ञ । चैतन्य स्वरूप कलाप्रकाश एकादशी गुणस्थापन केवलपर्जाय स्फुरत एकादशी तिथी कलाकथननन्तरः अथ श्रीदृष्टिवाद द्वादशांगेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजीप्रकासिते द्रष्टीवाद सिधान्तमूल बीजादिसवीस्तरसर्वज्ञभावप्रकाश तथा कर्मउपशमक्षिपकश्रेणी द्वादशी तिथी कलाहेतु नयज्ञांनवांणी :
चालः बारमे अंग तिहां थित( तिथ) बारस बारकला उजवालो द्रष्टीवाद में चवदे पूरव चोथो भाग संभालो । असंख्य समुद्रे उपम आखी विद्या एवडी भाखी लोकतणो वसतार लखांणो अलख निरंजन साखी ॥१॥ देख भले वली पुरण आगें ते महि अगम अपार पुरण ब्रह्म कह्यो परसोत्तम आदि शगत मझार ते पुरणब्रम माहेथी प्रगटें दोविध शक्क वखांणो इच्छा शक्त अपार धरे में क्रीया शक्त कमांणो ॥२॥
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एह दोय लीटी पूरण आगें तेहतणो विशतार पूरण माहे लीयो परमेश्वर मांड्यो लोक संसार । . आदें त भुकार उपायो ते माहें त्रण्य विचार देख अकार उकार मकारे त्रपदी ते वशतार ||३|| राजस तत्त्व तमोगुणमांहें ब्रह्मा विष्णुमाहेसा त्रिवधा आपणी शक्त वधारे मांहें आदि जिणेश । एह मुल मंडाण कह्यो संसारनो कंद को वृक्षमुल नकार तणी ए रचना बावन अक्षर स्थुल ॥४॥ लोक चउदतणो ए सासण मांड्यो वेद मंडाण पुरणमें प्रगट्यो परमेश्वर ए दष्टीवाद वखांण । बावन अक्षरथी बहो वाधे दृष्टिवाद अपार पुरणथी संसार वखांणां अनन्तघणो वसतार ।।५।। चउद भवन तणी जे लीला हेक प्रमाणुए आदि द्रष्टिवादमें सरवे दाखं लोकतणी गत लाधे । चेतन सामी परज अनंती एक पिंड निरधार एम अनंता जीव अनंते चउद भुवन मझार ॥६।। द्रष्टीवादें साहिब देखें एक परजथी आदि लोकालोकतणो वसतार साहिब जांणे वादि । साहेबथी कच्छ छांनो नांही जांणे सह जगदीस बारमें अंगें बोहोविध भाषे बार क्रीया जुग ईश ॥७॥ देख विभंग त्रिभंगीरूपें परसासण परमाण द्रष्टीवाद भणे भवसागर आगमभेद मंडाण । द्रष्टिवाद जिहां भव तायो अलख अगोचर माया मुनीचन्द्रनाथ योगेश्वरजी तो कोधी केवल काया ॥८॥
इति श्री दृष्टिवाद द्वादशांगेस्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथप्रकासीते दृष्टीवाद
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अनुसंधान-२९
मूलबीजादिसविस्तरपुर्णब्रह्ममध्यात् सर्वदृष्टीवादपयां(यं?)त लोकविस्तार द्वादशमीतिथीकलाकथननन्तरः अथ श्रीतल(त्त्व)ज्ञ संयोगकेवलज्ञान लोकालोकप्रकासिक चैतन्यब्रह्म निजनिजस्वरूप निजनिजविद्यास्थिति तेरसतिथि कलाहेतु नयज्ञांनी(न)वांणी :
चाल: तेरस जांणो आतम हंदोः तेरस तेथ वखांणां तीरथनाथ धणी युगसाहेब तीरथ तेथ पच्छांणां । जोग संजोगीय केवल हुंदा तेरस तिथ उजवालो चंद चढ्यो चढति युग जोति देख निगम निहालो ॥१॥ अनत अपार अगम निगमे साधा हंदो सांइ तेरस बुझ्यो तेरस ठाणे पंड ब्रांडा माहें । पिंड ब्रह्मडमें देख प्रसारो साहिब सरव सुजांण असंख्य प्रदेश अनंता परजें मांड्यो तेथ मडांण ॥२॥ अनन्त अनंतो भेद विचारो एक प्रदेश मझार एम अनंतो ब्रम(ह्म) सुधारस आतमज्ञान अपारि । भौमसत्तारा देख निरंजन वांचे तेथ कुरांणं आप अलखधणीनें लाधो निगम लह्यो फरमांणं ॥३॥ केवल ब्रह्म लह्यो कुंरुणानिध वांचें वेद पुराणं ब्रह्म नारायण हे माहाविष्णु निरगुणनाथ वखांणं ! केवलनांण कहे अरीहंता आगम वेद वचांणं सिधांतसिरोमण यार लहंदा युं भगवंत सुजाणं ॥४॥ तेरसमांहे खलक रचंदा देख ब्रांड अपारि लोकालोकतणा जे शाशण दीठा देही मझारि । अलखनारायण देव जिणंदा बुझ हवंदा बोहोली त्रिहुं युग लोकधणीनी परजा ब्रह्मज्ञांनमें खोली ॥५॥
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केवल ब्रह्म लह्यो कुरुणानिध साहिब केवलनाथ केवल सक्त अनंती परजा खेले साहिब साथ । पांचे ज्ञानतणो परिवार श्रुतसखी निजसंग नाथ निरोत्तम हे नवरंगो राजत हे रसरंग ॥६॥ तीरथनाथ धणी त्रिहुं लोकें मांड्यो तेथ मंडांण केवलभाषित धर्म जगाडो तेरस पार वखांणं । बारे अंगथी तेरस बुझें तेरे क्रिया तिथि साधे धन्य जीके नर नार धणीनां आगमपि(पं)थ आराधे ॥७॥ तेरस लाधो तत्त्व निरंजन केवलज्ञान अनंतो केवल पर्य रमे कमलापती केवलराज करंदो । धन्य जीके नरनार अनंतो धर्म धडे करी ध्याव्ये (?) तेरस बुझे तेथ चढंदा साहिब हंदा कावें ॥८॥ तेरस लोक में नाह ज साधे तेरस हे निरवाणं केवलभाषीत धर्म जिणंदा दाखे ते फरमाणं । केवल पंथ जती जीहां होवें धर्म शती जती जाणे मुनीचन्द्रनाथ जती जुग जालम तेरस केवल मांणे ॥९॥
इति श्रोतत्वज्ञसंजोग केवलज्ञानपर्जेस्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथप्रकाशिते चैतन्यब्रह्म निजनिजस्वरूप निजनिजविद्यास्थिति अनंत अनंतार्थ माहा केवलरस प्रकाश तेरसतिथी कलाकथननन्तर अथश्री सिधतत्त्वज्ञान चैतन्य अनंतपर्जेस्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजीप्रकाशिते उपयोगज्ञांनशक्तिआराध सिधसासणस्थितिकरण माहारसवच्छल आगमआराध चतुर्दशीतिथी कलाहेतु नयज्ञांनवांणी :
चालः चतुर्दश साधी आगम वाधि तेथ कीया फरमांण चउद भुवन संजोगनी बाजी संक(के)ले निरवाणं । चउदकला शशी सोह चढंदा चउद भवन उजवालो आतम देश प्रदेश भरंदा जोण झलंदा टालो ॥१॥
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अनुसंधान-२९
चउद भवन तिणें सीर सांइ ते दिश तिथ हकारे पंथ वहंदा साहिब हंदा जाए ज्योति मझार । चउदश पूनम तीथ उजाली पोसह परव आराहो सामीवच्छल साहिब हंदो तीर्थधणी जुग ध्यायो !॥२१ आगमपंथ चतुरदश मोटी आगम शाशण ओपें ज्योति झलामल सिधा हंदी केवल मंडप जोपें । जोति जोत जगावी जोगण उपयोगण तिहां आवें अजोग धरी उपयोग चढंदां पुन्यम तेथ चलावें ॥३॥ लोकतणी संयोगण जोगण योग संकेलण कीधा सिध अनन्तसगतधणी छे जोगण ज्योति जगाइ आपणी शक्त अनंतीय जोगण लेई मिलो तिहां भाई ॥४॥ चउदे कांडना वेद जे च्यारे पुरव चउद पसारो दृष्टीवाद चवद भवने मुक्यो एह वखारो । उपयोगण वेद आराधे आगल सिध अनंता जेथे केवल लोक अनंतो वासो पंथ लीयो निज तेथे ॥१५॥ चतुरदश साहिब लेथ संभारो आगमधर्म विचारो केवल गुरुजी ज्ञान देखा. आगम सिध अखाडो । केवल सदगुरु पंथ वहंदा शिष्य चढंदा साथें धन्य जके नरनारी परजा वलगा सदगुरु हाथि ॥६।। इणविध आपनी पर्जना मानव सदगुरु साथि लीधा सूरा वीरा साथ सजीने पंथ प्रयाण ज कीधा । एह अजोग में जोग जे आगें तेह नगर दिश चाले केवल सदगुरु केवल परजा देख अगमपंथ हाले ॥७॥ चतुरदश बुझो केवलमांहि एह अगमतिथ आखी नित निवाज नि संध्यावन्दन पडिकमणां बुध भाखी । च्यारे यार ने च्यारे ही माणस चतुरविध संघ मिलावें वच्छल पोस करता चाले आप धणी निज ध्यावें ॥८॥
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इण विध आतम देख अजोगी केवल पंथ कमावें अगम अगाध माहातिथ आखी बुझें केवल भावें । चवदश भेद तणा पडछंदा केवल बुझ कहंदा मुनीचन्द्रनाथ हुये अवनासी निगमपंथ चढंदा ।।९।।
इति श्रीसिधतत्त्वज्ञांने चैतन्यपर्जेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजीप्रकासीके योगज्ञांनशक्त उपयोगज्ञानशक्त चतुर्दशगुणस्थांनकस्थितीउपयोगकलासाधननिरगुण सिधस्थांनप्राप्ती सिधसासणस्थितीकरणमाहारसवच्छल आगमआराध चतुरदशीतिथीकलाकथननन्तरं ।। अथ श्रीपंचदशीपर्मसिधस्थांनथीती(तिथि) ज्ञानेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजीप्रकाशिके श्रीनिज पर आद्य अनाद्य ब्रह्मराजलीला पंचदशीतिथी कलाहेतु नयमाहाज्ञांनवांणी
चालः पुरण तिथमें हुयो उजवालो पुनम चंद पशारो पूरण देख पन्नरमा लोकमें अलख धणी निरधारो । पन्नर कला परसिध अनादि अलख नारायण राजा परम अनंती सीध अनंता लोकालोक अवाजा ॥१॥ सोल कलानो सांम हमारो सो निज परज विचारो श्रीजिनराजनगरमंहिं राजा अनन्तकला निरधारो । अनन्त अनन्त कलाने थोकें एक कला निरधार एहवी कला पन्नरे सिध एके सिंध अनन्त अपार ॥२॥ आदि सिध कह्या परभेदें एक करतारथ प्राजा एहवा सिध अनन्त अनन्ता एक अनादिक राजा । एम अनंता दोष अनादिक पन्नरकला प्रभु राजे परमधणी परता परमेश्वर अलख अगोचर गाजें ॥३॥ अकर्ता ब्रह्म अगाधमें गाजें परविध दोय पराजा परजा लोक अनंती प्राझी पन्नरलोकमें झाझा । अनन्त अनन्त कला बहु एके एहवी सोल विचार सोल कलाना सिध हे आदिक सिध अनन्त अपार ॥४||
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अनन्त अनन्ता सिध मिलीनें तीर्थधणीनुं तेज चढती चढती सोल कलाना आदिक सिध सहेज | एम अनंता आदिक सीधा तेज अनन्त अपार एक अनादिक सिधकला छें सोल कला विस्तार ॥५॥
एम अनंता सिध अनादिक तेज मीले ततसोही एक धणी युग सिध अनांदिक एम अनंता तोही । ए निज सासण सोल कलाना सिध अनन्त अपार साद्य अनाद्य चढता जोतें तेजें तेज मझार ||६||
अनन्त अनादिना सिध अनंता निज पर निगम शरूपें मांहें नाथ वडेरा बुझो त्रिहुं जुग परजा भुपिं । आदितणा जे सिध अपारं अनन्त अनंता आवें निजना निज रहें निरवांणें परना लोक पठावे ॥७॥
सीध अनंता परज अनंती त्रिहुविध ठाकुर राजें देख अनंता साहिब बेठा अनहद राजमें गाजें । अनादितणा जे सिध कह्या छें आपण आपण भेदें तेह तणा जे तेथ हवंदा देखो निगम संवेदि ॥८॥
अनुसंधान - २९
निगमें वेद कुरांण सिधान्त तेथ अच्छे त्रिहुं वेद राज अदल चले सीध हंदो अगम नगरमांहे भेद | तेथ अनंती केवलविद्या अनन्त अनंते भेदें तेह अनंतामांहेथी आवी एक कला इण वेदें ॥ ९ ॥
वेद पुरांण कुरांण सिद्धान्त तेहतणा विसतार चउद भुवनतणी जे विद्या दीशे खेल अपार । आदि आनादना सिध अनंता उजल लोक अपार निज पर सासण नगर संपूरण पन्नरमो निरधार ||१०||
अलख निरंजन आदि गुंसाई ध्येय नारायण धांम श्रीजिनराज भजे भगवंत साहिब केवल सांम |
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केवलरांणी श्रीभगवती केवलकमला च्छाजें सिधनगर रखवाली सासण केवलजोगण गाजें ॥११॥ अलख धणी जुगसाहिब साचा केवल राज करंदा करत विसंभर आदि जिणेशर पुरण राज धरंदा । शिवपुर पाटण भिस्त मदीना सिधनगरी नीरवाण मुनिचन्द्रनाथ नगरमांहि आए कोधो वास पुराणं ॥१२॥
___ इति श्रीपंचदशीसिधस्थांनस्थितिज्ञानेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजीप्रकाशिते श्रीनिजपर आदि अनादिक सिध ब्रह्म अनन्तअनन्तकलाराजलीलापंचदशीसिधतिथीकलाकथननन्तरः अथ श्रीषोडशकला श्रीसिधज्ञानशक्तेस्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजीप्रकासिके आदिअनादिकशिवसीधपुरनगर श्रीराजलीला सोलसमीकलाहेतु नयज्ञांनवांणी :
चालः
सोल कला संपूरण सामी सासण राज करंदा नगरतणे विच मोहल विराजें श्रीजिनराज करंदा । सिध अनंतामांहें सामी केवलछत्रधरा जे सिध अनंता छत्रपति हे अगम केवलरीध गाजें ॥१॥ सोल कलामें अनादि अनंती सिधतणा परिवार ते निजसासण साहेब सोहें छत्रधरा निरधार । तीर्थधणीनी परज अनंती आदिक सिध अशेश राजा परजा निज निज सामी केवलराज नरेश ॥२॥ अनादिक सिध अनंतामांहें मुले विच विराजे सोलकला संपूरण सरवे सत्तर तेहनें छाजें । सोल कलानो भेद संपूरण सत्तर कलामांहें पावें अगम अगाधधणी धूर राजे कोण केवल तेह गावे ||३||
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अनुसंधान-२९
सत्तर माहेली एक अनंती सोल कला वसतार सोलकलानी ए कलामांहें परज अनन्त अपार । एक परजनी सोल कलानो सिध कह्यो निरधार ए सिध सासण सिधां हंदो आगम अगम अपार ॥४॥ सत्तर कलानो मूल अनादि एक कला तेह बुझो एक कलामां सिध अनंता तीर्थधणी तीहां जुझो । तीरथनाथ अनादिक राजा तेहनी परज अनन्त सोल कलाना सीध अनंता एक धणी माहंत ॥५॥ आदियो तीरथनाथ धणी जे मूल अनादिकवंशी आदिक सीधतणो परीवार सोलकला शिवतंसी । एम अनादिकना धणीनो सोल कला वसतार आदिक तीरथनाथ धणीना सिध अनन्त अपार ॥६॥ ए सिध सासण सिधा हंदो सिधपुर पाटण राजे रिध अनंती सिधा हंदी कोट कलानीध गाजें । एकेका सिधनी सोल कलामां सिध अनन्त अशेश एक कलामां परज अनंती सोल कला शनिवेश ||७|| एक परजनी सोल कला जे एक कला निरधार ए ब्रांडमें एक कलाना जीव अनन्त अपार । ए सिधसासण सिधा हंदो आगम हे वसतार भविजिन जीवसत्ता सिध वाधे सिधनगर वशतार ||८|| सर्व अनंती ऋध संसारे एक कलामांहें माये एक कलामांहें अनंत अनंती एहवी सोल कहाए । एहवी सोल कलानो सीध परजानो छे सोही एहवा परजना सिध. अनंता एक तीरथपत जोही ॥९॥ एक तीरथपति एक कलामां एहवी सोल विराजे एहवा सिध अनन्त अनन्ता आदि अनादिना गाजें ।
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पनर कलाना पर परमेश्वर तेहनी परज पराझी सोल कलाना निज परमेश्वर परज अनन्तमे बाजी ॥१०॥ तीर्थधणी जे अनंता सिधा तेहनो तेह परीवार अनादितणा जे सिंध अनंता निजनिज ते निरधार । ए परिवार अनंतो सीधां सोल कलानो सरवे सत्तर कलानो स्वामी वीचें अगम निगम अभेवें ॥११॥ ए सिधसासण अलख अपारें ज्योतिलिंग मझार अवगाह अनंतो ज्योति झलामलमाहें नगर वसतारे । त्रीवली त्रीगढ तेज अनंतो सिध अनंतामांहि नवरंगो केवलनयर विराजे केवल तेथ अगाहिं ॥१२॥ अलखधणी गतवरला बुझें पारनगर वसतार केवलज्ञांन कलामांहे देखें एक अनन्त अपार । लोकालोक अलोक अलोकां बुझें पार पच्छाणं मुनीचन्द्रनाथ धणी निज पाशिं पारसनाथ वखाणं ॥१३॥
इति श्री सोडसकला श्रीसीधज्ञानेशक्तेस्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजीप्रकाशिते आदिअनादिकसिधपुरनगर श्रीराजलीला सोडसमीकला । इति सोलकला संपूर्णः । ज्ञानवांणी समाप्तः ॥
अथ श्री आगमविद्या केवलज्ञांनपर्जेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजीप्रकासिके सुध भौमीनीवास तथा आगमसारवांणी माहातमकथन हेतु ज्ञानवांणी ।।
चालः
पारसनाथ धणी परमेश्वर सिंध अनादिक राजा तेमांहिं आदिक पार सिधा नाथ अनंत प्राजा । इण चोवीसें पारसनाथ तीर्थधणी युगराजे पारससासणमां जेह सिझें तेह धणी तेह छाजें ॥१॥
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पारसनाथ प्रभूनो अंसी पुत्र सदा निज साचो नाथनो पुत्र जे नाथ कहावें आगमवांणमे वाचो । मुनीचंद्रनाथ धणी अवधूता पुरणब्रह्म गुसाइ सिधनगरमांहिं झंडा रोप्या पारसनी ठकुराइ ॥२॥
पारसनाथ तणा जे पुत्ता जालम हे अबधूता छत्रधरा जोगेश्वर छाजे धर्मधणी धर्मदत्ता | त्रीगढ ज्योति झलामल नयरी उजल भोम अवतार पारस राजतणी हद्दमांहें शाशण सिध मझार ॥३॥ सोलकलासंपूरण सिधा जोगारंभ जगाड्यो मुनीचंद्रनाथनी नोबत गार्जे मांड्यो धर्म अखाडो । घोर गगन [में] गरजे गाजें अनहद भेरी वादे नवरंगा नेजा धज फरुके छत्र धणीशिर च्छाजें ||४||
मुनीचंद्रनाथ धरमदत्त देवा कोटीध्वज कहावें केवलज्ञांननी जोत अनंती जोतें जोत जगावें । निज परजा नवरंगी सोहें तीरथ च्यार प्रकारे ग्यांन कला गुरुजी हीत दाखें आगमनें अधिकारी (रे) ॥५॥
परे तीथमiहे वाण अनंती भाखी आगम भेवा
वेद कुरांण सिद्धांत विचारी काढ्यो माखण देवा । माखणनो वली घृत कीयो हे अगम माहानिध पारे लोकालोकधणी परमेश्वर भाख्यो आगमसारे ||६||
केवलज्ञान अनंत कलामें आगमवाणी वखाणि श्रीजिनराज जोगेश्वर गायो पार परम पीच्छाणी । आलम खलक अपार अनंती युग परमेश्वर जाणें वेद पुराण कुरांण सिधांते आगमभेद वखांणे ॥७॥
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सोही साहेब आप संभालो ध्यान धरो निज राजा भव जल सागर पार उतारें सरसे सहि वि (नि)ज काजा ।
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________________ August-2004 67 केवलवाण कथीपो भाख्यो भणसे जे नरनारी तेहनी सामीण तेहनें तारें केवलधांम मका(झा?)री ||8|| धन्य धणीना जे जगमाहे धर्म सदालिंग ध्यावें मुनीचंद्रनाथजी आगम भाखें होस्यें कोडि कल्याण // 9 // इती श्रीमुनीचंद्रनाथप्रकाशिके द्वादशांगसारउधारे माहाआगमब्रह्मसिधान्त ब्रह्मज्ञी चैतन ब्रह्म विचार पंन्नर तिथीकलाहेतुनय तथा सोडशसिधकलाहेतुनय अनन्तार्थनिजपरचैतन्यकलारूपब्रह्मसिधान्तवाणी समाप्ता // दोहरा // आगमसारउधार रस पुरण केवलज्ञांन / सोलकला संपूरणे वांणी ज्ञाननिदान // 1 // पणयालीस गाहा आगली एक सत्त आगमवाण / भणसें आतमभावसुं होसें कोडि कल्याण // 21 // पात्र जोइ परचो करी दीजें केवलवाण / धर्मदत्त गुरुदेशना तरसें ते निरवांण ||3|| सिधवांणी साची सही अगम अनंत अपार / भणतां गुणतां पांमीए सिधसासण जयकार // 4 // इति श्रीतिथकला संपूर्णः // लि. मुनी रूपचंदः / /