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अनन्त अनन्ता सिध मिलीनें तीर्थधणीनुं तेज चढती चढती सोल कलाना आदिक सिध सहेज | एम अनंता आदिक सीधा तेज अनन्त अपार एक अनादिक सिधकला छें सोल कला विस्तार ॥५॥
एम अनंता सिध अनादिक तेज मीले ततसोही एक धणी युग सिध अनांदिक एम अनंता तोही । ए निज सासण सोल कलाना सिध अनन्त अपार साद्य अनाद्य चढता जोतें तेजें तेज मझार ||६||
अनन्त अनादिना सिध अनंता निज पर निगम शरूपें मांहें नाथ वडेरा बुझो त्रिहुं जुग परजा भुपिं । आदितणा जे सिध अपारं अनन्त अनंता आवें निजना निज रहें निरवांणें परना लोक पठावे ॥७॥
सीध अनंता परज अनंती त्रिहुविध ठाकुर राजें देख अनंता साहिब बेठा अनहद राजमें गाजें । अनादितणा जे सिध कह्या छें आपण आपण भेदें तेह तणा जे तेथ हवंदा देखो निगम संवेदि ॥८॥
अनुसंधान - २९
निगमें वेद कुरांण सिधान्त तेथ अच्छे त्रिहुं वेद राज अदल चले सीध हंदो अगम नगरमांहे भेद | तेथ अनंती केवलविद्या अनन्त अनंते भेदें तेह अनंतामांहेथी आवी एक कला इण वेदें ॥ ९ ॥
वेद पुरांण कुरांण सिद्धान्त तेहतणा विसतार चउद भुवनतणी जे विद्या दीशे खेल अपार । आदि आनादना सिध अनंता उजल लोक अपार निज पर सासण नगर संपूरण पन्नरमो निरधार ||१०||
अलख निरंजन आदि गुंसाई ध्येय नारायण धांम श्रीजिनराज भजे भगवंत साहिब केवल सांम |
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