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August-2004
दृष्टिवाद ए बावन अक्षरथी आगळ नी बाबत (बावनबारो ?) छे एम पण सूचवायुं छे.
१३मी 'चाल'मा पुनः 'निगम' जोवान सूचन मळे छे. आ चालमा ब्रह्म अने ब्रह्माण्ड अनन्त-अगम होवानुं वर्णन छे. केवलज्ञान ते शक्ति, साहिब ते नाथ (पति), तथा ज्ञानमां भासता अनन्त पर्याय ते अनन्त प्रजा रूपे कविए वर्णवेल छे.
१४मी 'चाल'मां चौदश तिथि, १४ भुवन, १४ कळा, इत्यादिना आलम्बने सिद्ध-मोक्षपद-केवलज्ञान इत्यादि वातोनुं निरूपण छे. आमां 'निवाज' (नमाज) तथा 'संध्यावन्दन' अने साथे 'पडिकमणुं' - आ त्रणनी तुलना नोंधपात्र छे. महदंशे आखीय रचनामां अमुक निरूपण सतत पुनरावर्तित थतुं होवानुं लागे.
१५मी 'चाल'मां पूनमतिथिनी अने १५ कळानी वात थई छे. सिद्धना १५ भेदने पण सांकळवामां आव्या छे. आ चालमां पण 'निगम' शब्द त्रणेक वार आवे छे, जेमां ९मी कडीमां तो 'निगम'ने वेद-पुराणसिद्धान्तनी साथेज गोठव्यो छे. १२मी कडीमां 'मोक्ष'रूप सिद्ध-नगरीने शिवपुर-पाटण तरीके ओळखावीने तेनी तुलना "भिस्त-मदीना' (स्वर्गमा मदीना नगरी ?) साथे करी छे.
१६मी 'चाल'मां जीवमांथी १६ कळाए सिद्ध-शिव थएल आत्माना तथा तेना निवासरूप मोक्षना स्वरूप- विशद वर्णन छे. आखी कृतिमा प्रथमवार अहीं १३मी कडीमां 'पारसनाथ' एवं नाम जोवा मळे छे.
१७मी 'चाल' कलशरूप ढाळ जणाय छे. तेमा प्रत्येक कडीमां 'मुनीचन्द्रनाथ-धरमदत्त देव'नुं नामाचरण थयुं छे. 'पारसनाथ'नो उल्लेख पण एकथी वधु वार थयो छे. छछी कडीमां कर्ता कहे छे के 'पन्नर तिथ'नामे आ रचनामा आगमवाणी निरूपी छे, अने वेद-कुरान-आगमनुं मन्थन करीने माखण तारवीने तेनुं आ रूपे घृत कर्यु छे, अने ए रीते जिनेश्वरनां गीत गायां छे.'
प्रान्ते ४ दोहरा छे, जेमां १५२ गाथामय 'आगमसारउधार' अर्थात्
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