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अनुसंधान-२९
करम निवारो आश्रव टालो संवर भालो भाइ लोक थकी परलोक सिद्धान्तें जोति जोत समाइ ॥६॥ दशे विद्यामांहि लोक मंडाणो बहुलो छे विसतार आगें केवल अगम जगा. सोल विद्यामांहि सार । जेणा जीवतणी तुमे राखो भाषो आगम भेवा निज पर विद्या शाशण साधो दाखी , जिनदेवा ॥७|| विद्या खोल वखार ज मांड्यो तीर्थधणीनो थापो पाषंडवाद सवे पर छेदो आगम केवल जापो । चवदे पुरव शाशणविद्या दशमें अंगविचार परशाशण पेहले खंध विचारो बीजे छे निज सार ||८|| एह दोयतणी विध जांणी साधे जेह जोगेश्वर मोहोटा जोगतणा घरमांहे सरवे सिधतणा छे जोटा । परकृती माया केवलमाया जोगतणा घरमाहिं जोगतणी जे माया जागे देख जोगेस्वर प्रांहि ||९|| जीत जतीवृत सुरा जीपें पंच माहावृतधारी आगमविद्या देख आराहे आपणी शक्त संभारी । श्रीजिनशाशण आगममंडल केवल ते विध जाणे मुनीचन्द्रनाथ जोगेश्वर जालम आगम पंथ वखांणे ॥१०॥
इति श्रीदशमांग माहाविद्याज्ञानेश्वर श्रीमुनींचन्द्रनाथजी दशमांगे दशमाहाविद्या हंसा तथा दया आश्रव संवररूप श्रीजिनशाशननिजपरविद्यालबधी सिद्धीकरण ज्ञानमाता दयाभगवतीस्वरूप एवं द्विविद्धा चैतन्यपर्जयः शक्तज्ञानदेवी दशमीतथीकलाकथनंनन्तरः अथ श्रीएकादशमांग सर्वज्ञ ज्ञानेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजीप्रकाशिते एकादशमांगे कर्मविपाकनिराकरण सर्वज्ञ कलाप्रकाश एकादशी तिथीकलाहेतु नयज्ञांनवांणी :
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