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________________ August-2004 67 केवलवाण कथीपो भाख्यो भणसे जे नरनारी तेहनी सामीण तेहनें तारें केवलधांम मका(झा?)री ||8|| धन्य धणीना जे जगमाहे धर्म सदालिंग ध्यावें मुनीचंद्रनाथजी आगम भाखें होस्यें कोडि कल्याण // 9 // इती श्रीमुनीचंद्रनाथप्रकाशिके द्वादशांगसारउधारे माहाआगमब्रह्मसिधान्त ब्रह्मज्ञी चैतन ब्रह्म विचार पंन्नर तिथीकलाहेतुनय तथा सोडशसिधकलाहेतुनय अनन्तार्थनिजपरचैतन्यकलारूपब्रह्मसिधान्तवाणी समाप्ता // दोहरा // आगमसारउधार रस पुरण केवलज्ञांन / सोलकला संपूरणे वांणी ज्ञाननिदान // 1 // पणयालीस गाहा आगली एक सत्त आगमवाण / भणसें आतमभावसुं होसें कोडि कल्याण // 21 // पात्र जोइ परचो करी दीजें केवलवाण / धर्मदत्त गुरुदेशना तरसें ते निरवांण ||3|| सिधवांणी साची सही अगम अनंत अपार / भणतां गुणतां पांमीए सिधसासण जयकार // 4 // इति श्रीतिथकला संपूर्णः // लि. मुनी रूपचंदः / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229353
Book TitlePannar Tithi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size590 KB
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