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जे जेहनो छें साहिब सोहि बंदगी भजना ध्यांन मुनीचन्द्रनाथ बडे अवधुत्ता दाखें ब्रह्मगनांन ॥८॥
इती श्रीषट्जीवपर्जेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथ षट्द्रव्यादि षटविधि जीवाजीववीचार षष्टमी तीथी कलाकथननन्तरं : अथ श्रीमुनीचन्द्रनाथजी प्रकाशीके सप्तमांगे श्रमणोपासकसेवकपदस्थिति धर्मस्वजनसंगसामीसेवक स्थितिस्थापना सप्तमी तिथी कलाहेतु नयज्ञांनवांणी :
अनुसंधान - २९
चाल:
सातमें अंगें साथ सज्यो हे सातम तथ वखाणा जालम जेह वडा जोगेस्वर जे गुरु पीर वंचाणा तेणे सेवक साथमे लावो श्रावक पंथ सुधारे देख मुरीद जे साहिब हंदा भावें भक्ति विचारे || १ || षटदर्शन उपासक होवें आपणो तीरथ साधें धर्म धणी जुगधोरी ध्यावें नाथ निरंजन लाधे । साहिब हंदा मानव मेली वाछल हेत विचारो साजण ए दुनीयानां सरवे तेमांहि नाथ तुमारो || २ ||
जे कोए साहिब हंदा सूरा पंथ वहंदा पूरा ते सहु साजण ताहरां बुझो साहब तेह हजुरा । जीत जतीवृत हे गुरु पीर सेवक सेवा सारो धर्मधणी जिनराजनो मांडें नाथ भजें युग पारे (रो ) ||३||
वेद पुराण कबि वांचें जोये सिद्धान्त विचारी जे फरमांण हुकम चलायो आगन्यां सोह संभारी । आपणो साहेब जे देखलावें तेणें पंथ चलंदा केहर कमाइ हंसा छांडें सोहि साहेब हंदा || ४ || साहिबना छें सोही साचा कुडा केथ कमावें केहर थकी जे दोजग पांमे भिस्त कहांथी पावें ।
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