Book Title: Pannar Tithi
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसंधान-२९
सत्तर माहेली एक अनंती सोल कला वसतार सोलकलानी ए कलामांहें परज अनन्त अपार । एक परजनी सोल कलानो सिध कह्यो निरधार ए सिध सासण सिधां हंदो आगम अगम अपार ॥४॥ सत्तर कलानो मूल अनादि एक कला तेह बुझो एक कलामां सिध अनंता तीर्थधणी तीहां जुझो । तीरथनाथ अनादिक राजा तेहनी परज अनन्त सोल कलाना सीध अनंता एक धणी माहंत ॥५॥ आदियो तीरथनाथ धणी जे मूल अनादिकवंशी आदिक सीधतणो परीवार सोलकला शिवतंसी । एम अनादिकना धणीनो सोल कला वसतार आदिक तीरथनाथ धणीना सिध अनन्त अपार ॥६॥ ए सिध सासण सिधा हंदो सिधपुर पाटण राजे रिध अनंती सिधा हंदी कोट कलानीध गाजें । एकेका सिधनी सोल कलामां सिध अनन्त अशेश एक कलामां परज अनंती सोल कला शनिवेश ||७|| एक परजनी सोल कला जे एक कला निरधार ए ब्रांडमें एक कलाना जीव अनन्त अपार । ए सिधसासण सिधा हंदो आगम हे वसतार भविजिन जीवसत्ता सिध वाधे सिधनगर वशतार ||८|| सर्व अनंती ऋध संसारे एक कलामांहें माये एक कलामांहें अनंत अनंती एहवी सोल कहाए । एहवी सोल कलानो सीध परजानो छे सोही एहवा परजना सिध. अनंता एक तीरथपत जोही ॥९॥ एक तीरथपति एक कलामां एहवी सोल विराजे एहवा सिध अनन्त अनन्ता आदि अनादिना गाजें ।
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