Book Title: Pannar Tithi
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ 52 अनन्त अनन्ता सिध मिलीनें तीर्थधणीनुं तेज चढती चढती सोल कलाना आदिक सिध सहेज | एम अनंता आदिक सीधा तेज अनन्त अपार एक अनादिक सिधकला छें सोल कला विस्तार ॥५॥ एम अनंता सिध अनादिक तेज मीले ततसोही एक धणी युग सिध अनांदिक एम अनंता तोही । ए निज सासण सोल कलाना सिध अनन्त अपार साद्य अनाद्य चढता जोतें तेजें तेज मझार ||६|| अनन्त अनादिना सिध अनंता निज पर निगम शरूपें मांहें नाथ वडेरा बुझो त्रिहुं जुग परजा भुपिं । आदितणा जे सिध अपारं अनन्त अनंता आवें निजना निज रहें निरवांणें परना लोक पठावे ॥७॥ सीध अनंता परज अनंती त्रिहुविध ठाकुर राजें देख अनंता साहिब बेठा अनहद राजमें गाजें । अनादितणा जे सिध कह्या छें आपण आपण भेदें तेह तणा जे तेथ हवंदा देखो निगम संवेदि ॥८॥ अनुसंधान - २९ निगमें वेद कुरांण सिधान्त तेथ अच्छे त्रिहुं वेद राज अदल चले सीध हंदो अगम नगरमांहे भेद | तेथ अनंती केवलविद्या अनन्त अनंते भेदें तेह अनंतामांहेथी आवी एक कला इण वेदें ॥ ९ ॥ वेद पुरांण कुरांण सिद्धान्त तेहतणा विसतार चउद भुवनतणी जे विद्या दीशे खेल अपार । आदि आनादना सिध अनंता उजल लोक अपार निज पर सासण नगर संपूरण पन्नरमो निरधार ||१०|| अलख निरंजन आदि गुंसाई ध्येय नारायण धांम श्रीजिनराज भजे भगवंत साहिब केवल सांम | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35