Book Title: Pannar Tithi
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 24
________________ 46 अनुसंधान-२९ अंग इग्यारे आप भणीने साधो संजम सार पार तणी जे लीला पामो आगल ऋधि अपार ॥७॥ सूरा वीरा साध हवंदा पंथ चढंदा पूहरा जीत जती जोगेसर जालम साहेब तेण हजुरा । धोरी धर्मतणा धरजुत्ता तीरथ संग उधारि अंग इग्यारेही यागम भाषे केवलनाथ संभारि ॥८॥ छोडि कर्मतणां फल कडवां सुखदुख लोक संसार एह वीपाकतणां फल जांणी धर्म धरें निरधार । धन्य जके नर नारी ध्यावें श्रीजिनराज जिणंदा मुनिचंदनाथ इग्यारे अंगि केवलरूप कहंदा ॥९॥ इती श्रीएकादशांगेस्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथप्रकाशिते कर्मविपाकनिराकरण सर्वज्ञ । चैतन्य स्वरूप कलाप्रकाश एकादशी गुणस्थापन केवलपर्जाय स्फुरत एकादशी तिथी कलाकथननन्तरः अथ श्रीदृष्टिवाद द्वादशांगेश्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजीप्रकासिते द्रष्टीवाद सिधान्तमूल बीजादिसवीस्तरसर्वज्ञभावप्रकाश तथा कर्मउपशमक्षिपकश्रेणी द्वादशी तिथी कलाहेतु नयज्ञांनवांणी : चालः बारमे अंग तिहां थित( तिथ) बारस बारकला उजवालो द्रष्टीवाद में चवदे पूरव चोथो भाग संभालो । असंख्य समुद्रे उपम आखी विद्या एवडी भाखी लोकतणो वसतार लखांणो अलख निरंजन साखी ॥१॥ देख भले वली पुरण आगें ते महि अगम अपार पुरण ब्रह्म कह्यो परसोत्तम आदि शगत मझार ते पुरणब्रम माहेथी प्रगटें दोविध शक्क वखांणो इच्छा शक्त अपार धरे में क्रीया शक्त कमांणो ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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