Book Title: Pannar Tithi
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसंधान-२९
मूलबीजादिसविस्तरपुर्णब्रह्ममध्यात् सर्वदृष्टीवादपयां(यं?)त लोकविस्तार द्वादशमीतिथीकलाकथननन्तरः अथ श्रीतल(त्त्व)ज्ञ संयोगकेवलज्ञान लोकालोकप्रकासिक चैतन्यब्रह्म निजनिजस्वरूप निजनिजविद्यास्थिति तेरसतिथि कलाहेतु नयज्ञांनी(न)वांणी :
चाल: तेरस जांणो आतम हंदोः तेरस तेथ वखांणां तीरथनाथ धणी युगसाहेब तीरथ तेथ पच्छांणां । जोग संजोगीय केवल हुंदा तेरस तिथ उजवालो चंद चढ्यो चढति युग जोति देख निगम निहालो ॥१॥ अनत अपार अगम निगमे साधा हंदो सांइ तेरस बुझ्यो तेरस ठाणे पंड ब्रांडा माहें । पिंड ब्रह्मडमें देख प्रसारो साहिब सरव सुजांण असंख्य प्रदेश अनंता परजें मांड्यो तेथ मडांण ॥२॥ अनन्त अनंतो भेद विचारो एक प्रदेश मझार एम अनंतो ब्रम(ह्म) सुधारस आतमज्ञान अपारि । भौमसत्तारा देख निरंजन वांचे तेथ कुरांणं आप अलखधणीनें लाधो निगम लह्यो फरमांणं ॥३॥ केवल ब्रह्म लह्यो कुंरुणानिध वांचें वेद पुराणं ब्रह्म नारायण हे माहाविष्णु निरगुणनाथ वखांणं ! केवलनांण कहे अरीहंता आगम वेद वचांणं सिधांतसिरोमण यार लहंदा युं भगवंत सुजाणं ॥४॥ तेरसमांहे खलक रचंदा देख ब्रांड अपारि लोकालोकतणा जे शाशण दीठा देही मझारि । अलखनारायण देव जिणंदा बुझ हवंदा बोहोली त्रिहुं युग लोकधणीनी परजा ब्रह्मज्ञांनमें खोली ॥५॥
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