Book Title: Pannar Tithi
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ August-2004 39 दोजग नर्क पयाले बंधो कीधां कर्म हरांमी सिध निरवाण जे भिस्त न पाई हुयो दोजग दामी ॥५॥ एह संसार अथाह अनोधो आलम खेल अपार ते भवसागर मांहि पडतो भुलो भव मझार । म भूलो मानव सातम उगो सात कला शशी वाधी सेवक होय में सतगुरु सेवो साची सेवा लाधी ॥६|| सात वशन नीवारो भाई साहिब साथ सगाइ साचे साहिब साचु मांने जेसी की कमाइ । साहिब हंदा जेह कहंदा साचा शान्त सधीरा सेवक होई सेवा सारे जालम जे गुरु पीरा ॥७॥ जालम हि जगनाथ जिणेशर तीर्थधणी युग छाजें अलख नीरंजन तेथ आराहो भवनां बंधण भाजें । साहिब साथें प्रीत सजोडी साची सेव करंदा मुनीचन्द्रनाथ बड़े अवधुता यु निरवांण लहंदा ॥८॥ इति श्रीमुनीचन्द्रनाथगुरुप्रकाशिके सप्तमांगे श्रमणोपासकसेवकस्थितिस्थापना सप्तमीतिथीकलाकथननन्तरः अथ श्रीमुनीचन्द्र-नाथप्रकाशिके श्रीयोगारंभे योगनिधिज्ञाने लोकनालब्रह्मंड चैतन्यशक्तीस्वरूप अष्टमी तिथी कलाहेतु नयज्ञांनवांणी : चाल: आठमो अंग अणुत्तर बोलें आठमि तिथ वखाणो आठम लोक अपार कहंदा पंड ब्रह्मंड पछाणो । चउद भवन सगत जे उभी वेद कुरांण वखाणे आद शगत जे बीबी हवां छे आगम शाशण जाणे ॥१॥ आदि अगम युगे धणीयांणी पीठ ब्रांड रचाणी पुदगल खेल रच्यो एह काया एह षट् द्रव्य समाणी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35