Book Title: Pannar Tithi
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ August-2004 31 अथ श्री मुनींचन्द्रनाथ षटदर्शनेश्वर श्री ब्रह्मैव ब्रह्मज्ञ ज्ञान उपदेश प्रथम प्रतिपदातिथी लोकस्वरूपप्रकाश श्रीभगवंत सरणांगत परमपदहेतु तत्त्ववाणीः चालिः परिब्रह्म पच्छांण्यो लोक समाणो आतम जाणो अखे नाथ निरंजन हे निकलंकी पार परम परक्खे । उज्जल पक्ष कहां सिध हंदो ए संसार कशनं दोय पक्ष पन्नर तिथ दाखां आगम देवंद्रशन्नं ॥१॥ पडवा पहेलो तिथ कहंदा जिव भरंदा जोणलख चोरासीय षांण लिक्खंदा चउगत च्छकसमाणं । देख चउद भवन्ने दाखां जीवे जीव जगंदा एह संसार असार अनादि सुभर जीव भरंदा ॥२॥ जोणि जोण भमंते जीवें ल्लखां मानवलधौ आरजदेश-कुलें अवतरयो ग्राजो पून्य प्रसीधो । चेतो मानव चित्त विचारी फेरा फोकट कीधा साथे साहेब नाहिं संभार्यो लाखे पातक लीधा ॥३॥ एह संसार माहा अंधकुप जीव पडतो जाणी अलख निरंजन देव आराहो पुरण ब्रह्म पीछाणी । पडवा टालो आतम भालो जालव जोग जगंदा मुनीचन्द्रनाथ वदे जुग जीता, सोही साहब हंदा ।।४।। इति लोकजीवाय षद्रव्यव्यापक प्रतिपदातिथी कलाकथनानन्तरं, अथ श्रीमुनीचन्द्रनाथप्रकाशके बोधबीजसम्यक्त्वसाधन तीर्थोपदेश आराध बीजतिथी कलाहेतु वाणी : चाल: साहेब साचो बीज संभारो बीजें बीज लहंदा ग्यांन सदा गुरुजी निज दाखें भाषे वांण भणंदा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35